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Wednesday, March 24, 2021

RITIKA JINDAL IAS

RITIKA JINDAL IAS -पिता को था कैंसर पर कभी नहीं हारी हिम्मत, दूसरे प्रयास में 22 साल की रितिका बनीं UPSC टॉपर


पंजाब की रितिका जिंदल ने साल 2018 की यूपीएससी सीएसई परीक्षा दूसरे प्रयास में 88वीं रैंक के साथ क्लियर की थी. इस दौरान उन्होंने इमोशनल एंड्स पर भी काफी संघर्ष किया. जानते हैं आज रितिका की सफलता और संघर्ष की कहानी.


Success Story Of IAS Topper Ritika Jindal: पंजाब की बेटी रितिका जिंदल का हौसला और जज्बा देखने लायक है. मात्र 22 साल की उम्र में जब वे बात करती हैं तो ऐसा लगता है मानो कोई 42 साल का व्यक्ति अपने जीवन के संघर्षों से मिली सीख साझा कर रहा है. उनकी बातचीत इतनी सधी हुई और इतनी समझदारी भरी लगती है कि उसके सामने कुछ और कहने का दिल ही नहीं करता. दरअसल जिंदगी जब चुनौतियां देती है तो आपकी उम्र नहीं देखती और यही चुनौतियां आपको परिपक्व बना देती हैं. रितिका के पिताजी उनकी यूपीएससी की तैयारी के दौरान बहुत ही खतरनाक बीमारी कैंसर से जूझ रहे थे. लेकिन रितिका ने अपने इस इमोशनल पार्ट को कभी तैयारी के आड़े नहीं आने दिया और दूसरे ही अटेम्प्ट में टॉपर बन गईं. दिल्ली नॉलेज ट्रैक को दिए इंटरव्यू में उन्होंने अपना अनुभव शेयर किया.

रितिका हमेशा से हैं ब्रिलिएंट स्टूडेंट –

रितिका का जन्म जरूर पंजाब की एक छोटी सी जगह मोगा में हुआ, जहां संसाधनों की काफी कमी थी लेकिन उन्होंने कभी इसको अपनी सफलता के बीच में नहीं आने दिया. किस्मत से उन्हें हमेशा शिक्षक भी बहुत अच्छे मिले जिससे रितिका उनकी देख-रेख में हर क्लास में एक्सेल करती गईं. क्लास दसवीं और बारहवीं में रितिका ने बहुत अच्छा परफॉर्म किया और अपने एरिया में टॉप भी किया. इसके बाद उन्होंने दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से ग्रेजुएशन किया और यहां भी टॉप किया.


रितिका बचपन से ही आईएएस बनना चाहती थी इसलिए सही समय आने पर उन्होंने इस ओर प्रयास भी आरंभ कर दिए. रितिका की तैयारी की गंभीरता और ईमानदारी का पता इसी बात से चलता है कि पहले ही प्रयास में उन्होंने तीनों स्टेज क्लियर कर लिए थे लेकिन कुछ अंकों से फाइनल सूची में उनका नाम नहीं आया. रितिका को बुरा लगा लेकिन वे इस दुख को पकड़े नहीं बैठी रही. अगले साल फिर उन्होंने प्रयास किया और तीनों परीक्षाओं को पास करते हुए सीधे 88वीं रैंक के साथ टॉपर बनीं.

रितिका इस परीक्षा को पास करने के लिए मुख्य रूप से तीन सलाह देती हैं. उनकी पहली सलाह है कि जीवन में जब कभी चुनौतियां आएं तो उनसे घबराएं नहीं, न डरकर अपने कदम पीछे करें. लाइफ में कब क्या होगा इस पर आपका कंट्रोल नहीं है पर उस कंडीशन में आप कैसे रिएक्ट करें इस पर आपका ही कंट्रोल है. इसलिए हर स्थिति का सामना मुस्कुराकर करें.

रितिका की दूसरी सलाह है कि अपने इमोशनल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल सोच-समझकर करें. दबाव में बिखरें नहीं और कितना भी प्रेशर हो खुश होकर पढ़ाई करें. इससे आपका पढ़ाई का परफॉर्मेंस भी सुधरेगा. खुश रहेंगे तो जल्दी याद कर पाएंगे और याद किया हुआ याद रहेगा.

रितिका की तीसरी सलाह है कि फेलियर से हार नहीं मानें. वे कहती हैं कि जब हम असफल होते हैं तो हमारे पास दो विकल्प होते हैं कि या तो फेल होने का दुख मनाएं या फिर दोबारा उठ खड़े हों और दोगुनी मेहनत से आगे बढ़ें. फेल होना नॉर्मल है, इसे एक लर्निंग के तौर पर लें, रोकर इस पर समय न बर्बाद करें.

रितिका ने जीवन में बहुत से कठिन पल देखें पर कभी उनके आगे घुटने नहीं टेके. रितिका के पहले अटेम्प्ट के दौरान उनके पापा को टंग कैंसर था, जो ठीक हो गया लेकिन सेकेंड अटेम्प्ट के दौरान उन्हें लंग कैंसर हो गया. ऐसे माहौल में पिता की वेदना को महसूस करते हुए रितिका ने हर मोर्चे पर साहस दिखाया और विजेता बनकर उभरीं. इसलिए लाइफ में जब कठिन समय आए तो उससे मुकाबला करें, सफलता आपका होगी.

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