अग्रवालों और सिकंदर का युद्ध
आग्रेय गणराज्य की स्थापना महाराज अग्रसेन ने आजसे करीब 5000 वर्ष पूर्व की थी। ये वर्तमान में हरयाणा में स्थित है। आग्रेय गणराज्य को चाणक्य ने अपने ग्रंथो में वार्ताशस्त्रोपजीवी संघ लिखा है जो अपने अप्रतिम शौर्य के लिए जाना जाता था. महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन ने अपनी पुस्तक जय यौधेय में लिखा है कि आग्रेय गणराज्य के निवासियों को अग्र और यौधेय कहा जाता था. आग्रेय गणराज्य ने लंबे समय तक विदेशी शको और हूणों से भारत की सीमाओं की रक्षा की थी।
सिकंदर ने जब भारत में आक्रमण किया तो उसका सबसे पहला सामना पंजाब और हरयाणा के गणराज्यों से हुआ। ग्रीक इतिहासकारों ने सिकंदर ने जिन गणराज्यों पर हमला किया उसमें aglessi का जिक्र है जो अनेक भारतीय इतिहासकारों अग्रसेना से युद्ध माना है। ग्रीक इतिहासकारों ने आग्रेय गणराज्य की वीरता के बारे में लिखा है की इसको विजित करने में सिकंदर को नाकों चने चबाने पड़े थे। सिकंदर और 18 अग्रगणपतियों में भीषण युद्ध हुआ जिसमें आग्रेय गणराज्य भले ही परास्त हुआ लेकिन सिकंदर को ऐसी चोट पहुंचाई की वो दोबारा युद्ध नहीं लड़ सका।
कवि सुरेंद्र जैन जी के शब्दों में आग्रेय और सिकंदर के युद्ध का वर्णन-
पोरस से जीत सिकंदर जब आगे बढ़ा,
तो अग्रसेना से भिड़ा वो आम सेना जानके ।
अष्टदश सेना के सेनानी जब चिंघाड़ते थे,
शत्रु कापने लगा था अपनी हार मानके ।।
इस ओर एक राज्य उस ओर सैकड़ों थे,
फिर भी लड़े थे हम जंग सीना तान के ।
युद्ध वीर दानवीर दयावीर अग्रसेना,
मातृभूमि को दिए थे उपहार प्राण के ।।
अग्रवंश नारियों ने भाल का सृंगार और,
गणवेश का युद्ध का वीरों को जड़ा था ।
बनने चला था वो विश्व का विजेता पर,
अग्रशासन से लड़ कर उसे लौटना पढ़ा था ।।
ऐसी चोट युद्ध में दी शक्ति हीन कर डाला,
अंतिम युद्ध उसने हम ही से तो लड़ा था ।
अग्रधाम रक्षा का एक एक अग्रवीर,
शंखनाद घोषकर युद्ध में खड़ा था ।।
|| जय महाराज अग्रसेन जय आग्रेय गणराज्य जय अग्रवंश ||
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