KESARWANI VAISHYA - केसरवानी जाति का इतिहास, केसरवानी शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
बनिया/वैश्य जाति का मुख्य व्यवसाय व्यापार है. वैश्य समुदाय में अग्रवाल, केसरवानी, गुप्ता, जायसवाल, साहू, गुप्ता (तेली) आदि कई उपजातियां शामिल हैं. इस समुदाय के लोग जिन वस्तुओं का व्यापार करते हैं, इसके आधार पर बनिया की विभिन्न उपजातियाँ हैं. उदाहरण के लिए, जो केसर का व्यापार करते हैं वे केसरवानी बन गए. आइए विस्तार से जानते हैं केसरवानी जाति का इतिहास, केसरवानी शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
केसरवानी जाति के इतिहास
केसरवानी (Kesarwani) मुख्य रूप से वैश्य या व्यापारिक समुदाय का एक महत्वपूर्ण समूह/उपजाति (sub-caste) है. इन्हें केसरवानी वैश्य, केसरवानी बनिया, केसरी कश्मीरी बनिया, केशरवानी (Kesharwani), केशरी (keshri), केसरी (Kesari) या केशरी (Keshari) आदि नामों से भी जाना जाता है. रिस्ले (1891) ने इन्हें बिहार में बनिया की उपजाति के रूप में वर्णित किया है. बनिया समुदाय के इस उपजाति का संबंध मूल रूप से कश्मीर घाटी से है. कहा जाता है कि केसरवानी वैश्य कश्मीर क्षेत्र में कश्मीरी हिंदुओं से उत्पन्न हुए. मुगलों के शासन के दौरान यह कश्मीर से पलायन करके उत्तरी भारत के कई क्षेत्रों में आकर बस गए. इस समाज के लोग महर्षि कश्यप में गहरी आस्था रखते हैं. महर्षि कश्यप केसरवानी समाज के गोत्र आचार्य हैं, जिन्होंने वर्षों तक कठोर तपस्या करके भगवान से विभिन्न प्रकार की सिद्धियां और शक्तियां अर्जित की थी. महर्षि कश्यप ने भगवान से प्राप्त शक्तियों का उपयोग मानव कल्याण के लिए किया था.
केसरवानी शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
केसरवानी शब्द के शब्द-व्युत्पत्ति की बात करें तो इस शब्द की उत्पत्ति “केसर + वानी” से हुई है. “केसर” (saffron) एक प्रकार का मसाला (spice) है जिसे क्रोकस सैटाइवस (Crocus sativus) नाम के पौधे के फूल से निकाला जाता है. “वानी” का अर्थ होता है- “बेचने वाला या व्यापार करने वाला”. इस प्रकार से “केसर के व्यापारी होने” के कारण इस समुदाय का नाम “केसरवानी” पड़ा. कश्मीर से मिले नक्काशीदार पत्थर, जो वर्तमान में पाकिस्तान के एक संग्रहालय में है, पर केसरवानी समुदाय के इतिहास के बारे में उल्लेख किया गया है. पत्थर पर उत्कीर्ण जानकारी के अनुसार, केसरवानी केसर के किसान या व्यापारी (Trader) थे और भारत की कश्मीर घाटी से उत्पन्न हुए थे. 12 वीं शताब्दी में, इस समुदाय के कई लोग आज के दिल्ली, बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में जाकर बस गए. इस समुदाय के कुछ लोग दावा करते हैं कि मूल रूप से यह कश्मीरी ब्राह्मण हैं जो सैकड़ों साल पहले कश्मीर से विस्थापित होकर देश के विभिन्न भागों में बस गए. इनका कहना है कि यह मूल रूप से कश्मीर के बनिहाल के रहने वाले थे, इसीलिए बनिया कहलाए. जिस तरह से गुजरात में रहने वाले गुजराती, बंगाल में रहने वाले बंगाली कहलाते हैं, उसी तरह से बनिहाल में रहने वाले बनिया कहलाए. इनमें से कईयों का कहना है कि यह बनिहाल और पाक अधिकृत कश्मीर के हुंजा वैली के आसपास के निवासी थे जहां रहने वाले लोग आज भी 150 साल तक जिंदा रहते हैं। इतिहासकार इस बात से सहमत हैं कि वानी/वेन (Wani/Wain) बनिया की व्यापारी जाति के हैं, और मूल रूप से कश्मीरी हिंदू थे. जैसे कि केसर-वानी (केसर बेचने वाले), ताल-वैन (तेल बेचने वाले), आदि जैसी कई उपजातियां हैं. इस समूह के सदस्यों द्वारा विभिन्न व्यवसायों को अपनाने के कारण विभिन्न शाखाएँ या उपजातियां अस्तित्व में आईं.केसर की खेती और व्यापार से जुड़े होने के कारण ऐतिहासिक रूप से केसरवानी एक समृद्ध समुदाय था.बता दें कि केसर एक सुगंध देनेवाला पौधा है जिसका मूल स्थान दक्षिण यूरोप है, हालांकि इसकी खेती स्पेन, इटली, ग्रीस, तुर्किस्तान, ईरान, चीन तथा भारत में होती है. भारत में केसर की खेती मुख्य रूप से केवल जम्मू(किश्तवाड़) तथा कश्मीर (पामपुर/पंपोर) के सीमित क्षेत्रों में की जाती है. केसर यहां के लोगों के लिए वरदान है. क्योंकि केसर के फूलों से निकाला जाता सोने जैसा कीमती केसर जिसकी कीमत बाज़ार में तीन से साढ़े तीन लाख रुपये किलो है.
केसरवानी जाति की वर्तमान स्थिति
विभिन्न कारणों से, विशेष रूप से इस्लामिक आक्रांताओं से बचने के लिए, इस समुदाय के लोगों को कश्मीर से पलायन करना पड़ा और यह केसर के व्यापार और खेती से दूर हो गए. इससे इनके सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर विपरीत प्रभाव पड़ा. एक व्यापारिक समुदाय होने के कारण केसरवानी किसानों की तरह सीधे प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर नहीं है. रोजी रोटी की तलाश में इनमें से कई महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में जाकर बस गए. शैक्षणिक, सामाजिक, राजनैतिक रूप से पिछड़ेपन के आधार पर इस समुदाय के लोग लंबे समय से आरक्षण व्यवस्था के अंतर्गत पिछड़ा वर्ग में शामिल करने की मांग कर रहे हैं.
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