पश्चिमी सीमा पर स्थित तनोट गढ़ के भट्टी महाराज केहर के छठे पुत्र का नाम ‘जाम’ था । मुसलमानों के प्रबल आक्रमणों के फलस्वरूप जाम के वंशज भाटिया वैश्य जाति में परिणित हो गये । तनोट के साके के समय बहुत सारे भाटी वीर गति को प्राप्त हो गये थे । बाकी बचे भाटी राजपूतों को बलात् मुसलमान बनाने की प्रक्रिया मुस्लिम शासकों द्वारा हुई । उस समय कई राजपूतों ने वैश्य जातियों में विवाह कर राजपूत न होने का विश्वास दिलाया । इस समय भाटिया, माहेश्वरी, डागा, आदि अनेक जातियों की उप-शाखाओं की उत्पत्ति भाटियों से हुई ।....मोहम्मद गौरी के आक्रमण के समय क्षात्रधर्म परिभ्रष्ट भाटी जाति का अधिक समुदाय ‘भाटिया’ जाति में परिणित हो गया और भावलपुर, मुलतान, नगरथट्टा और पुजाब के सिंध क्षेत्रों में रहने लगा । कालान्तर में भाटिया जाति के लोग अपने प्रदेश को ही अपना जन्म स्थान समझने लगे । भटिया जाति के बड़ी संख्या में लोग अपना देश छोड़कर विदेशों में व्यापार हेतु घुमते थे । अरब प्रदेशों में समुद्र के मार्ग से आया-जाया करते थे । जहाजों में हथियार रखते थे । बसरा, अबूशहर, मस्कत, बगदाद, अदन, शहरकला, हूण्डा, मशवह आदि बंदरगाहों पर इनके व्यापारिक प्रतिष्ठान थे । बसरे में गोविंदरामजी का मंदिर भाटिया समाज के लोगों द्वारा बनवाया गया था । जब यहां मुसलमानों का अत्याचार बढ़ने लगा तब बसरे के मंदिर की मूर्ति लाकर मस्कत में रखी गई । तीन-चार सौ वर्षों से यहां रखी हुई है । अरब और अफ्रीका के प्रदेशों मेें भी भाटिया जाति का विस्तार हुआ । जगन्नाथजी के समय में आसोज सुदि पंचम संवत् 1803 में सम्मिलित हुए तथा पैदा हुए भाटिया संप्रदाय में यह नियम कर रखा था कि पच्चास वर्ष से कम उम्र की स्त्री दर्शन को नहीं जावे । जैसलमेर के भाटिये पुष्टिकर गुरुओं की आज्ञानुसार पच्चास पीढ़ी के अंतर से विवाह कर सकते हैं । जैसलमेर के भाटिये सिंध, पंजाब की ओर पश्चिमोत्तर प्रदेश वालों से विवाह कर सकते हैं । कच्छ, हालाई, पुरीजा, काठियावाड़ी, गुजराती और धरन गांव बाले आपस में विवाह कर सकते हैं ।....
-भटिया के नख -भटिया जाति के प्रमुख नख 84 हैं तथा गोत्र ऋषि सात हैं जो इस प्रकार हैं- 1. पारसर, 2. साणस, 3. भारद्वाज, 4. सुधर, 5. मधुमास, 6. देवदास, और 7.ऋषि वंशी । भाटिया जाति के नखों के आगे ‘राय’ लगता था, जैसे राय गजराज । इससे लगता है कि इनकी उत्पत्ति रावल देवराज से पहले हुई । जैसल के भट्टी शासकों की देवराज से पहले की उपाधि ‘राय’ थी । देवराज के बाद भट्टी लोग ‘रावल’ या ‘राऊल’ कहलाये ।.. ...भटिया लोगों ने ‘भाटियासर’ नामक सरोवर बनवाया जो जोसीसर के पास स्थित है । इनकी देवी कुलेरियों का स्थान लौद्र्रवा से आगे बना है । -पं. हरिदत्त के जैसलमेर के इतिहास से उल्लेखित, -21/75-7.
साभार: rajfolkpedia.com/index.php
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