SANT RAMCHARAN MAHARAJ - संत रामचरण जी महाराज
राजस्थान में संत रामचरण जी महाराज रामस्नेही सम्प्रदाय के संस्थापक थे और वो भी सेठ समाज से ही थे।वें स्वामी राम चरण जी महाराज के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनका मूल नाम रामकिशन विजयवर्गीय था।इनका जन्म माघ शुक्ल 14, विक्रम संवत् 1776 में टोंक जिले में सोडा गाँव में हुआ था।निर्वाण वैशाख कृष्णा 5 विक्रम संवत् 1855 (1799) ईसवीं को शाहपुरा भीलवाड़ा में एक सेठ परिवार में ही हुआ था।ये रामद्वारा शाहपुरा के संस्थापक आचार्य थे।
इनके बचपन का नाम रामकिशन था एवं पिताजी का नाम बख्तराम विजयवर्गीय एवं माता का नाम देवहुति देवी था।इनका विवाह गुलाब कंवर के साथ हुआ।शादी के बाद आमेर के जयसिंह द्वितीय ने जयपुर के मालपुरा के दीवान पद पर नियुक्त किया।
पिताजी की मृत्यु के बाद भौतिकवाद के प्रति राम चरण जी की रूचि कम होने लगी। कुछ समय बाद ही इन्होने संन्यास ग्रहण कर लिया और शाहपुरा के निकट उन्होंने दांतड़ा गाँव में गुरु कृपाराम जी के सम्पर्क में आये और उनके शिष्य बन गए।भीलवाड़ा में मियाचंद जी की पहाड़ी पर उन्होंने तपस्या की।
राम चरण जी ने निर्गुण भक्ति पर जोर दिया लेकिन सगुण का भी इन्होने विरोध नही किया।लोगों को राम राम शब्द बोलने के लिए प्रेरित किया। स्वामी जी ने विशिष्ट अदैवतवाद भक्ति परम्परा का अनुसरण किया।श्रीराम की स्तुति का प्रचार किया। राम की स्तुति के फलस्वरूप इनके द्वारा स्थापित सम्प्रदाय रामस्नेही के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
विनतीरामजी द्वारा लिखित जीवन चरित्र पुस्तक में इनके विवाह का उल्लेख किया है।इनका विवाह चांदसेन नामक ग्राम में, एक सम्पन्न परिवार में सेठ गिरधारीलाल खूंटेटा की कन्या गुलाब कंवर बाई के साथ हुआ।इस अवधि के आपके एक पुत्री का जन्म हुआ जिनका नाम जडाव कंवर था। केवल श्री जगन्नाथ जी कृत गुरू लीला विलास में इसका उल्लेख मिलता है।
इन्होने ने जयपुर राज्य के अन्तर्गत किसी उच्च पद पर निष्ठा पूर्वक राजकीय सेवा की।कुछ अन्य लेखकों एवं श्री लालदास जी की परची के अनुसार उन्होंने जयपुर राज्य के दीवान पद पर काम किया।उनके पिता के मोसर के अवसर पर राज्य की ओर से टीका पगडी का दस्तूर आना इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि वे किसी सम्मानित पद पर आसीन थे।राम चरण जी की रचनाओं का संकलन वाणी जी ने राम में संकलित है।इसका प्रकाशन शाहपुरा भीलवाड़ा से रामचरण जी महाराज की अभिनव वाणी के नाम से प्रकाशित है।विक्रम संवत् 1817 में राम चरण जी के शिष्य रामजान जी ने चरण जी महाराज के सिद्धांतो के प्रसार की दृष्टि से विशेष प्रयास किया।राम चरण जी महाराज ने कहा कि बिना किसी भेदभाव के कोई भी व्यक्ति रामद्वारा आकर ईश्वर की पूजा कर सकता है। रामस्नेही शब्द का तात्पर्य राम से स्नेह करना है।
इनके गुरु कृपाराम जी महाराज थे जिन्होंने इन्हें राम भक्ति की शिक्षा दी। सं. 1817 में ये भीलवाडा गये और वहीं अपनी अणभैवाणी की रचना की। इनके निवास हेतु वि. सं. 1822 में देवकरण जी तोषनीवाल ने रामद्वारा का निर्माण कराया गया।दीक्षा लेने के बाद इन्होंने कठोर साधना की और अन्त में शाहपुरा में बस गए।इन्होंने यहां पर मठ स्थापित किया तथा राज्य के विभिन्न भागों में रामद्वारे बनवाए।इस प्रकार वे अपने विचारों तथा राम नाम का प्रचार करते रहे।
स्वामीजी रामचरण जी महाराज वैषाख कृष्ण पंचमी गुरूवार सं. 1855 को शाहपुरा में ही ब्रहम्लीन हुए।इनके बारे में अधिकतर जानकारी विनतीरामजी द्वारा लिखित जीवन चरित्र पुस्तक और श्रीजगन्नाथजी कृत गुरु लीला विलास में मिलती है।
SABHAR: NARSINGH SENA
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