कसौधन वैश्य समाज, कल आज और कल
वैश्य आज भी समाज में अपनी पहचान ढूढ़ रहे हैं। आज भी उन्हें छोटी-छोटी उपलब्धियों के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है। आज भी कसौधन वैश्य समाज को उपेक्षित समझा जाता है। और ये सच्चाई उस समाज के लिए सवाल है जो आधुनिकता का दंभ भरता है। वैश्य समाज अपनी पहचान को, सम्मान को आज भी तरस रहा है…वो बाट जोह रहा है कि कोई तो आए और उनकी जाति को देश में सम्मान पूर्वक पहचान दिलाए। लेकिन जब ऐसा कोई भी सामने नहीं आया तब वैश्य जाति के लोगों के लिए कसौधन वैश्य समाज के नाम से एक संगठन का निर्माण किया गया है। और इस संगठन ने ये फैसला किया कि उनकी पहचान कोई दिलाए या न दिलाए वो खुद अपने दम पर अपनी पहचान बनाएंगे…और ये पहचान बनेंगी पूरे वैश्य जाति के लिए कुछ अच्छे और सराहनीय काम करने से…कसौधन वैश्य समाज अपनों के लिए कई तरह के काम कर रहा है और इनकी इस लगन और ललक को देखते हुए उनसे जुड़ गया NVR24…
NVR 24 ने कसौधन समाज को करीब से जानना चाहा…और बात की कसौधन वैश्य समाज के गणमान्य लोगों से जिनकी देखरेख में ये संगठन फलफूल रहा है। NVR 24 ने कसौधन वैश्य समाज के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अरुण कुमार, महासचिव वैश्य पीतांबर कसौधन और अध्यक्ष संतोष कुमार गुप्ता से जब कसौधन समाज के बारे में जाना तो जो तथ्य, और इतिहास सामने आए वो कुछ इस तरह हैं…..
महासचिव वैश्य पीतांबर कसौधन ने कहा कि कसौधन समाज आज कई क्षेत्रों में सराहनीय काम कर रहा है। फिर चाहे वो बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हो, वैश्य समाज से दहेज प्रथा को खत्म करने की पहल हो या फिर युवाओं को शिक्षित करने का फैसला…इसके साथ ही कसौधन समाज पांच राज्यों में वृक्षारोपण का काम भी कर रहा है।
कसौधन वैश्य समाज के अध्यक्ष संतोष कुमार गुप्ता के अनुसार वैश्य समाज आज भी राजनीति और शिक्षा के क्षेत्र में उपेक्षित है। राजनीति में वैश्यों की भागीदारी न होने कारण इस जाति के भविष्य के बारे में किसी को कोई चिंता नहीं है। वैश्य जाति के 80 प्रतिशत लोग गांव में अपनी जिंदगी बसर कर रहे हैं। उनके पास न अपनी जमीन है न कृषि के लिए खेत। गांव में रहने वाले वैश्य छोटे मोटे काम करके अपना पेट भर रहे हैं। और फिर इसी काम में बच्चों को भी लगा दिया जाता है। समाज में पिछड़ी जाति का दंश पीढ़ी दर पीढ़ी वैश्य जाति झेलता आ रहा है। आरक्षण के मामले में कसौधन समाज को अति पिछड़ी में रखा गया है। जब इस जाति के लोग थोड़े जागरुक हुए तो इस जाति को बिहार और यूपी में पिछड़ी जाति में शामिल किया गया है..और जब उत्तरांचल बना तो ओबीसी का न दर्जा मिला न लाभ। आज युवा पीड़ी मिलकर कसौधन समाज के अनुभवी लोगों को जोड़ संगठन बनाकर काम कर रही है। आज युवा शिक्षित हो रहे हैं। कसौधन वैश्य समाज ने पिछले साल अगस्त में भारत-नेपाल यात्रा का आयोजन किया। इस यात्रा में नेपाल के लोग भी जुड़े और इस यात्रा की काफी सराहना की गई।
वैश्य समुदाय की उत्पत्ति एवं इतिहास
वैश्य उपवर्गो मे एक श्रेष्ठ उपवर्ग… श्री कश्यप ऋषि की तपोस्थली ‘‘कश्यपमेरु’’ नाम से प्रसिद्ध हुई, जिसे आज कश्मीर के नाम से जाना जाता है। हम उन्ही कश्यप ऋषि के वंशज है… हमारे अधिकांश पूर्वजों के कथनानुसार- हम लोग कश्मीर क्षेत्र में मुख्यत: केसर का उत्पादन व उसका व्यापार भी करते थे। एवं जड़ी बूटियो पर शोध कार्य भी करते थे….(वैद्य) जो लोग केसर का उत्पादन करते थे वे ‘केसरधन’ (कसौधन) कहलाए और जो केसर को ले जाकर अन्य क्षेत्रों में व्यापार करते थे वे ‘‘केसरवानी’’ कहलाये। ये दोनों वर्ग एक ही समुदाय के थे, परन्तु बाद में अपने को अलग-अलग मानने लगे। कसौधन कश्मीर क्षेत्र का समृद्ध एवं शिक्षित वर्ग था , परन्तु कुछ कारणवश इन्हे कश्मीर से पलायन करना पड़ा….. लगभग 15- 16वीं शताब्दी में जम्मू कश्मीर में मुगल शासको के उत्पीड़न के कारण इन लोगो ने उसकी अधीन न रहकर वहाँ से पलायन करना उचित समझा…इसके बाद ये उत्तर प्रदेश व अन्य राज्यो मे वस गये… कश्मीर से पलायन के बाद केसर का व्यापार समाप्त होने पर काँसे का व्यापार शुरु किया..
वैश्यों का आधुनिक समुदाय में कई बदलाव आए हैं, वैश्य वर्ण में कई जाति या उप-जातियाँ होती हैं, जिनमे विशेष रूप से अग्रहरि, अग्रवाल, बार्नवाल, गहौइस, कसौधन, महेश्वरी, खांडेलवाल, महावार, लोहानस, ओसवाल, रौनियार, आर्य वैश्य आदि हैं।
महार्षि कश्यप भगवान शंकर के अति प्रिय माने जाते हैं, कैलाश पर्वत के आसपास आदि देव शिव के ही गणों की सत्ता थी, कश्यप ऋषि के नाम पर ही ‘कश्मीर’ नाम पड़ा जो उनकी तपोभूमि थी। माना जाता है कि समूचे कश्मीर पर ऋषि कश्यप और उनके पुत्रों का ही शासन था।
NVR 24 ने कसौधन वैश्य समाज के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अरुण कुमार से भी बात की और उन्हों ने भी इतिहास के कुछ पन्ने हमारे सामने खोले….अरुण कुमार के अनुसार कसौधन समुदाय वालों का मूलस्थान कश्मीर ही है, फिर आगे समय के साथ सभी उत्तरप्रदेश और दूसरे राज्यो में बस गए। बाद में यहीं कसौधन फैज़ाबाद, सुल्तानपुर, गोरखपुर, बस्ती, गोंडा, कानपुर आदि अलग-अलग जगह बस गये। माना जाता है कि कसौधन बिरादरी वालों के पास पहले कांसे का धन बहुत अधिक मात्रा में था, जिनकी वजह से इन्हें “कांसोधन”, और बाद में “कसौधन” पुकारा जाने लगा।
साभार: NVR 24
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