नगरश्रेष्ठ नट्टल साहू और महाकवि विबुद्ध श्रीधर
नट्टल साहू की बनवाये नाभये मंदिर परिसर को तोड़ के बनाये गए कुतुब्बुल इस्लाम मस्जिद के स्तम्भ..
12वीं सदी के ही #हरियाणा के महाकवि #विबुध_श्रीधर में अपूर्व कवित्व शक्ति तो थी ही, वह कुछ घुमक्कड़ प्रकृति का भी था किन्तुं उसकी वह घुमक्कड़ प्रकृति रचनात्मक एवं सुक्ष्मेक्षिका दृष्टि सम्पन्न थी। विबुद्ध श्रीधर का जन्म संवत 1189 में हरयाणा के #अग्रवाल_जैन परिवार में हुआ था.
एक दिन जब अपनी एक अपभ्रंश भाषात्मक चंदप्पहचरिउ (चन्द्रप्रभ-चरित) को लिखते-लिखते कुछ थकावट का अनुभव करने लगा, तो उसकी कुछ घूमने की इच्छा हुई। अत: वह पैदल ही #युमनानगर होता हुआ #ढिल्ली (तेरहवीं सदी में यही नाम प्रसिद्ध था) आ गया।
ढिल्ली (दिल्ली) में सुन्दर-सुन्दर चिकनी चुपड़ी चौड़ी-चौड़ी सड़को पर चलते-चलते तथा विशाल ऊँची-ऊँची #अट्टालिकाओं को देखकर प्रमुदित मन जब वह आगे बढ़ा जा रहा था तभी मार्ग में एक व्यक्ति ने उसके हाव-भाव देखकर उसे परदेशी और (अजनवी) समझा अत: जिज्ञासावश उससे पूछा कि तुम कौन हो और कहाँ जा रहे हो? तब उसने (अजनवी) यही कहा मैं हरयाणा निवासी विबुध श्रीधर नाम का कवि हूँ। एक ग्रन्थ लिखते-लिखते कुछ थक गया था, अत: मन को ऊर्जास्वित करने हेतु यहाँ घूमने आया हूँ। यह प्रश्नकर्ता था अल्हण साहू, जो समकालीन दिल्ली के शासक #अनंगपाल_तोमर (तृतीय) की राज्यसभा का सम्मानित सदस्य था। उसने कवि को सलाह दी कि "वह ढिल्ली के नगरसेठ #नट्टल से अवश्य भेंट करे। वो #अग्रवाल_श्रेष्ठि #साहू_जेजा की तीसरी संतान हैं। नट्टल ढिल्ली के वणिकों में अग्रणी हैं और अनंगपाल तोमर के दरबार में मंत्री हैं। उनका व्यापार पूरे देश में फैला है।" साहू नट्ठल की ‘‘नगरसेठ’’ की उपाधि सुनते ही कवि अपने मन में रुष्ट हो गया। उसने अल्हण साहू से स्पष्ट कहा कि धनवान् सेठ लोग कवियों को सम्मान नहीं देते। वे कुद्ध होकर नाक-भौंह सिकोड़ कर धक्का-मुक्की कर उसे घर से निकाल बाहर करते हैं।
यथा-
अमरिस—धरणीधर—सिर विलग्ग णर सरूव तिक्खमुह कण्ण लग्ग।
असहिय—पर—णर—गुण—गुरूअ—रिद्धि दुव्वयण हणिय पर—कज्ज सिद्धि।
कय णासा—मोडण मत्थरिल्ल भू—भिउडि—भंडि णिंदिय गुणिल्ल।।
आदि कहकर महाकवि ने नट्टल साहू के यहाँ जाना अस्वीकार कर दिया। फिर अल्हण साहू ने कहा की क्या तुम नट्टल को नहीं जानते ? वो बहुत ही उदार और सहृदय हैं। अल्हण साहू के बार-बार समझाने पर वह नट्टल के घर पहुँचा तो नट्टल की सज्जनता और उदारता से वह अत्यन्त प्रभावित हुआ। भोजनादि कराकर नट्टल ने महाकवि से कहा- "मैंने यहाँ एक विशाल #नाभेय (आदिनाथ का) मन्दिर बनवाकर उसके विशाल प्रांगण में #मानस्तंम्भ बनवाया है। मन्दिर—शिखर के ऊपर #पंचरंगी झण्डा भी फहराया है।" यह कहने के बाद नट्टल साहू ने महाकवि से निवेदन कियाकि मेरे दैनिक स्वाघ्याय के लिये पासणाहचरिउ (पार्श्वनाथ चरित) की रचना करने की कृपा करें। कवि ने उक्त नाभेय—मन्दिर में बैठकर उक्त ग्रन्थ की रचना कर दी जिसके लिये नट्टल ने कवि का आभार मानकर उसे सम्मानित किया। श्रीधर ने पासणाहचरिउ में अपना परिचय देते हुए कहा है-
"सिरि #अगरवाल_कुल कमल मित्तु,
सुधम्म कम्म पवियण्य-वित्तु"
यह सब कुछ तो राजा #अनंगपाल_तोमर (तृतीय) के शासन—काल में हो गया था। किन्तु बाद में #मुहम्मद_गोरी का शासन हुआ और उसकी मृत्यु के बाद उसका परम विश्वस्त गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक (वि. स. १२५०) जब ढिल्ली का शासक बना तब उसने #नाभेय मन्दिर तथा अन्य मंदिरों को ध्वस्त करा कर उनकी सामग्री से #कुतुबमीनार का निर्माण करा दिया तथा #नाभेय_मंदिर के प्रांगण मे कुछ परिवर्तन कराकर उसे #कुतुब्बुल_इस्लाम_मस्जिद का निर्माण करा दिया।
लेख साभार: प्रखर अग्रवाल की फेस्बूक् वाल से, राष्ट्रीय अग्रवाल सभा
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