AGRAWAL CHOUDHRY "अग्रवालों की चौधरी प्रथा"
हम अग्रवालों में कुछ समय पूर्व चौधरी प्रथा हुया करती थी ..... हर गाँव कस्वा और शहर में सम्पूर्ण अग्रवाल समाज एक चौधरी का चयन करता था..... चौधरी साब का काम समाज की उंच नीच को देखना , सम्बन्धित व्यक्ति को आग्रह या अनुरोध द्वारा समाज की परम्परा का पालन कराना ..... समाज के सम्मान व एकता के भाव पैदा करते हुए सम्पूर्ण समाज के गार्जियन की भाँती हुया करता था
समाज में किसी के यहाँ कोई भी शादी विवाह या कैसा भी समारोह होता था तब इन चौधरी साब का विशेष दायित्व होता था कि समाज का कोई भी व्यक्ति वहाँ शामिल होने छूट ना जाय,,,,, चाहे मेजवान को बुरा लगे या भला लेकिन चौधरी साब हर छोटे बड़े को उस समारोह में शामिल करा के ही मानते.... यदि मेजवान एतराज करता तो उसको सामजिक दंड मिलता था या सम्बन्धित व्यक्ति ना नुकुर करता तो उसका दायित्व निर्धारित होता था
एक नामकरण संस्कार के भोज में चौधरी साहब गये..... भट्टी पर गये वहां हलवाई से बातचीत की , मेजवान से बात कर दावत का मीनू जाना .... अपने हिसाब से जो उचित समझा वो निर्देश दिए
पंडाल में पहुंचे वहा विछावन की व्यवस्था देखी......
रिश्तेदारों से मुलाक़ात कर उनके हाल चाल लिए ..... ‘’वो छोटे वाले मामा ना दिख रये ..... वो बड़ी लाली वाले दमाद नाएं आये का ..... ‘भाई वो तेरी हाथरस वाली मौसी काँ एँ है दिख नाएँ रईं ..... ‘अरे वो मथुरा वारे फूफा काएँ भाई , हमसे तौ मिलवा .....
मजाक के साथ साथ अपना बड़प्पन कभी नहीं भूलना चौधरी पद का स्वाभाव हुया करता था.....
अब चौधरी साब ने लोकल समाज के लोगों पर ध्यान देना शुरू किया ..... ‘अरे वो मुंशी लाल काएँ .... बांके लाल नाएं दीख रये ...... और वो उमेश के तीनों भईया भी न दिखे ........ रमन सेठ चौ नाएं रुके ......
अब बातों ही बातों में मालूम होता है कि चन्दो लाला नहीं आये चने वाले ....
बता दूँ वे चन्दो लाला जो कि गुडहाई के कौने पर पटरी पर फड़ लगा कर भुने चने परमल लायी अदि बेचते थे ....
चौधरी साब ने मेजवान से पूछा .... मेजवान ने बात घुमाने की कोशिस की .... नाई के ऊपर बहाना डाला .... लेकिन चौधरी साब की गर्दन हिलती रही ... वे संतुष्ट नहीं हुए .... उन्होंने मेजवान को आदेश दिया ‘चलो मेरे संग ‘
चौधरी साब मेजवान को लेकर चल दिए .... साथ में समाज के कुछ और लोग भी लग लिए .....
चौधरी साब ने रास्ते में पड़ने वाले एक दूसरे चने के फड़ से भुने चने लेकर पुडीया में बांध कर अपनी जेब में रख लिए .....
अब साब चौधरी साब चन्दो लाला के फड पर पहुँच कर वहीँ बैठ गए ..... चनों का भाव पूछा .... फिर पूछा ‘कितने चने रोज भुनवा कर दे दोगे....
चन्दो लाला ने पूछा “कैसे चाहिए”
चौधरी साब ने वे फट से जेब से नमकीन चनों की पुड़िया निकाल कर चंदो लाला के सामने कर दी .... चंदो लाला ने उसमें से दो चार चने चख लिए
खैर अब चौधरी साब मूल विषय पर आये .....
‘भौत बड़ी गल्ती है गयी है
“मतलब
‘अरे जा लक्खो के हियाँ आज छोरा के नामकरण की दावत एं जे तुमें नौतौ देवौ भूल गयौ .... में किशन प्रसाद हूँ तुम सबकौ सेवक
अब चंदो लाला ने चौधरी किशन प्रसाद नाम सूना तो वे अवाक रह गए ..... वे बिलबिला गये समझ में नहीं आ रहा था वे करें तो करें क्या ...... अपनी साफी ही वहां धरती पर विछा दी “चौधरी साब आप हमारे समाज की नांक औ ...हमारे पगड़ी औ .... आप ऐसी मत बैठौ...... “
चौधरी साब वोले ‘चलौ अब दूकान भडाऔ(बंद करो) ... और चलौ हमारे संग चलौ , जे लक्खो लाला भी संग आये एं तुमकू लेवे कूँ
चंदो लाला के टप टप आंसू टपकने लगे ..... रुंधे गले से बोले “आपके यहाँ आवे सै यी में धन्य है गयौ पर मेरे अपमान कू मोये एसई मत भूलन देओ..... मेरौ अपमान जानबूझ कै भयौ ए.... और वैसी भी का लायक हूँ इनके
चौधरी साब ने लक्खो लाला को आदेश दिया मांफी मांगने का ..... और कह दिया हम भी यहाँ से नहीं जायेंगे
लेकिन चन्दो लाला थे तो फड़ पर भुने चबैने बेचने वाले लेकिन अहमक बहुत थे ..... नहीं माने वे
तब आखिर चौधरी सब ने अंतिम अस्त्र छोड़ा ‘भाई चंदो तूनै हमारौ नामक खायौ ए ध्यान रखियो
चन्दो लाला ने अचरज भरी निगाह डाली
चौधरी साब मुस्करा के बोले ‘चौं जे चना नायें चखे का अभिहाल .... जे नमक के नयें हते का ......
और चन्दो लाला हडबडा कर अपना फड़ समेटने लगे .... बोले “सब भईयन सै मांफी मांग रऊँ मैं अभिहाल ही पहोंच रउं”
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सेठ गिरधारी लाल गोयल जी की पुरानी पोस्ट
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