NEMA VAISHYA - नेमा वैश्य
नेमा अथवा नीमा एक भारतीय उप जाति एवं व्यवसायिक गतिविधियों से जुड़ी हुई जाति है जो मूल रूप से मध्यप्रदेश में पाई जाती है । उनका यह नाम उन्हें उनके पूर्वज निमि ऋषि से मिला है । नेमा का तात्पर्य है नियम से रहने वाले व्यक्ति और ये नियम वही हैं जो भृगु ऋषि के द्वारा तत्समय बनाये गये थे ।
उत्पत्ति
नेमा समाज की उत्पत्ति के संबंध में निमाड़ क्षेत्र में एक कथा कही जाती है और इस पर कोई संदेह भी नहीं किया जा सकता क्योंकि वहां अभी भी अनेकों नेमा परिवार रह रहे है । ऐसा कहा जाता है कि एक बार जब परशुराम जी ने सभी क्षत्रियों को मारना प्रारंभ किया था तब 14 राजपूत राजकुमार जो उस समय महर्षि भृगु के आश्रम में धर्म की शिक्षा ग्रहण कर रहे उन्हें परशुराम जी द्वारा छोड़ दिया गया वे वहां अपने कुलगुरूओं के साथ थे इन राजकुमारों ने बाद में क्षत्रिय वर्ण को छोड़कर वैश्य वर्ना अपना लिया । नेमा जाति के 14 गोत्र उन चौदह राजकुमारों के नाम पर ही रखे गये । हालांकि गोत्र उनके कुलगुरूओं के नाम से जाने जाते है जिनके कारण उनका जीवन बच गया था । नेमा समुदाय के लोगों का स्वाभाव बहुत कुछ ब्राम्हणीय गुणों से भरपूर होता है और ऐसा होना स्वाभाविक भी है क्योंकि उन राजकुमारों को भृगु ऋषि ने अपने आश्रम में शिक्षा दी थी ।
नेमा वैह्या परिवारों के नाम जो गोत्र के रूप में जाने जाते है
कुल गुरू जिन्होंने उन क्षत्रियपरिवारों को बचाया
1
सेठ
मोरध्वज
2
पटवारी
कैल़ऋषि
3
मलक
रघुनन्दन
4
भौरिया
वासन्तन
5
खिरा
बालानन्दन
6
ड्योढ़या
शांडिल्य
7
चंदेरिया
शान्तनु, तुलसीनन्दन
8
ट्योठार
गर्ग
9
रावत
नन्दन
10
भंडारी
विजयनन्दन
11
खडेरिया
सनतनन्दन
12
चैसा
शिवनन्दन
13
किरमानिया
कौषल
14
टेटवार
वशिष्ठ
नेमा अथवा नीमा लगभग सभी स्थानों में वैवाहिक संबंधों को तय करने में उपरोक्तानुसार ही गोत्र पद्धति अपनाते हैं मध्यप्रदेश के मध्यक्षेत्र में इसे नेमा उच्चारित किया जाता है जबकि मालवा एवं गुजरातके आसपास के क्षेत्र में इसे नीमा उच्चारित किया जाता है ।
इतिहास
नेमा मुख्यतः विभिन्न राजाओं के कार्यकाल में वाणिज्यिक व्यवसाय करते रहे है। उस समय उन्हें सेठ और महाजन के नाम से भी जाना जाता था वे उन राजाओं को धन कर्ज के रूप में उपलब्ध कराते थे जिनके पास कमी होती थी । उन्होंने अपनी अर्थव्यवस्था से उस समय की राजनीति को भी प्रभावित कर रखा था । उनमें से राणा प्रताप के समय के भामाषाह का नाम बहुत प्रसिद्ध है ।
नेमा जाति का मूल स्थान वर्ष 1700 एडी और 1800 एडी के मध्य जयपुर राज्य में था । जयपुर में राजपूत राज्य के पतन होने के साथ ही बहुत बड़ी संख्या में नेमा जाति का पलायन जयपुर से मध्य भारत की ओर हुआ । इस पलायन में बनिया एवं राजपूतों की संख्या अधिक थी । नेमा जाति ने मध्य भारत एवं गोडवाना क्षेत्र में राजाओं एवं सैनिकों को बसने के लिये आमंत्रित किया । पाटन के युद्ध में मराठा एवं होल्कर राजाओं ने राजपूत और मुगलों को परास्त कर दिया और राजपूतों के स्वतंत्रता की आशा को चकनाचूर कर दिया । प्रथम विश्व युद्ध के समय अनेक स्थानीय लोगों को अफ्रीका आस्ट्रेलिया मारीशस एवं अन्य देशों में जहाज के रास्ते भेजा गया उनमें भी अनेक नेमा थे । नेमा संपूर्ण विश्व में रहते हुये भी अपने नियमों आचरणों तथा भाषा एवं धर्म के पालन के लिये पहचाने जाते हैं । एक आम कहावत है कि सभी नेमा नरसिंहपुर से है यह कहावत सभी नेमाओं को उनकी मातृ भूमि से जोड़े रहने को प्रदर्शित करती है ।
जाति व्यवस्था
नेमा जाति व्यवस्था पूरे भारत में अनोखी है । नेमाओं की अधिकाधिक संख्या सागर दमोह नरसिंहपुर एवं सिवनी जिलों में निवास करती है । अधिंकाष नेमा मध्य भारत से ही संबंध रखते है । नेमा मूलतः व्यापार के लिये जाने जाते है कहावत है कि जहां भेड़े चर गई हो या नेमा ने व्यापार कर लिया हो वहां किसी और के लिये क्या बचेगा । नेमा अपनी बुद्धिमत्ता, ईमानदारी एवं कड़ी मेहनत के लिये जाने जाते है । नेमा परिवारो में वकील, बैंक अधिकारी, डाक्टर , इंजीनियर, साफटवेयर प्रोफेषनल एवं व्यापारी है । कुछ नामी नेमा परिवार अपने अपने क्षेत्रों में अपनी एक विषेष पहचान रखते है । खासकर मध्य प्रदेश के मध्य क्षेत्र में जैसे सागर के लहरी, नरसिंहपुर के चैधरी, मोदी एवं पुरावाले, भोपाल और जबलपुर के गुप्ता, नरसिंहपुर के बड़े घर, मझले, संझले और नन्हे और खिरा, सतना के नायक, बेदू के चैधरी, करेली के भौरिया, सेठ और मंदिर वाले तथा मेघ की बाखर वाले इत्यादि
नेमा परिवार नरसिंहपुर, भोपाल, जबलपुर, सतना, सागर, बालाघाट, छिंदवाड़ा, सिवनी, भिलाई, रायपुर, करेली, गाडरवारा, अमरवाड़ा, आदेगांव, बेदू, मेख, सिंगपुर, गोटेगांव, धमना, नादिया, उदयपुरा इत्यादि स्थानों पर बहुतायत में बसे है । विदर्भ क्षेत्र में जैन नेमा परिवार भी अमरावती अकोला एवं नागपुर में भी कुछ संख्या में बसे है इनकी भाषा मराठी एवं राजस्थानी से मिलती जुलती लगती है ।
संक्षेप में अगर कहें तो
नेमा परिवार के पूर्वज वह क्षत्रिय परिवार है जो पूर्ण नियमों का पालन करते रहे अर्थात नियमा बने रहे और इस नियमा शब्द के अपभ्रंश को ही नेमा से जाना जाता है ।
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