माहेश्वरीयों के विवाह की विधियों का सीधा सम्बन्ध जुड़ा हुवा है महेश नवमी से
माहेश्वरी समाज में लड़का (बींदराजा) क्यों 'मोड़' और 'कट्यार' धारण करके विवाह की विधि संपन्न करता है? माहेश्वरी समाज को छोड़कर अन्य किसी भी समाज में विवाह की विधि में बाहर के फेरे (बारला फेरा) नहीं लिए जाते है तो माहेश्वरीयों में क्यों बाहर के फेरे लिए जाते है? बाहर के फेरों की संख्या चार (4) ही क्यों है? चार की यह संख्या किसने तय की थी?
माहेश्वरी समाज में मंगल कारज (विवाह) में बिन्दराजा मोड़ और कट्यार (कटार) धारण करके विवाह की विधियां संपन्न करता है तथा फेरे लेने की परंपरा में चार फेरे 'बाहर' लिए जाते है जिन्हे 'बारला फेरा' (बाहर के फेरे) कहा जाता है. माहेश्वरी समाज में विवाह की विधि में कट्यार और मोड़ पहनने, बाहर के फेरे लेने के विधि का सीधा सम्बन्ध जुड़ा हुवा है महेश नवमी अर्थात माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिवस की घटना से ! जानिए... कैसे? माहेश्वरी वंशोत्पत्ति की वह बात- "माहेश्वरी वंशोत्पत्ति कथा के अनुसार, जब ऋषियों के श्राप के कारन पत्थरवत (मृत) पड़े हुए राजकुंवर सुजानसेन और 72 उमरावों की पत्नियों की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान महेशजी ने श्रापग्रस्त राजकुंवर सुजानसेन और 72 क्षत्रिय उमराओं को शापमुक्त किया और इसी कड़ी में आगे उन 72 उमराओं को कहा की- सूर्यकुंड में स्नान करने से तुम्हारे सभी पापों का प्रायश्चित हो गया है तथा तुम्हारा क्षत्रितत्व एवं पूर्व कर्म भी नष्ट हो गये है. यह तुम्हारा नया जीवन है इसलिए अब तुम्हारा नया वंश चलेगा. तुम्हारे वंशपर हमारी छाप रहेगी. देवी महेश्वरी (पार्वती) के द्वारा तुम्हारी पत्नियों को दिए वरदान के कारन तुम्हे नया जीवन मिला है इसलिए तुम्हे 'माहेश्वरी' के नाम से जाना जायेगा. इसके बाद उन 72 उमरावों में अपनी स्त्रियों (पत्नियोंको) को स्वीकार करने को लेकर असमंजस दिखाई दिया. उन्होंने कहा की- हमारा नया जन्म हुवा है, हम तो “माहेश्वरी’’ बन गए है पर ये अभी क्षत्रानिया है. हम इन्हें कैसे स्वीकार करे. तब माता पार्वती ने कहा तुम सभी स्त्री-पुरुष हमारी (महेश-पार्वती) चार बार परिक्रमा करो, जो जिसकी पत्नी है अपने आप गठबंधन हो जायेगा. इसपर राजकुवरानी ने पार्वती से कहा की- माते, पहले तो हमारे पति क्षत्रिय थे हथियारबन्द थे तो हमारी और हमारे मान की रक्षा करते थे अब हमारी और हमारे मान की रक्षा ये कैसे करेंगे? तब पार्वती ने सभी को दिव्य कट्यार (कटार) दी और कहाँ की अब तुम्हारा कर्म युद्ध करना नहीं बल्कि वाणिज्य कार्य (व्यापार-उद्यम) करना है लेकिन अपने स्त्रियों की और मान की रक्षा के लिए सदैव 'कट्यार' (कटार) को धारण करेंगे. मै शक्ति स्वयं इसमे बिराजमान रहूंगी. तब सब ने कटार को धारण करके महेश-पार्वति की चार बार परिक्रमा की तो जो जिसकी पत्नी है उनका अपनेआप गठबंधन हो गया. तभी से माहेश्वरीयों में विवाह के समय बाहर के चार फेरे (बारला फेरा) लेने की परंपरा चल रही है.
माहेश्वरी समाज के उत्पत्ति के समय हुई उस बात की याद सदैव रहे इसलिए चार फेरे बाहर के लिए जाते है (वर्तमान समय में 'महेश-पार्वती' की तसबीर के बजाय मामा फेरा के नाम से चार फेरे लेने का रिवाज कहीं कहीं पर देखा जा रहा है लेकिन यह अनुचित है. सही परंपरा का पालन करते हुए 'महेश-पार्वती' की तसबीर को चार बार परिक्रमा (चार फेरे) करके ही यह विधि संपन्न की जानी चाहिए). विवाह की विधि में 'बारला फेरा' (बाहर के फेरे) लेने की विधि मात्र माहेश्वरी समाज में ही है. इस तरह से इस विधि का सीधा सम्बन्ध माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिवस (महेश नवमी) से जुड़ा हुवा है जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी, परंपरागत रूप से माहेश्वरी समाज मनाता आया है. अन्य किसी भी समाज में यह विधि (बारला फेरा/बाहर के फेरे) नहीं है.
विवाह से जुडी इसी परंपरा के एक अन्य रिवाज के अनुसार, सगाई में लड़की का पिता लडके को मोड़ और कट्यार भेंट देता है इसलिए की ये बात याद रहे- "अब मेरे बेटी की और उसके मान की रक्षा तुम्हे करनी है". बिंदराजा को विवाह की विधि में वही मोड़ और कट्यार धारण करनी होती है (वर्तमान समय में इस परंपरा/विधि को भी लगभग गलत तरीके से निभाया जा रहा है. विवाह के विधि में धारण करने के लिए एक या दो दिन के लिए कट्यार किरायेपर लायी जा रही है. यह मूल विधि के साथ की जा रही अक्षम्य छेड़छाड़ है जो की गलत है. इस विधि के मूल भावना को समझते हुए इसे मूल या पुरानी परंपरा से अनुसार ही निभाया जाना चाहिए).
महेश नवमी-
प्रतिवर्ष, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को "महेश नवमी" का उत्सव मनाया जाता है. यह पर्व मुख्य रूप से भगवान महेश (महादेव) और माता पार्वती की आराधना को समर्पित है. ऐसी मान्यता है कि, युधिष्टिर संवत 9 ज्येष्ठ शुक्ल नवमी के दिन भगवान महेश और आदिशक्ति माता पार्वती ने ऋषियों के शाप के कारन पत्थरवत् बने हुए 72 क्षत्रिय उमराओं को शापमुक्त किया और पुनर्जीवन देते हुए कहा की, "आज से तुम्हारे वंशपर (धर्मपर) हमारी छाप रहेगी, तुम “माहेश्वरी’’ कहलाओगे". भगवान महेशजी के आशीर्वाद से पुनर्जीवन और "माहेश्वरी" नाम प्राप्त होने के कारन तभी से माहेश्वरी समाज ज्येष्ठ शुक्ल नवमी (महेश नवमी) को 'माहेश्वरी उत्पत्ति दिन (स्थापना दिन)' के रूप में मनाता है. इसी दिन भगवान महेश और माता पार्वती की कृपा से माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई इसलिए भगवान महेश और माता पार्वती को माहेश्वरी समाज के संस्थापक मानकर माहेश्वरी समाज में यह उत्सव 'माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिन' के रुपमें बहुत ही भव्य रूप में और बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है. इस दिन शोभायात्रा निकाली जाती हैं. यह पर्व भगवान महेश और पार्वती के प्रति पूर्ण भक्ति और आस्था प्रगट करता है. माहेश्वरी समाज का सबसे बड़ा पर्व है- महेश नवमी !
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साभार: premsukhanand.blogspot.com/2017/06/blog-post_29.html
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