SHIVANGI JAIN - BUSUNESS TYCOON
25 हजार रुपए से शिवांगी ने तीन साल पहले शुरू किया था ट्रैकिंग सॉल्यूशन स्टार्टअप; अब तक 60 लाख का बिजनेस कर चुकी हैं
शिवांगी जैन, 28 साल की यंग एंटरप्रेन्योर हैं, फरवरी 2018 में उन्होंने अपने स्टार्टअप ‘एमपीप्स’के जरिए ट्रैक ऑलवेज नाम का एक ट्रैकिंग सॉल्यूशन सॉफ्टवेयर तैयार किया। तीन सालों में वे अलग-अलग तरह के व्हीकल में एक हजार से ज्यादा ट्रैकिंग डिवाइस इंस्टॉल कर चुकी हैं।
शिवांगी ने ऑटोमोटिव डिजाइन में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद कई बड़ी कंपनियों में पांच साल नौकरी की
2018 में नौकरी छोड़ अपना स्टार्टअप ‘एमपीप्स’ शुरू किया, जो ट्रैकिंग सॉल्यूशन के लिए साॅफ्टवेयर व डिवाइस तैयार करता है
आज की कहानी है मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में रहने वाली 28 साल की यंग एंटरप्रेन्योर शिवांगी जैन की। साल 2014 में यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडी (UPES) देहरादून से ऑटोमोटिव डिजाइन में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। इसके बाद करीब 5 साल तक सोसाइटी ऑफ ऑटोमोटिव इंजीनियर्स इंडिया और एलएंडटी ग्रुप जैसी कंपनियों में नौकरी की। इसी दौरान शिवांगी को समझ आया कि वो अपने क्रिएटिव माइंड का इस्तेमाल नहीं कर पा रही हैं तो साल 2018 में नौकरी छोड़कर वापस भोपाल आ गईं।
इसी साल शिवांगी को एक प्रॉब्लम देखकर उसके सॉल्यूशन के लिए स्टार्टअप का आइडिया आया और उन्होंने फरवरी 2018 में अपने स्टार्टअप ‘एमपीप्स’ के जरिए ट्रैक ऑलवेज नाम का एक ट्रैकिंग सॉल्यूशन सॉफ्टवेयर तैयार किया। तीन साल में वे अलग-अलग तरह के व्हीकल में एक हजार से ज्यादा ट्रैकिंग डिवाइस इंस्टॉल कर चुकी हैं और अब तक करीब 60 लाख रुपए का बिजनेस कर चुकी हैं।
ट्रैक ऑलवेज एप से यूजर मोबाइल पर डिवाइस की लोकेशन से लेकर उसे ऑन-ऑफ तक कर सकता है।
फैमिली में हुई प्रॉब्लम को देख के आया था बिजनेस आइडिया
शिवांगी ज्वाइंट फैमिली में रहती हैं, उनके परिवार में हर सदस्य कोई न कोई बिजनेस करता है। बिजनेस आइडिया के बारे में वो बताती हैं, ‘एक दिन मेरी चाची का छोटा बेटा जो स्कूल में पढ़ता था, उसकी बस लेट आई। चाची उसे रोजाना बस स्टॉप पर लेने जाती थीं, लेकिन उस दिन बस टाइम से नहीं आई तो घर में अफरा-तफरी मच गई। स्कूल फोन किया तो पता लगा कि बस तो स्कूल से निकल चुकी है। इन सबके बीच मेरी चाची रोने लगी, करीब दो घंटे बाद बाद जब बस आई तो पता चला कि बस का रास्ते में ब्रेकडाउन हो गया था।
उसी दिन मुझे अपने स्टार्टअप का आइडिया आया कि पैरेंट्स अपने बच्चे को लेकर कितना परेशान रहते हैं। क्यों न कोई ऐसा तरीका निकाला जाए जिससे पैरेंट्स को पता रहे कि उनका बच्चा कहां है। चूंकि मैं ऑटोमोटिव डिजाइन की पढ़ाई कर चुकी थी तो मैंने एक ट्रैकिंग सिस्टम के बारे में सोचा। फिर रिसर्च किया तो पता चला कि इंडिया में इंडस्ट्रियल इस्तेमाल के लिए ये सिस्टम ज्यादा हैं, कॉमर्शियली यूज के लिए बहुत कम है। मैंने सोचा कि इसे एक कॉमन मैन के लिए लेकर आएं और उसकी जरूरत के हिसाब से ट्रैकिंग सिस्टम को डिजाइन करें। इसी मकसद के साथ मैंने फरवरी 2018 में ‘ट्रैक ऑलवेज’ के नाम से एक ट्रैकिंग सॉल्यूशन कंपनी की शुरुआत की। इसी नाम का हमने एंड्रॉयड और आईओएस के लिए ऐप भी बनाया।'
कैसे काम करता है ‘ट्रैक ऑलवेज’
इसके जरिए कस्टमर को एक ट्रैकिंग डिवाइस दी जाती है, जिसे व्हीकल में फिट किया जाता है। इसके बाद उसे मोबाइल एप से मॉनिटर कर सकते हैं। इसमें गाड़ी किस रूट पर है, कितने किलोमीटर चली है, इसके अलावा आप एप से ही गाड़ी के इंजन को बंद कर सकते हैं। शिवांगी ने जीपीएस वॉच भी डिजाइन की है, जो बच्चों के साथ-साथ अल्जाइमर और डिमेंशिया के पेशेंट को मॉनिटर करने के लिए भी कारगर है। इसके अलावा एम्प्लाई ट्रैकर, पालतू जानवरों के लिए कॉलर ट्रैकर भी डिजाइन किए हैं। उनका स्टार्टअप फीमेल सेफ्टी डिवाइस पर भी आरएंडडी कर रहा है।
वर्तमान में शिवांगी के स्टार्टअप में 5 लोगों की टीम काम करती है, प्री-कोविड उनके पास 15 लोगों की टीम थी।
25 हजार रुपए से शुरू किया था स्टार्टअप
स्टार्टअप के शुरुआती दिनाें के बारे में शिवांगी बताती हैं, ‘उस वक्त मेरी टीम में मेरा एक टेक्नीशियन और मैं हुआ करती थी। हम दोनों स्कूटी पर जाते थे, मैं सेल्स का काम देखती थी और वो डिवाइस फिट करता था, फिर हम लैपटॉप से डिवाइस को वहीं ऐप से कनेक्ट करके कस्टमर को दिखाते थे। यह स्टार्टअप मैंने 25 हजार रुपए से शुरू किया था जो कि मेरी सेविंग्स के पैसे थे। दो लोगों के साथ शुरू हुए इस स्टार्टअप में प्री-कोविड 15 लोगों की टीम काम करती थी, लेकिन वर्तमान में हमारे पास 5 लोगों की टीम है। इन तीन सालों में हम एक हजार से ज्यादा डिवाइस इंस्टॉल कर चुके हैं और इससे करीब हमने अब तक 60 लाख रुपए का बिजनेस किया है। इसमें कोविड का भी एक साल शामिल है, जिसमें बहुत ही कम बिजनेस हुआ था।
शिवांगी आगे बताती हैं, ‘शुरुआत में तो हमने स्कूल-कॉलेज के लिए ही काम किया। इसके बाद मुझे समझ आया कि जीपीएस का इस्तेमाल तो और भी कई जगह हो सकता है। लिहाजा हमनें माइनिंग, पैकर्स एंड मूवर्स, एंबुलेंस और पर्सनल व्हीकल सेफ्टी जैसे सेक्टर में भी फोकस किया। इसके बाद हमने हार्वेस्टर एग्रीगेटर्स और मप्र के उपचुनावों में ईवीएम व्हीकल की ट्रैकिंग के लिए भी काम किया।’
कस्टमर सर्विस और यूजर इंटरफेस ही हमारी यूएसपी
ऑनलाइन मार्केट में ऐसी डिवाइस की भरमार है तो शिवांगी का स्टार्टअप इससे अलग कैसे है, इस बारे में वो कहती हैं कि ये एक सॉफ्टवेयर एज ए सर्विस (SAS) बिजनेस है। इस तरह के बिजनेस में सबसे महत्वपूर्ण होता है क्लाइंट को सर्विस देना। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर डिवाइस तो मिल जाती है, लेकिन उसमें कुछ खामी आ जाए तो वो हफ्ते भर का समय लेंगे और हम उन्हें ऑन द स्पॉट लोकल सपोर्ट उपलब्ध कराते हैं। इसके अलावा हमारा यूजर इंटरफेस बहुत आसान है, इसे कोई भी ऑपरेट कर सकता है। यही हमारे स्टार्टअप की खासियत है। हमारी डिवाइस 3500 रुपए से लेकर 50 हजार रुपए तक है, हर डिवाइस की अलग-अलग खासियत है। बेसिक डिवाइस में सिर्फ ट्रैकिंग मिलती है और टॉप मॉडल में एसी, गेट और लाइट सेंसर होते हैं, डीजल-पेट्रोल की मॉनिटरिंग की जा सकती है।
शिवांगी ने साल 2014 में यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडी देहरादून से ऑटोमोटिव डिजाइन में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है।
प्राइवेसी प्रभावित न हो इसलिए नॉन डिस्कलोजर एग्रीमेंट साइन करते हैं
अगर किसी कंपनी की ट्रैकिंग डिवाइस है तो उससे यूजर की प्राइवेसी भी खतरे में आती है, क्योंकि इस डिवाइस की मदद से सभी चीजें यूजर देख सकता है, वो कंपनी का सर्वर भी देख सकता है। प्राइवेसी के सवाल पर शिवांगी कहती हैं, ‘जहां डेटा बहुत सेंसटिव होता है, वहां हम नॉन डिस्क्लोजर एग्रीमेंट (NDA) साइन करते हैं। इसके मुताबिक अगर उनके डेटा का कहीं गलत इस्तेमाल होता है जो इसके लिए सीधे तौर पर हम जिम्मेदार होंगे। वहीं अगर कोई अपने व्हीकल में ट्रैकिंग डिवाइस लगवाता है तो हम उससे, गाड़ी का रजिस्ट्रेशन, आधार कार्ड भी लेते हैं, ताकि फ्रॉड की आशंका न हो।’
अब अलग-अलग राज्यों में डीलरशिप पर फोकस है
शिवांगी बताती हैं, ‘हमें स्टार्टअप के शुरुआत में ही भोपाल स्थित इन्क्यूबेशन सेंटर ‘बी-नेक्स्ट’ में जगह मिल गई थी, लेकिन हमने अगस्त 2019 में यहां ऑफिस शिफ्ट किया, यहां आकर हमें मेंटरिंग, पिचिंग सेशन से लेकर फंडिंग तक में मदद मिलती है। यहां आकर हमारे स्टार्टअप को काफी विजिबिलिटी मिली है। वर्तमान में मप्र और बिहार के कुछ जिलों में हमारे डीलर्स हैं। अब हम अपने बिजनेस को बढ़ाने के लिए डीलरशिप पर फोकस कर रहे हैं। इसके अलावा गवर्नमेंट और डिफेंस सेक्टर में भी काम करने की तैयारी में हैं।'
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