MAHAJANI - महाजनी
मग्य काल में सम्पूर्ण भारत की अर्थव्यवस्था में महाजनों की भूमिका विशेष थी। तत्कालीन समाज में ये महाजन बैंक का काम करते थे। दूसरे शब्दों में यह एक अन्तरप्रान्तीय संगठन था जो संचार एवं परिवहन के साधनों के अल्प विकसित राज्य में भी आर्थिक लेन-देन को सुचारू रूप से संचालित करता था। भू-राजस्व, कृषि एवं दैनिक आवश्यकताओं तथा व्यापारिक वस्तुओं की खरीद-बिक्री और उसके आयात-निर्यात पर कर की नकद वसूली के फलस्वरूप महाजनी व्यवस्था विकसित हुई। 18वीं शताब्दी के अन्तिम दशक तक लगभग 200 महाजन एवं सराफ वाराणसी के बैंकिंग व्यवसाय से जुड़े हुए थे। सामान्यतया ये महाजन वैश्य, अग्रवाल खत्री आदि बनिया वर्ग के होते थे, तथापि अन्य वर्गों के लोग भी इस व्यवसाय से जुड़े हुए थे। इस्लामी व्यवहार में सूदखोरी के निषेध के कारण मुसलमान इसमें संलग्न नहीं थे। 1733 ई. में बनारस में टकसाल की स्थापना से इस स्थान का आर्थिक महत्व बढ़ गया और कुछ और रईस यहाँ के व्यवसाय से जुड़ गए। महाजनों ने न केवल वाराणसी, बल्कि सम्पूर्ण भारत की अर्थव्यवस्था में सक्रिय भूमिका निभाई। व्यापार और कृषि में वित्तीय ऋण उपलब्ध कराने तथा राजकीय राजस्व की वसूली में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। कंपनी के साथ वित्तीय कारोबार के विकास के साथ-साथ यहां महाजनों की स्थिति मजबूत होती गई। 18वीं शताब्दी के अंतिम दशकों में बंगाल में यूरोपीय शैली के बैंकों पर राजकीय नियंत्रण स्थापित हो जाने के बाद महाजन व्यापार और उद्योग के वित्तीय प्रबंधक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण स्थिति बनाए रखने में सफल रहे, यद्यपि इससे यहां की वित्तीय व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। वाराणसी की स्थायी बंदोबस्त के समय इनमें से कुछ महाजन आमिलों के जमानतदार बन गए। इसके बाद वे तहसीलदारी में शामिल हो गए। स्थायी बंदोबस्त के बाद के 50 वर्षों में 18वीं शताब्दी की व्यापारिक और उदार संस्थाओं के सदस्यों ने भू-संपत्ति भी खरीदी। प्रस्तुत आलेख में यह जानने का प्रयास किया गया है कि 18वीं शताब्दी में बनारस में बैंकिंग व्यवस्था किस प्रकार संगठित थी, किसानों और व्यापारियों की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति कौन करता था, भू-राजस्व के भुगतान में महाजनों की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण थी।
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