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Wednesday, June 12, 2024

SANT SUNDER DAS JI - संत सुन्दरदास जी महाराज

SANT SUNDER DAS JI - संत सुन्दरदास जी महाराज


संत सुन्दरदास जी समाज के महान संत हुए है। जिनकी ख्याति खण्डेलवाल समाज मे ही नही अपितु सम्पूर्ण भारत मे रही है। आपके द्वारा अनेक ग्रन्थों की रचना हुई है । सुन्दर ग्रन्थावली आपकी प्रमुख रचना थी। हर साल रामनवमी पर आपकी जयंती पुरे देश मे धुमधाम से मनायी जाती है। संत जी पर डाक टिकट जारी हो चुका है। तथा समाज के प्रेत्यक कार्यक्रम मे संत जी का चित्र लगाया गया है। महासभा भवन मे सामने वाले मार्ग जयपुर नगर निगम ने संत सुन्दरदास मार्ग रखने का निर्णय लिया है।

ज्ञान के महत्व को प्रतिपादित करने वाले संत श्री सुन्दरदास जी एक कवि ही नहीं बल्कि एक महान संत,धार्मिक एवं समाज सुधारक थे। उनका जन्म देवनगरी दौसा में बूसर गोत्र के खंडेलवाल वैश्य कुल में चैत्र सुदी नवमी,संवत 1653 में हुआ। उनके पिता का नाम सार ‘‘ चोखा ‘‘(परमानन्द) तथा माता का नाम सती था। सुन्दरदास जी संत दादू के शिष्य थे। उन्होंने छोटी सी आयु में ही अपने गुरू से दीक्षा और आध्तात्मिक उपदेश प्राप्त कर लिया था। सुन्दरदास जी बाल ब्रहा्रचारी ,बाल कवि एवं बाल योगी थे। अपनी प्रखर प्रतिभा ,भगवत प्रेम एवं बाल योगी थें। अपनी प्रखर प्रतिभा ,भगवत प्रेम एवं उत्तम स्वभाव के कारण सबके प्रिय हो गये। संवत् 1664 में जगजीवन जी दादू शिष्य रज्जन जी आदि के साथ काशी में चले गये। काशी रहकर उन्होंने संस्कृत ,हिन्दी व व्यावरण ,कोष षट्शास्त्र,पुराण,वेदान्त का गहन अध्ययन किया । संख्य योग,वेदान्त के वृहद शास्त्र, उपनिषद, गीता, योगवशिष्ठ,शंकर भाष्य आदि का भली भांति मनन किया । काशी में सुन्दरदास जी असी घाट के पास रहते थे।

आप अपना अध्ययन समाप्त कर कार्तिक बदी चौदस,संवत् 1682 से जयपुर राज्य के शेखावाटी प्रान्तवर्ती फतेहपुर में आयें और वहां निवास किया। आप वहां योगाभ्यास कथा कीर्तन तथा ध्यानादि करतें रहे। आपका देशाटन के प्रति शैाक होने के कारण जहां-जहां आपका देशाटन कथा कीर्तन तथा संभर ,आमेर ,कल्याणपुर,दिल्ली ,आगरा ,लाहौर ,गुजरात ,मेवाड मालवा बिहार आदि स्थानों पर प्रायःजाया करते थे।

संत सुन्दरदास जी का साहित्य सृजनकाल संवत् 1664 से लेकर मृत्युपर्यन्त चलता रहा। आपने 42 मौलिक ग्रन्थ लिखे है।,जो आपकी प्रखर प्रतिभा को उजागर करते है। आफ ग्रन्थों की भाषा सरल,सुबोध,स्पष्ट,सरस है और सभी रचनाएं सारयुक्त है। स्वामी जी ने ब्रजभाषा ,राजपूतानी और खडी बोली मिश्रित भाषा, के साथ ही फारसी शब्द मिश्रित पंजाबी ,पूर्वी तथा गुजराती भाषाओं में कविता की है।

संवत् 1682 में आप फतेहपुर शेखावाटी में आये। लगभग 60 वर्ष की अवस्था तक आप मुख्यतः फतेहपुरर में ही रहे। फतेहपुर का नवाब अलिफ खां आपका बहुत सम्मान करता था। नवाब अलिफ खां स्वयं कवि था उसने 77 ग्रन्थों की रचना की है। एक बार नवाब अलिफ खां ने आपको कोई चमत्कार दिखाने के लिए कहा तब आपने कहा कि नवाब साहब आप जिस जाजम पर बैठे हो उसे उठाकर देखा तो पूरा नगर दिखाई दिया। नवाब ने आप के पैर पकड लिये।

ज्ञान मार्ग के अनुयायी सुन्दरदासजी ने अद्वैत मत का प्रतिपादन किया है। उनका ब्रहा्र अद्वैत है,वह ज्ञानमय है और सर्वश्रेष्ठ शक्ति वाला है। संत जी ने गुरू महिमा ,गुरू उपदेश ,भ्रम निवारण ,रामनाम ब्रहा्र का वास्तविक अर्थ ,आत्मा का सच्चा स्वरूप ज्ञान ,संसार और उसका स्वरूप् आदि पर गहन विचार प्रगट किये हैं।
स्ंत सुन्दरदास जी ने ‘‘अधीरता‘‘पर सर्वाधिक छनद लिखे है। इन्होंने इससे दूर रहने के लिए कहा है। कि अधीरत तृष्णा को जन्म देती है।

सुन्दर तृष्णा है। धुरी लोभ वंश की धार ।
इनते आप बचाइये, दोनो मारन हार।।

स्वामीजी का परमपद,गमन उनके अपने निवास स्थान सांगानेर में 13 वें वर्ष की उम्र में कार्तिक शुक्ल अष्टमी वार वृहस्पिवार विक्रम संवत् 1746 में हुआ।उसे उन्हीं के शब्दों में-

सात बरस सौ में घटे,इतने दिन की देह।
सुन्दर न्यौरा आत्मा,देह लेह की खेह ।।

रविन्द्र नाथ ठाकुर के शब्दों में ‘‘स्वच्छ जल का स्त्रोत जिस प्रकार पृथ्वी के गर्भ में अपनें आन्तिरिक वेग के साथ स्वतः ही उत्सरित होता रहता है। उसी प्रकार साधक कवियों की भावधारा अपने शुद्ध आनन्द की प्रेरणा से स्वतः प्रवाहित हुई थी। इस प्रकार कवियों में एक मात्र सुन्दरदास जी ही शास्त्रज्ञ पंडित थे।‘‘

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