अग्रवाल समाज का महावाक्य हैं - "अहिंसा परमो धर्मः, धर्म हिंसा तथैव च"
महाराज अग्रसेन ने "अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च" का महामंत्र दिया था. #महाभारत काल मे यज्ञों में पशुबलि दी जाने लगी थी. इससे द्रवित होकर महाराज अग्रसेन ने #पशुबलि का विरोध किया और #क्षत्रिय वर्ण का त्याग करके #वैश्य धर्म अपनाया. वो निर्दोष पशुओं के तारणहार बने. उन्होंने #आग्रेय_गणराज्य में पशुबलि हिंसा समाप्त की थी और संपूर्ण शाकाहार का नियम लागू किया था. महाराज अग्रसेन करुणा और वात्सल्य से भरे हुए सम्राट थे. उन्होंने अपने गणराज्य में आने वाले हर व्यक्ति को आग्रेय के हर निवासी द्वारा एक मुद्रा और एक ईंट देने का नियम बनाया था. उस समय आग्रेय गणराज्य की कुल जनसंख्या सवा लाख थी. इस तरह आने वाले नावंतुक को सवा लाख मुद्रायें और ईंटे मिल जाती थीं जिससे वो नया व्यापार शुरू कर सके और अपना घर बना सके।
लेकिन उनकी अहिंसा में कायरता के लिए कोई स्थान नहीं था. जहां निर्दोष पशुओं की निर्मम हत्या को बंद करवाया वहीं अपने राज्य में सबको शस्त्र शिक्षा लेने का भी अनिवार्य नियम बनाया था. जहाँ तक युद्धों की बात है तो महाराज अग्रसेन ने स्वयं कुलदेवी #महालक्ष्मी के आशीर्वाद से #देवराज_इंद्र को हराया था. उन्होंने अपनी बाल्यावस्था में ही अपने पिता श्री #वल्लभसेन के साथ महाभारत के युद्ध मे #पांडवों की तरफ से भाग लिया था। #अग्रभागवत के अनुसार जब उन्होंने क्षत्रिय धर्म को त्याग कर वैश्य धर्म अपनाया था तब आस पास के लालची नरेशों ने इसे क्षत्रिय धर्म का अपमान और आग्रेय गणराज्य की प्रचुर संपत्ति हथियाने का स्वर्णिम अवसर समझ कर आग्रेय पर चढ़ाई कर दी थी. लेकिन महाराज अग्रसेन की ज्येष्ठ पुत्र राजकुमार #विभुसेन ने रणभूमि में अपने अतुलित शौर्य का प्रदर्शन कर सारे राजाओं को अकेले ही परास्त कर और बंदी बनाकर महाराज अग्रसेन के दरबार मे प्रस्तुत किया था. आग्रेय गणराज्य को #चाणक्य ने अपने ग्रंथो में आयुद्धजीवी संघ लिखा है जो अपने अप्रतिम शौर्य के लिए जाना जाता था. महापंडित #राहुल_सांस्कृत्यायन ने अपनी पुस्तक #जय_यौधेय में लिखा है कि आग्रेय गणराज्य के निवासियों को #अग्र और #यौधेय कहा जाता था. यौधेय गणराज्यों ने लंबे समय तक भारत की सीमाओं की रक्षा की थी। आग्रेय गणराज्य के निवासियों ने विश्वविजेता #सिकंदर से भी युद्ध लड़ा था और उसे और उसकी सेना कोयुद्ध मे गम्भीर चोट पहुंचाई थी. लेकिन उस युद्ध के बाद आग्रेय गणराज्य भी छिन्न भिन्न हो गया था और आग्रेय के निवासी अग्रोहा से निकल कर पूरे भारत वर्ष में फैले और व्यापार करने लगे और आज भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं (जैसे #पारसी_समुदाय अपने गृहराज्य के नष्ट होने पर भारत आया और आज इस समाज से कई सफल उद्योगपति हैं)। ऐतिहासिक ग्रंथो में उल्लेख है कि 18वीं सदी तक अग्रवालों के घर मे शस्त्र प्रतिष्ठा रही थी. खुद #राणी_सती_दादी जी इस बात का उदाहरण है जिनको बचपन मे ही उनके पिता नगरसेठ #गुरसामल_गोयल जी द्वारा अस्त्र और शस्त्र की दीक्षा दी गयी थी. भारत के #स्वतंत्रता_संग्राम(1857-1947) में अग्रवालों की अतुलनीय भूमिका था.. उन्होंने सशस्त्र विरोध भी किया और क्रांतिकारियों के #भामाशाह भी बने.. अग्रवाल क्रांतिकारियों में हांसी के #लाला_हुकुम_चंद_जैन और #लाल_बाल_पाल तिगड़ी के #लाला_लाजपत_राय जी प्रमुख थे..
लेख साभार: ~ प्रखर अग्रवाल
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