#बनियों_की_जैसी_दिलेरी_कहाँ
दिल्ली मे 'चाँदनी चौक' प्रसिद्ध गौरी शंकर मन्दिर है। ये लगभग 800 साल पुराना मन्दिर है। इसके बारे में कहते हैं जब क्रूर, बेरहम, औरंगजेब ने इस मंदिर को तोड़ने का आदेश अपने सिपाहियों को दिया तो, ये बात वैश्य शिरोमणि सेठ #लाला_भागमल जी को पता चली, जो बहुत बड़े व्यापारी थे।
उन्होंने औरंगजेब की आंखों में आंखे डालकर ये कह दिया था कि तू अपना मुह खोल जितना खोल सकता है, बता तुझे कितना जजिया कर चाहिए?
औरंगजेब तू बस आवाज़ कर, लेकिन मन्दिर को कोई हाथ नही लगाएगा, मन्दिर की घण्टी बजनी बन्द नही होगी।
कहते है उस वक़्त औरंगजेब ने औसत जजिया कर से 100 गुना ज्यादा जजिया कर हर महीने मांगा था, ओर लाला भागमल जी ने हर महीने, बिना माथे पर शिकन आये जजिया कर औरंगजेब को भीख के रूप में दिया था, लेकिन लाला जी ने किसी भी आततायी को मन्दिर को छूने नही दिया।
आजतक मन्दिर की घण्टियाँ ज्यों की त्यों बजती है।
मैने कन्वर्ट मुस्लिमो में लगभग हर जाति को हिन्दू से मुस्लिम कन्वर्ट पाया है, लेकिन मुझे बनिया समाज के लोग कन्वर्ट आजतक नही मिले।
मैने देखा है, #वैश्य_समाज जहां भी जाकर बसते है, सबसे पहले वहां आसपास जितना जल्दी हो सके, एक भव्य मंदिर का निर्माण दिल खोलकर करते है।
महाराणा प्रताप जी भी जब महल छोड़कर जंगल चले गए थे, तो उन्हें नई सेना बनाने के लिए, हथियारों घोड़ो, हाथियों के लिए, अकबर से युद्ध के लिए नई सेना का गठन करना था, उस समय भी #वैश्य_समाज ने #हम सबके आदरणीय रहे, स्वर्गीय श्री भामाशाह जी ने अकूत धनराशि से महाराणा प्रताप जी को भरपूर सहयोग किया था।
ऐसे ये दो नही अनगिनत... अनगिनत... अनगिनत... किस्से है मेरे पास, जहां बनियों ने अपना सर्वस्व न्योछावर करके अपने धर्म की रक्षा की हैं।
ओर बहुत से लोग इन्हें कंजूस कहकर इनका उपहास उड़ाते है, जो उपहास उड़ाते है, वो लोग उपहास उड़ाने से पहले, अपने गिरेबाँ में झांक कर, अपने त्याग और बनियों के त्याग में अंतर कर लेना।
सोशल मीडिया पर भी ओर मेरे घर के आसपास भी मै जब भी किसी धार्मिक अनुष्ठान के कार्य को होता देखता हूँ, तो पूरे श्रद्धा भाव से सबसे पहले बनिया, जैन लोगो का हाथ अपनी जेब मे जाता है।
सनातन धर्म की नींव बचाने के लिए बनिया समाज का समस्त हिन्दू धर्म सदैव ऋणी रहेगा।
कल गौरी शंकर मन्दिर को लेकर यूँही एक चर्चा चल रही थी, तब ये बातें सामने आयी, तो सोचा बनियों की कंजूसी की असलियत लिख दूँ। जो लोगो को पता नही है।
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