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Monday, April 13, 2020

VAISHYA SAMRAT SKANDGUPTA - सम्राट स्कन्दगुप्त का इतिहास..


#आचार्य_वासुदेव_शरण_अग्रवाल" "#सम्राट_स्कन्दगुप्त" की वीरता का बखान करते हुए लिखते हैं, ‘’मध्य एशिया से चींटियों की तरह असंख्य दल बांधकर जंगली और बर्बर हूण चीन से फ्रांस और यूनान तक समस्त भूभाग में फैल गए थे। डैन्यूब से वोल्गा तक तथा थ्यूरिंजिया और रोमन साम्राज्य तक इनकी लपलपाती हुई तलवारों ने अनगिनत मनुष्यों को चाट लिया था। हूणों के कंधे बड़े बड़े और नाक बैठी हुई थी, माथे का हिस्सा छोटा था और जैसे उनकी आंखें काली-काली उनके उठे सिरों में ही घुसी रहती थीं, क्रोध के समय पुतलियां इधर से उधर डोलने और नाचने लगती थीं, होठों के दोनों किनारों से पतली मूंछें खड़ी फड़कती थीं और मृत्यु को गेंद की तरह ठुकराते हुए ये बलशाली वेग से सम्पन्न घोड़ों पर सवार होकर समस्त जन-धन, नगर और देशों को रौंदते हुए ऐसे चलते थे जैसे कि खेतों को नष्टकर झुंड में चलने वाला असंख्य टिड्डी दलों का झनझन सुर में उड़ता समूह। इन हूणों के अत्याचारों से यूरोप कांप उठा, इनकी लगातार टक्कर और ठोकर से यूनान-मिस्र और रोम धरती के धूल में मिल गए। ऐसे विश्व को कंपा देने वाले प्रलयंकारी हूणों से समरांगण में लोहा लेने जब स्कन्दगुप्त अपने सैन्यबल के साथ दो दो हाथ करने उतर पड़ा तो जैसे बाजी ही पलट गई। उस विकट कालखंड (453 ईस्वी से 467 ईस्वी) में #भारत को जैसे सेनानी की आवश्यकता थी, वैसा ही नायक #स्कन्दगुप्त के रूप में देश को मिल गया। वह अकेला न होता तो आज यह भारत ही ​कहां होता। रोम आदि साम्राज्यों की तरह भारत भी हूणों की बाढ़ में बह गया होता। हूणों को हम न पचा पाते, #हूण ही हमें समाप्त कर जाते।" - आचार्य वासुदेव शरण अग्रवाल

#हूणों की भयानक दुर्भेद्य शक्ति से टक्कर लेने और भारत को बचाने के लिये उस महायोद्धा युवक #स्कंदगुप्त_विक्रमादित्य ने अपना जीवन ही दांव पर लगा दिया। महलों का सुख त्याग दिया, सैनिकों के साथ जमीन पर जीवन व्यतीत करने लगा।

आज से 1600 साल पहले औड़िहार (हौणिहार या हुणा-अरि) से #गुजरात और #कश्मीर तक उसने भारत भूमि को हूणों से मुक्त करा डाला।

#रीवां का #सुपिय_अभिलेख प्रमाण है कि भारत ने स्कन्दगुप्त को इस कार्य के लिए इतना जनसमर्थन दिया कि उसे धर्मपालन में #श्री_राम के तुल्य और सदाचार और सुनीति में #सम्राट_युधिष्ठिर के तुल्य बताया।

स्कन्दगुप्त के रणकौशल, बाहुबल और पराक्रम को देखकर हूणों की सेनाएं थर्रा उठीं, उसकी अद्वितीय वीरता देखकर जन-मन के भीतर पसरा डर जाता रहा, ऐसे महान सेनानी स्कन्दगुप्त को भारत का महान रक्षक या महात्राता अर्थात The Saviour of India नहीं कहें तो फिर कौन है इतिहास में जिसे भारत-रक्षा-केसरी की उपाधि से नवाजा जा

साभार: प्रखर अग्रवाल की फेसबुक वाल से 

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