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Friday, October 25, 2024

Pansari Ki Haveli SHREE MADHOPUR - VAISHYA BANIYA HERITAGE

पंसारी की हवेली - Pansari Ki Haveli


राजस्थान में शेखावाटी क्षेत्र मुख्यतया अपनी हवेलियों, छतरियों एवं बावडियों के लिए सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है। यहाँ की हवेलियों पर शोध करने के लिए विश्व के कई देशों के लोग नियमित शेखावाटी में आते रहते हैं।

यूँ तो हवेलियों के लिए रामगढ़, मण्डावा, पिलानी, सरदारशहर, रतनगढ़, नवलगढ़, फतेहपुर, मुकुंदगढ़, झुन्झुनू, महनसर, चूरू आदि शहर ही प्रसिद्ध है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि सीकर जिले के श्रीमाधोपुर कस्बे में भी एक हवेली ऐसी है जिसका नाम शेखावाटी की प्रसिद्ध हवेलियों में शुमार है?

इस हवेली को पंसारी की हवेली के नाम से जाना जाता है। इस हवेली की प्रसिद्धि का आलम यह है कि राजस्थान सरकार द्वारा सरकारी नौकरियों के लिए आयोजित विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में सामान्य ज्ञान के प्रश्नों में इस हवेली के सम्बन्ध में कई बार प्रश्न पूछे जा चुके हैं।

अगर आप गूगल पर शेखावाटी की प्रमुख हवेलियों को सर्च करेंगे तो पाएँगे कि लगभग सभी जनरल नॉलेज सम्बन्धी वेबसाइटों ने पंसारी की हवेली को शेखावाटी की प्रमुख हवेलियों में जगह दे रखी है।

शेखावाटी की हवेलियों में इसका नाम प्रमुखता से लिया जाता है लेकिन श्रीमाधोपुर के अधिकतर लोगों को शायद ही इस हवेली के सम्बन्ध में पता हो।

यह हवेली श्रीमाधोपुर में रेलवे स्टेशन रोड पर सब्जी मंडी के पास स्थित है। इस हवेली का मुख्य द्वार मिट्टी का लेवल बढ़ने से थोडा नीचे चला गया है। अक्सर मुख्य द्वार पर मोटा सा ताला लगा हुआ रहता है।

इस हवेली के पास में रहने वाले लोगों को भी नहीं पता है कि वे लोग उस ऐतिहासिक धरोहर के सानिध्य में रह रहे हैं जिसकी वजह से सम्पूर्ण राजस्थान में श्रीमाधोपुर का नाम प्रसिद्ध है।

हवेली दो मंजिला है जिसकी बाहरी दीवारों पर सुन्दर भित्तिचित्र बने हुए हैं। उपरी मंजिल पर ग्यारह अर्ध चंद्राकार झरोखे बने हुए हैं।

इनके ऊपर पत्थर की बारीक जालियों के रोशनदान बने हुए प्रतीत होते हैं जिनमे रंग बिरंगे काँच लगे हुए हैं। इन झरोखों के ऊपर एक पूरा लम्बा छज्जा बना हुआ है। इन झरोखों से लेकर छज्जे के बीच में सुन्दर भित्तिचित्र बने हुए हैं।

इन भित्तिचित्रों में सुन्दर कलात्मक फूल पत्तियाँ, बेल-बूँटे आदि बने हुए है। साथ ही राधा के साथ कृष्ण, गोपियों के वस्त्र लेकर कदम्ब के पेड़ पर बैठे हुए कृष्ण, गणेश जी, सपेरे के साथ-साथ सामाजिक जन जीवन के चित्र शामिल हैं।

नीचे की मंजिल पर टोडों के नीचे सुन्दर चित्रकारी की हुई है। इनमें बेल बूँटों के साथ-साथ शिव पार्वती, मगरमच्छ से लड़ता हुआ पुरुष, चरखा चलाती महिला, दूसरी महिला की चोटी बनाती हुई महिला, हुक्का पान करता पुरुष, परिवार के साथ महिला की पेंटिंग है।

नीचे की दीवार पर मरम्मत होने के कारण अन्य चित्रकारियाँ समाप्त हो गई हैं। समय के साथ मुख्य दरवाजे का लेवल धरातल से कुछ नीचे चला गया है। अन्दर प्रवेश करने पर चौक बना हुआ है।

इस चौक के बीच में से चारों तरफ देखने पर ऊपरी मंजिल, बारादरी के एक तरफ के तीन प्रवेश द्वारों जैसी प्रतीत होती है।

ऊपर जाने के लिए दो जीने बने हुए हैं। ऊपरी मंजिल पर आगे की तरफ वाले कमरे थोड़े बड़े हैं। ये कमरे मुख्य कक्ष प्रतीत होते हैं जिनमे झरोखों की तरफ सुन्दर मेहराब बने हुए हैं।

अन्दर से झरोखों का नजारा अत्यंत सुन्दर लगता है। झरोखों के ऊपर रोशनदानों में लगे हुए रंग बिरंगे काँच, कमरे की भव्यता में चार चाँद लगाते हैं।

कमरों के दरवाजे लकड़ी के बने हुए हैं जो कि ऐतिहासिक प्रतीत होते हैं। दरवाजों के ऊपर पत्थर की जाली का कलात्मक रोशनदान लगा हुआ है।

कमरों के अन्दर दीवारों पर नीचे की तरफ कलात्मक चित्रकारी के फ्रेम से बने हुए हैं। दीवारों पर लकड़ी की कलात्मक खूँटियाँ लगी हुई है। कोने में सामान रखने के लिए दरवाजों युक्त जगह बनी हुई है।

यह हवेली कब बनी थी और किसने इसे बनवाया था, इसकी जानकारी हमें नहीं मिल पाई है परन्तु जैसा कि इसके नाम से विदित होता है, इसका ताल्लुक जरूर किसी पंसारी परिवार से रहा है।

जिस प्रकार पुरानी धरोहरों को तोड़कर उनकी जगह कमर्शियल या रेजिडेंशियल भवन बन रहे हैं, पता नहीं कब तक यह हवेली अपने इस मूल स्वरुप में रहकर श्रीमाधोपुर का नाम राजस्थान में रोशन करती रहेगी।

स्थानीय नागरिकों के साथ-साथ प्रशासन को भी अपनी इन विरासतों को सहेजकर अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए।

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