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Tuesday, April 21, 2020

AGRAWAL & KAYASTH - अग्रवाल और कायस्थ

महाराज अग्रसेन और भगवान चित्रगुप्त

(अग्रसेन और चित्रगुप्त परिवार की तस्वीर)

अग्रवाल और कायस्थ इन दोनों जातियों का इतिहास हमेशा समांतर ही चला, दो कायस्थ और अग्रवाल जब मिलते है तो उनमें एक गहरी दोस्ती बन जाती है। पोस्ट से पहले सूचना है कि आंकलन करते समय पुराणों की सहायता नाम मात्र की ली गयी है पुराणों को ऐतिहासिक रूप से नकारा गया है।

शुरुआत होती है जब पृथ्वी पर मानव सभ्यता बनी ही थी, राजतंत्र तैयार किया गया था और आवश्यकता थी ऐसे व्यक्ति की जो लोगो के अच्छे बुरे कर्म का हिसाब करके उनके लिये दंड निर्धारित करें, उस समय मानव सभ्यता मात्र अयोध्या के क्षेत्र में थी जिस पर सूर्यवंशियों का शासन था। इक्ष्वाकु के सुपुत्र कुकत्स्थ अयोध्या के राजा थे।

इस कार्य के लिये एक महान देवपुरुष मिले नाम था चित्रगुप्त, चित्रगुप्त जी ने मानव के लेखाकर्म संभाले जिसके आधार पर न्यायिक निर्णय लिए गए। चित्रगुप्त जी ने 2 शादियां की जिससे उन्हें 12 संतान हुई, इन्हें ही चित्रांश कहा गया जो कालांतर में कायस्थ कहलाये। इनके बड़े पुत्र हुए धर्मध्वज जो श्रीवास्तव कहलाये।

जैसे जैसे सभ्यता फैल रही थी अपराध भी बढ़ रहे थे, तब ही चित्रगुप्त जी का स्वर्गवास हुआ जिसे पुराणों में कहा गया है कि ब्रह्मा जी ने उन्हें याद किया ताकि वे बड़े स्तर पर लेखा जोखा कर सके। चित्रगुप्त जी यमलोक पहुँचे और राजा कुकत्स्थ ने प्रजा को संदेश भेजा की चित्रगुप्त यमलोक से लोगो का काम देखेंगे।

यमलोक में चित्रगुप्त के अस्तित्व से लोगो के मन मे पाप के प्रति घृणा और डर बना रहा, वही चित्रगुप्त जी के 12 पुत्र अलग अलग दिशाओं में फैले और उन्होंने वित्त संबंधी लिखा पढ़ी के सभी कामो पर अपनी पकड़ जमा ली। सदियों बाद कुकत्स्थ के वंश में जन्मे महाराज अग्रसेन। उस समय तक सूर्यवंशियों का सूर्य लगभग डूब चुका था और चंद्रवंशियों की ध्वजा भारत मे लहरा रही थी, अग्रसेन जी को आज की दिल्ली का कुछ हिस्सा मिला मगर चंद्रवंशियों के साथ मिलकर.

अग्रसेन जी ने समाज मे व्याप्त हो रही कुरीतियों को मसल दिया, जैसे बलि प्रथा पर रोक लगाई, वे एक आदर्श राजा सिद्ध हुए। अग्रसेन जी को 18 पुत्रो की प्राप्ति हुई जिन्हें आज आप अग्रवाल कहते है। इनके सबसे बड़े पुत्र हुए ऋषि जो गर्ग कहलाते है।

इन्हीं महाराज अग्रसेन के धारण गोत्रीय पुत्र के घर जन्मे समुद्रगुप्त ने गुप्तवंश को विस्तार दिया और इन्हीं के शासन को भारत का स्वर्णकाल कहा गया। बौद्ध काल की कुरीतियां दूर की और पौराणिक राम राज्य बसाया। अग्रवाल किंग ऑफ बिजनेस बने, व्यापार के बड़े हिस्से पर अग्रवालों का शासन रहा। साथ ही धीरे धीरे अग्रवालों ने राजनीति छोड़कर पूरी तरह व्यापार को अपना लिया तथा भारत को सोने की चिड़िया बनाने में निर्णायक भूमिका निभाई।

दूसरी ओर कायस्थ राजनीति में आ गए, कायस्थों ने कश्मीर को एक प्रान्त का रूप दिया और उसकी सत्ता पर काबिज हो गए, कश्मीर में कारकोटा वंश की नींव पड़ी जिसमे एक महान राजा ललितादित्य हुए, कश्मीर भौगोलिक रूप से कटा हुआ था जिसे ललितादित्य ने पुनः भारत से जोड़ा। यह कायस्थों के इतिहास की एक बड़ी उपलब्धि है कि वे कश्मीर के भौगोलिक शिल्पकार बने, अन्यथा कश्मीर आज चीन का अंग हो सकता था।
हालांकि अग्रवालों की तरह राजनीति कायस्थों को भी कुछ रास नही आयी वे कश्मीर गवा बैठे, जिसका उन्हें दुख भी नही क्योकि अब कायस्थो और अग्रवालों ने मिलकर व्यापार में अहम भूमिका निभाई भारत सोने की चिड़िया बना। अग्रवाल व्यापार करते और कायस्थ पाई पाई का हिसाब रखते थे। इसीलिए आज भी इन दो जातियों को पैसो के प्रति संवेदनशील कहा जाता है।

हर समाज की तरह यहाँ भी कुछ ऐसे लोग हुए जिन्होंने इन दोनों जातियों पर कई प्रश्नचिन्ह लगाए। जब देश मे मुस्लिम शासन की नींव पड़ी तब कायस्थों ने खिलजी वंश से हाथ मिलाया वही अग्रवालों ने उधार के रूप में उन्हें समय समय पर पैसे दिए। दोनो ने मुस्लिम शासन में जमकर पैसा कमाया, अकबर के समय तक तो हिन्दू धर्म की यही दो जातियां थी जो धन और धान्य से परिपूर्ण थी।

दक्षिण में कायस्थों के हदय सम्राट कृष्णदेव राय हुए, आज भी विजयनगर साम्राज्य की गाथा इनका नाम लिए बिना नही गायी जाती। दूसरी ओर अग्रवालों में राजा टोडरमल हुए जिन्होंने अकबर का मान बढ़ाया। मगर औरंगजेब की नीतियों से दोनो परेशान हुए और इसके बाद वे मराठाओ से मिल गए।

1737 तक 70% भारत पर मराठाओ का शासन आ चुका था, बिना देर किए अग्रवालों ने पेशवा बाजीराव से व्यापार के अधिकार प्राप्त किये वही कायस्थों ने मराठा साम्राज्य का अर्थतंत्र संभाल लिया। सत्ता किसी की भी हो दोनो जातियों ने हमेशा मजे ही किये यह भी एक कारण है कि लोग कायस्थों और अग्रवालों से रिश्ता बनाने में डरते है और स्वार्थी कहते है।

मराठाओ के बाद अंग्रेज आये तो कायस्थों में एक महापुरुष हुए सुभाषचंद्र बोस जिन्होंने अपने अंदर के क्षत्रिय को जगाया और अंग्रेजो की धज्जियां उड़ाई। दूसरी ओर अग्रवालों में भारतेंदु हरिश्चंद्र हुए यदि वे ना होते तो कदाचित आज हमारी राष्ट्रभाषा उर्दू होती। पाकिस्तान की बर्बादी का सबसे बड़ा कारण है कि उसने अग्रवालों को भी भगाया और खुद अपने व्यापार को दुत्कार दिया।

अंग्रेजों के खिलाफ सबसे तीव्र स्वर में आंदोलन चलाने वाले लाल बाल पाल तिगड़ी में में लाला लाजपत राय जी अग्रवाल थे तो विपिन चंद्र पाल कायस्थ।

हिन्दू धर्म के उत्थान में निसंदेह इन दोनों जातियों का सर्वाधिक योगदान रहा जहां एक ओर अग्रवालों के हनुमान प्रसाद पोद्दार ने गीताप्रेस बनाकर लुप्त हुए हिन्दू धर्म ग्रंथों को बचाया वहीं दूसरी ओर कायस्थों के स्वामी विवेकानंद और श्रीलप्रभुपाद जी ने सनातन धर्म का डिंडिम घोष पूरे विश्व में बजाया।

आजादी के बाद से यदि सभी जातियों का आंकलन किया जाए तो आप पाएंगे कि सबसे ज्यादा विकास इन्ही दो जातियों ने किया। आज ब्रिटेन के सबसे अमीर व्यक्ति लक्ष्मीनारायण मित्तल एक अग्रवाल ही है। अनिल अग्रवाल, नवीन जिंदल, सुनील मित्तल जैसी अग्रवालों ने पूरी एक श्रृंखला बना डाली। वही कायस्थों ने खुद को कई जगह बाँट लिया राजनीति में बाला साहेब ठाकरे, साहित्य में मुंशी प्रेमचंद और हरिवंशराय बच्चन तथा फ़िल्मी जगत में अमिताभ बच्चन बनकर उभरे।

मगर जब आप अपनी गिनती सबसे विकसित और धनाढ्य समाज मे करते है तो आपकी कई जिम्मेदारी भी बनती है। कही ना कही ये दोनों ही समाज उसमे पिछड़ गए, हद से ज्यादा शिक्षा और समृद्धि अब इन दो समाजो को अंदर से तोड़ने लगे है। परिवारो के अंदर ही प्रतियोगिता का माहौल है, सब एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगे है।

चूंकि हम समृद्ध है इसलिए हमारी जिम्मेदारी अब अपनी जाति के लिये ना होकर समूचे हिन्दू धर्म और भारत देश के लिए होना चाहिए। कायस्थ और अग्रवाल रहे ना रहे भारत हमेशा रहना चाहिए। भारत की अतुल्यता बनाये रखना दोनो ही का कर्तव्य है जिसमे हम काफी पीछे चल रहे है। ज्ञातव्य हो महाराज चित्रगुप्त और महाराज अग्रसेन परलोक से अपने 30 पुत्रों पर नजर जमाये है। हमे इस आशा की किरण को बनाये रखना है।
नई पीढ़ी में यह किरण नजर आती भी है जब सुप्रीम कोर्ट ने श्री राम के वंशजो की सूचना मांगी तो अग्रवालों ने बिना शोर किये अपना नाम आगे किया वही कायस्थों ने बताया कि किस तरह उन्होंने रघुवंशियो को अपनी सेवाएं दी और वे काल्पनिक नही थे।

निःसंदेह दोनो आज भी साथ खड़े है, नई पीढ़ी काफी प्रगतिशील प्रतीत होती है आशा है लक्ष्मी और सरस्वती की यह संधि भारत को दोबारा जग सिर मोर बनाने में कारगर सिद्ध होगी।

Parakh Saxena जी का लेख कुछ परिवर्तनों के साथ

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