जैसवाल वैश्य समाज की उत्पत्ति
जैसवाल वैश्य समाज में अपने इतिहास को समझने के लिए हमारी जाति के कई विद्वान इतिहास की खोज में जुटे हैं मुझे इन विद्वानों से साक्षात्कार करने का अवसर प्राप्त हुआ जब मैंने जैसवाल वैश्य मंथन एवं आगरा में होने वाले अखिल भारतीय जैसवाल वैश्य बंधु महासम्मेलन हेतु पूरे देश का प्रवास किया। प्रवास के मध्य जैसलमेर एवं जैसलमेर से लगभग 15 किलोमीटर दूरी पर लुद्रवा नामक स्थान पर गया जहां से जैसवाल वैश्य समाज का कुछ बताया जाता है यह ऐतिहासिक सत्य है कि प्राचीन समय में यह स्थान राज्य की राजधानी रहा है पर आज यह स्थान खंडहर है हमारे समाज के विद्वान लेखक तथा पुरातत्वविद इस स्थान के इतिहास के बारे में जागरूक हैं। महाराजा जैसलमेर उनके निजी सचिव एवं दीवान जिनसे मेरी प्रत्यक्ष भेंट हुई वही मैंने उनसे जैसवाल वैश्य जाति का इतिहास गौरव तथा उसके विकास के बारे में गंभीर चर्चा की। इस संबंध में उन्होंने एक हस्तलिखित ग्रंथ का अवलोकन कराया मुझे जानकारी मिली कि इस संबंध में विद्वान लेखक श्री एन के शर्मा भील जाति के बारे में खोजबीन एवं जांच पड़ताल कर रहे हैं।
सभी को विदित है कि 12 वीं शताब्दी में मोहम्मद गोरी ने लोद्रवा राजधानी पर आक्रमण किया स्थानीय निवासियों ने संघर्षरत होकर वीरगति प्राप्त की और कुछ ने अपना कर्म बदल कर वैश्य कर्म अपना लिया। ऐतिहासिकता की खोजबीन बराबर की जा रही है विद्वान लेखक लाखू जैसवाल के जीवन और उनके द्वारा हस्तलिखित ग्रंथ जो अपभ्रंश भाषा में है उसका भी अध्ययन किया जा रहा है जैसे ही इन अध्ययनों के आधार पर हम किसी निष्कर्ष पर पहुंचेंगे शीघ्र ही जन समुदाय के समक्ष विवरण प्रस्तुत किया जाएगा आज जैसवाल वैश्य समाज के लोग जागरूक हैं स्थान स्थान पर संगठित है तथा देश की धारा में अन्य वैश्य समाजों के साथ आगे बढ़ रहे हैं
जैसवालो की उत्पत्ति
मध्यकाल में अग्नि से तपाकर 34 क्षत्रिय वीर पुरुषों को शुद्ध किया गया था वह चार पुरुष प्रतिहार चालुक परमार तथा चौहान क्षत्रिय वंश के संस्थापक बने। इस समय ब्राह्मण क्षत्रिय परस्पर भोजन करते थे बेटी ब्राह्मण की बेटी से क्षत्रिय विवाह नहीं करते थे यवनों के धर्म के प्रचार होने के बाद क्षत्रिय धर्म विकृत होने लगा। इस समय ब्राह्मणों ने अपने-अपने विवाह संबंध अपनी ही जाति में करने प्रारंभ कर दिए।
इक्ष्वाकु वंश में धनवा नामक एक पराक्रमी व्यवस्था जिसको राजा ने वाणिज्य का स्वामी बना दिया अपने घर का सारा कार्य भी धनवान वैश्य को दे दिया। इस वंश के वंशज एक वर्क वंशी वैश्य कहलाए नंद राजाओं ने भी वाणिज्य में वैश्यों को प्राथमिकता दी यह वैश्य व्यापार के कार्यवाहक होने के कारण एवं महादेव एवं ईश्वरी माता पार्वती के महेश्वर शिव रूठ को पूजने तथा शिव भक्त होने के कारण माहेश्वरी कहलाए इसके बाद निरंतर मुस्लिम आक्रमणों के फलस्वरूप कई क्षत्रियों ने जगह-जगह अपने कर्म बदल कर अवश्य कर्म को अपना लिया वह अपने अपने क्षेत्रीय नामों से प्रसिद्ध हुए
इसमें महेश्वरी ओसवाल चित्र वालों श्रीमाल जैसवाल पोरवाल बघेरवाल पालीवाल पोखरा खंडेलवाल आदि मुख्य हैं। जिस प्रकार ओसिया से ओसवाल आग्रहोरा से अग्रवाल खंडला से खंडेलवाल पाली से पालीवाल चेला है इसी तरह जैसलमेर के जैसवाल कहलाए। इसी तरह दक्षिण प्रांत की 84 न्यास की सूची में जैसवालो का उल्लेख है (पृष्ठ 114)। वैसे समाज की मध्यदेश मालवा की 12 न्यातों में 9 नंबर पर जैस्वाल गोत्र को रखा है यह जैसलमेर की माने गई है।
यह ईनााड़ी क्षत्रिय इंद्र सिंह ईनदायजी नगवाड़या के वंशज है उनकी माता जैसल गोत्र संसास (जैसललांस) गुरु संखवाल सोतो गरवरिया त्रिवाड़ी शाखा तैतरी प्रवर तीन व वेद यजुर्वेद हैं। वैदिक धर्म अपनाने के कारण कुछ महेश्वरी अपने नाम के आगे महेश्वरी ना लिखकर जैसवाल ही लिखते थे आगे चलकर जैसे वालों ने सनातन धर्म एवं जैन धर्म भी अपनाया।
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संकलनकर्ता सुधीर कुमार गुप्ता सिविल लाइंस आगरा
जायसवाल इतिहास आपकी पूरी तरह से गलत है, आपको और शोध की आवश्यकता है।
ReplyDeleteजायसवाल वास्तव में चंद्रवंशी क्षत्रिय है, इनके कुलदेवता भगवान सहस्त्रबाहु अर्जुन व इसी कुल में आगे भगवान बलभद्र हुए, जो श्रीकृष्ण के अग्रज है।
भाई किस दुनिया में जी रहे हो. वैश्य समाज के अधिकतर जातिया पहले क्षत्रिय थी. पर वर्तमान समयमे ये सभी जातिया वैश्य की श्रेणी में आती हैं. कोई भी वर्ण छोटा बड़ा नहीं हैं सब बराबर हैं.
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