KANIRAM NARSINGHDAS HAWELI JHUNJHNU - VAISHYA BANIYA HERITAGE
हवेली : इतिहास और खूबसूरती
इस प्राचीन और भव्य हवेली का निर्माण झुंझनूं के एक प्रसिद्ध व्यापारी नृसिंहदास टीबरेवाल ने 1883 में करवाया था। झुंझनूं में टीबरेवाल क्षेत्र व्यापारियों की सघनता के कारण विख्यात था। उन्नीसवीं सदी के मध्य में शेखावाटी के ज्यादातर व्यापारी अपना कारोबार बढ़ाने के लिए कलकत्ता और पूर्वी क्षेत्रों में चले गए। वहां उन्होंने अपनी पहचान मारवाड़ी उद्योगपतियों के रूप में बनाई। पहचान के साथ साथ उनकी साख भी बढ़ी और वे स्थायी रूप से दूसरे राज्यों या विदेशों में बस गए। तब से ये हवेलियां सरकार के संरक्षण में आ गई।
झुंझनू की कनीराम नृसिंहदास टीबरेवाल हवेली सहित अन्य सभी हवेलियां इतिहास की शानदार कारीगरी और स्थापत्य का अद्भुत नमूना हैं। दूसरे स्थानों पर कारोबार बढ़ने के बाद या तो व्यापारियों ने इन्हें बेच दिया या फिर ताले जड़कर हमेशा के लिए चले गए। जिन हवेलियों का कोई दावेदार नहीं बचा उन्हें सरकार ने अपने अधीन ले लिया। कुछ हवेलियों को होटलों में तब्दील कर दिया गया।
टीबरेवाल हवेली की दीवारों पर उकेरित बेलबूटों पर सोने की पॉलिश की गई थी। यहां दीवारों पर हाथ में दर्पण लिए सुंदर स्त्री, पगड़ी पहने एक पुरूष और दंपत्ति के साथ बच्चों की मौजूदगी के भित्तिचित्र हैं जो इलाके की समृद्धि दर्शाते हैं। यह हवेली कई चौकों से युक्त है। चौक के चारों ओर सुंदर कक्ष बने हुए हैं। बरामदों के स्तंभों के बीच धनुषाकार आकृति बनी है। चौक से छत पर जाने के लिए जीने बने हुए हैं। चौक आम तौर पर खुले और बड़े हैं।
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