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Thursday, February 15, 2024

SHREE PAWAPURI JAIN TEERTH - श्री पावापुरी तीर्थ (बिहार )

SHREE #PAWAPURI JAIN TEERTH - श्री पावापुरी तीर्थ (बिहार )


जहाँ भगवान महावीर का पदार्पण हुवा और वहा के राजा हस्तिपाल ने अपने राज्य में भगवान को स्थान उपलब्ध कराया था।

भगवान के दर्शनार्थ अनेकों राजागण, श्रेष्ठीगण आदि भक्त आते रहते थे प्रभु ने अपने प्रथम गणधर श्री गौतम स्वामी को निकट गाव में देवशर्मा ब्राह्मण के यहाँ उपदेश देने के लिए भेजा।
 
कार्तिक कृष्णा १४ के प्रात: काल प्रभु की अन्तिम देशना प्रारम्भ हुई उस समय मलवंश के ९ राजा, लिच्छवींवशं के ९ राजा आदि भक्तगणों से पूरी सभा भरी हुई थी। सारे श्रोता प्रभु की अमृतमयि वाणी को अत्यन्त भाव पूर्वक और श्रद्धा पूर्वक सुन रहे थे।

प्रभु ने निर्वाण का समय नजदीक जानकर अंतिम उपदेश की अखंड धारा चालू रखी इस प्रकार प्रभु १६ प्रहर उत्तराध्ययन सूत्र' का निरूपण करते हुवे अमावस्या की रात्रि के अन्तिम प्रहर, स्वाति नक्षत्र में निर्वाण को प्राप्त हए।
इन्द्रादि देवों ने निर्वाण मनाया और उपस्थित राजाओं व् अन्य भक्तोजनों ने प्रभु के वियोग से ज्ञान का दीपक बुझ जाने के कारण उस रात्रि में घी के प्रकाशमय रत्नादीप जलाए। उन असंख्य दीपकों से अमावस्या की घोर रात्रि में प्रज्ज्वलित किया गया। तब से दीपावली का पर्व प्रारंभ हुवा। आज भी उस दिन की यादगार में दीपावली के दिन सारे शहर व् गांव सहस्त्रों दीपको की ज्योति से जगमगा उठते हैं।

प्रभु के निर्वाण के समाचार चारों तरफ फ़ॆल चुके,लाखों देव और मानवों की भीड़ प्रभु के अन्तिम दर्शनार्थ उमड़ पड़ी।

इन्द्रादि देवों व जन समुदाय ने विराट जुलुस के साथ प्रभु की देह का विधान पूर्वक अन्तिम संस्कार किया ।
देवी-देवतागण व अगणित मानव समुदाय ने प्रभु देह की कल्याणकारी भस्म को ले जाकर अपने अपने पूजा गृह में रखा, भस्म ना मिलने पर उस भस्म में मिश्रित यहाँ की पवित्र मिटटी को भी ले गए जिस से वहा बहुत बड़ा गड्ढा हो गया ।

भगवान के ज्येष्ठभ्राता नन्धिवर्धन ने अन्तिम देशना स्थल पर एव अन्तिम संस्कार स्थल पर चौतरे बनाकर प्रभु के चरण स्थापित किये जो आज के गांव मंदिर और जल मंदिर माने जाते हैं। कहते हैं वहा पर आज जो जल मंदिर है उसकी खुदाई उस समय वहा जनता ने प्रभु की भस्म पाने के लिए जो गड्ढा खोदा था वो ही है, उसी गड्ढे में पावापुरी जल मंदिर बना हुवा है। जल मंदिर में प्रवेश करते ही मनुष्य सारे बाह्य वातारण को भूल कर प्रभु भक्ति में अपने आप को खो देता हे। ऎसे शुद्ध व पवित्र वातावरण है यहाँ का ।

त्रिशला नन्दन त्रेलोकीनाथ चरम तीर्थंकर श्री महावीर की निर्वाण भूमि का प्रत्येक कण पूजनीय है प्रभु वीर की अन्तिम देशना इस पावन भूमि में हुई थी अत: यहाँ का शुद्ध वातावरण आत्मा को परम शांति प्रदान करता है ।
दीपावली त्यौहार मनाने की प्रथा भगवान महावीर के निर्वाण दिवस से पावापुरी से प्रारम्भ हुई।

भगवान महावीर की प्रथम देशना भी यहीं पर हुई ऐसा भी माना जाता है उस स्थान पर नवीन सुन्दर समवसरण के मंदिर का निर्माण हुआ है। यह भी मान्यता है कि इंद्रभूति गौतम का प्रभु से यही मिलाप हुवा था जिस से प्रभावित होकर प्रभु के पास दीक्षा ली और प्रथम गणधर बने ।

वीर प्रभु तो साक्षात करुणा के अवतार थे वो शासन के हित में ही सब कुच्छ सोचते थे और १६ प्रहार तक देशना देना और अपना अन्तिम समय नजदीक जानकर अपने प्रिय शिष्य गौतम को उसकी भलाई के लिए अपने से दूर भेजना और अपने हर कष्ट को बिना किसी बाधा के सहन करते करते वीर प्रभु अपने २६ भवों तक त्याग, राज काज, त्याग तप आदि करते-करते अपने २७ वे भव में मोक्ष को पधारे।

आज २६०० से भी ज्यादा वर्ष बीतने पर भी आपके अनुयायी आपकी वाणी को अपने दिल में उतारने को बेताब हैं ।
ऐसे थे मेरे प्रभु करुणा के अवतार।

आपके कुल ११ गणधर थे।
आपके कुल साधू १४०००, साध्वी ३६०००, श्रावक् १५९००० और श्राविकाए ३१८००० थी ।
वीर प्रभु ने अपने २७ भव में कुल ३ बड़ी पदविया प्राप्त की।
१. श्रेयांस नाथ भगवान के शासन काल में १८ वे भव में त्रिपृष्ठ वासुदेव।
२. २३ वे भव में महाविदेह क्षेत्र में प्रियमित्र नामक चक्रवती बने।
३. और अन्तिम २७ वे भव में साक्षात् महावीर स्वामी नाम के तीर्थंकर हुवे और मोक्ष पधारे ।

SABHAR : वास्तु महेन्द्र जैन (कासलीवाल)

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