#KALWAR VAISHYA FREEDOM FIGHTER - क्रांतिकारी कलाल शहीदो के नाम
भुर्या कलाल:– भूर्या कलाल का जन्म 1910 में नागपुर महाराष्ट्र में मैनत्य कलाल के यहां हुआ.... भूरिया कलाल ने अपनी बालिक अवस्था से ही आजादी की क्रांति में भाग लेना शुरू कर दिया था और 1942 के गांधी जी के "भारत छोड़ो आंदोलन" की भाग लेना नागपुर पहुंचे....जहा आंदोलन में अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करते हुए मात्र 32 वर्ष की आयु में 14 अगस्त 1942 को यह बलिदान हो गए
गणपति कलाल:– गणपति का जन्म सन 1920 में नागपुर महाराष्ट्र में हुआ एक आम कलाल परिवार में हुआ और लोगो की तरह इनकी जिंदगी भी अच्छी चल रही थी परंतु अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों ने क्रांतिकारी बनने पर मजबूर कर दिया और मात्र 22 वर्ष की आयु में गांधी जी के 1942 के आंदोलन में "भारत छोड़ो आंदोलन" में जोरो शोरो से हिस्सा लिया और जिसके कारण यह अंग्रेजी हुकूमत की नजरो में आ गए और अंग्रजी पुलिस वालो ने इनका पीछा किया तो यह पकड़ में ना आ सके और जिसके बाद इनको भगोड़ा घोषित कर दिया गया परंतु 2 साल के लगातार प्रयास के उपरांत भी अंग्रजी हुकूमत इनको पकड़ नही पाईं.....1944 में एक दिन पुलिस को सूचना लगती है जब पुलिस इनको पकड़ने के लिए जाती है तब पुलिस के सत्य झड़प में यह शहीद हो जाते है....बालिक अवस्था में आजादी की लड़ाई लड़ने लगे, मात्र 22 वर्ष की आयु में भारत छोड़ो आंदोलन में आ गए और 24 वर्ष की आयु में शहीद हो गए।
हिरलाल कलाल:– हिरलाल का जन्म 1914 में खड़की, वर्धा महाराष्ट्र में बिहारीलाल कलार जी के यहां हुआ.. हिरलाल जी ने 4थी तक पढ़ाई करने के बाद पढ़ाई छोड़ दी और कम उम्र में ही आजादी के आंदोलन से जुड़ गए...जब गांधी जी ने 1942 में "भारत छोड़ो आंदोलन" में हिस्सा लिया तो हिरलाला जी ने भी उसमें जोरो शोरो से हिस्सा लिया और अंग्रजी हुकूमत के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की जिसके कारण अष्टि नाम की जगह पर पुलिस द्वारा गोलियां चलाई गई जहा यह शहीद हो गए।
नारायण कलाल:–नारायण जी का जन्म 1920 में नागपुर महाराष्ट्र में कलाल जाति में हुआ। इनके पिता जी का नाम बालकृष्ण कलार था...इतनी कम उम्र में भी आजादी के आंदोलन में बड़े जोरो शोरो से हिस्सा लिया....जब गांधी जी ने "भारत छोड़ो आंदोलन" 1942 में चलाया तो मात्र 22 वर्ष की बाल अवस्था में यह आंदोलन में भाग लेने के लिए चले गए और अंग्रेजी हुकूमत का जोरो शोरो से विरोध किया परंतु नागपुर रेलवे स्टेशन के पुल के पास पहुंचते ही अंग्रजी सरकार द्वारा गोली चलाने का आदेश दे दिया गया जिसमें यह 13 अगस्त 1942 को वही पर तुरत शहीद हो गए।
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