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Wednesday, March 24, 2021

RADHAKRISHNA DAMANI - दो दिन में ही 6100 करोड़ कमा कर बन गए दिग्गज उद्योगपति

RADHAKRISHNA DAMANI - आइडिया मामूली था लेकिन रणनीति कमाल की थी, दो दिन में ही 6100 करोड़ कमा कर बन गए दिग्गज उद्योगपति



यदि देश में सफल कारोबारी की चर्चा होती है तो लोगों की जुबान पर टाटा, अंबानी और बिरला जैसे कुछ चंद नाम सबसे पहले आते। इन कारोबारी दिग्गजों को हर जुबान पर जगह बनाने में कई दशक लगे। लेकिन वक़्त के साथ और भी कई लोग इन दिग्गज उद्योगपतियों की सूची में अपनी जगह बनाए। इनमें कई ऐसे शख़्स हैं जिन्होंने कठिन मेहनत और परिश्रम की बदौलत शून्य से शुरुआत कर इस मुकाम तक पहुंचे कि आज अंबानी और बिरला से कंधों-से-कंधा मिलाकर चलते हैं। और ताज्जुब की बात यह है कि हम ऐसे कई लोगों को जानते तक नहीं।

आज हम ऐसे ही एक सफल कारोबारी की कहानी लेकर आए हैं जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत पिता के बियरिंग बिजनेस से की थी। धंधा बंद होने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और काम करते रहे। आज देश के रिटेल कारोबार में इनकी तूती बोलती है। इतना ही नहीं उन्होंने रिटेल बिज़नेस में रिलायंस और बिरला जैसी बड़ी कंपनियों को भी पीछे छोड़ दिया।


कौन हैं ये दिग्गज कारोबारी

हम बात कर रहे हैं एवेन्यू सुपरमार्ट लिमिटेड के मालिक राधाकृष्ण दमानी की सफलता के बारे में। आज दमानी देश के शीर्ष अमीरों की सूचि में शामिल हैं। हाल ही में इनकी कंपनी ने आईपीओ (शेयर) जारी किया जो कि 299 रुपए शेयर के हिसाब से बेचा गया था जब बाजार में उसकी लिस्टिंग हुई तो वह तमाम रिकार्ड तोड़ते हुए 641 रुपए तक जा पहुंचा। जिस डीमार्ट की सफलता के चर्चे आज हर तरफ हो रहे हैं वास्तव में वो 15 साल लंबे इंतजार का फल है।

कैसी की थी शुरुआत

दमानी पिता के बियरिंग बिजनेस के साथ अपने कारोबारी करियर की शुरुआत की। लेकिन दुर्भाग्यवश पिता के देहांत के बाद बिजनेस बंद हो गया। इस बुरे वक्त में उनके भाई राजेंद्र दमानी ने इनका साथ दिया। फिर दमानी भाइयों ने स्टॉक ब्रोकिंग के बिजनेस में कदम रखा। शुरुआत में दमानी को तनिक भी समझ नहीं थी कि यहां धंधा कैसे किया जाता है? उन्होंने काफी समय तक बाजार की समझ अपने से बुजुर्ग ब्रोकर से जानकारी हासिल कर बनाई। और फिर इन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इन्होंने अपनी सूझ-बुझ और दूरदर्शिता की बदौलत रेजर बनाने वाली जिलेट जैसी कंपनियों में पैसे लगाते हुए करोड़पति बन गये।

खुदरा बाज़ार में कदम रख हुए सफल

दमानी शुरू से ही अपना खुद का कारोबार खड़ा करना चाहते थे लेकिन पैसे की कमी हमेशा बाधा बनती थी। स्टॉक मार्केट से अच्छे पैसे बनाने के बाद उन्होंने साल 2000 में खुदरा बाजार में घुसने का मन बनाया और इसकी तैयारी में जुट गए। छोटे कारोबारियों और दुकानदारों से बातचीत करने के बाद उन्होंने छोटे शहरों पर ध्यान केंद्रित करते हुए डी-मार्ट के बैनर तले खुदरा बाज़ार में कदम रखा।

क्या है डी-मार्ट और कैसे इसने रिटेल बाज़ार में अंबानी, बिरला जैसों को पटखनी दी

आज देश के 45 शहरों में डी-मार्ट के लगभग 118 स्टोर हैं। डी-मार्ट ने अपने स्टोर के लिए कभी कोई जगह किराए पर नहीं ली। जब जहां स्टोर खोला इसके लिए अपनी जगह खरीद ली। इससे कंपनी को ज्यादा प्रॉफिट करने में सहोलियत हुई क्योंकि किराए में एक बड़ी रकम चली जाती। इतना ही नहीं इस पैसे की मदद से इन्होंने अपने स्टोर पर मौजूद सामान को कम दाम में भी देने में सक्षम बने। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि आज इनकी रिटेल समूह मुनाफे में रिलायंस रिटेल, फ्यूचर रिटेल और आदित्य विड़ला रिटेल समूह को काफी पीछे छोड़ चुकी है।

इनके यहाँ काम करने वाले सारे कर्मचारी ऐसे बने लखपति और करोड़पति

दरअसल कंपनी द्वारा आईपीओ जारी करने के बाद सिर्फ दमानी व उनके परिवार की ही लाटरी नहीं निकली बल्कि उनके तमाम अफसर व कर्मचारी भी रातों-रात लखपति, करोड़पति बन गए। इनमें डी-मार्ट के प्रबंध निदेशक नेविल नरोना भी है जिनके शेयरों की कीमत 900 करोड़ रुपए हो गई है। नरोना एक दशक पहले हिंदुस्तान यूनीलिवर कंपनी छोड़कर दमानी के साथ जाने का जोखिम लिया था। उनके वित्तीय सलाहकार 200 करोड़ के मालिक हो गए हैं जबकि लखपति बनने वालों की तादाद हजारों में है। कंपनी की वैल्यूएशन 40,000 हजार करोड़ के पार है।

क्या है दमानी का सफलता-मंत्र

आमतौर पर सुर्ख़ियों से दूर रहने वाले दमानी हमेशा साधारण जीवन जीने में यकीन रखते हैं। दमानी का हमेशा से यही मानना रहा है कि आनन-फानन में आकर पूरे देशभर में कारोबार फैलाने से बेहतर पहले जिन एरिया में सर्विस मौजूद है उन्हीं को सुधारने पर ध्यान लगाया जाए तो इससे बिज़नेस में काफी तेजी से प्रगति देखने को मिलती है।

और इसका जीता-जागता उदाहरण हैं राधाकृष्ण दमानी जिन्होंने एक ही झटके में अनिल अंबानी, अजय पीरामल, राहुल बजाज जैसे देश के दिग्गज को पीछे छोड़ दिया।

इनकी सफलता को देखकर हमें यह सीख मिलती है कि कठिन परिश्रम और दृढ इच्छाशक्ति से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।

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