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Monday, February 12, 2024

VAISHYA DOMINATION FROM SAMVAT 300 TO NINE HUNDRED - संवत तीन सौ से संवत नो सो तक वैश्य आधिपत्य

#VAISHYA DOMINATION FROM SAMVAT 300 TO NINE HUNDRED - संवत तीन सौ से संवत नो सो तक वैश्य आधिपत्य

संवत तीन सो से संवत नो सो तक वैश्य जाति का आर्याव्रत में आधिपत्य रहा हैं. गुप्त वंश, परवर्ती गुप्त वंश, मालव का गुप्त वंश, वर्धन वंश, बंगाल का पाल और सेन वंश ने इस समय में देश पर अपना आधिपत्य स्थापित किया.

विक्रम संवत की तीसरी चौथी पांचवी शताब्दी में वैश्य जाति परम उन्नति पर थी. उस समय जैन और बोद्ध धर्म का प्रभाव चमक रहा था. वैशाली, श्रावस्ती, पाटलिपुत्र, कान्यकुब्ज, उज्जयनी, सौराष्ट्र, पौन्द्वर्धन आदि व्यापारिक नगरो में ताम्रपत्र पाए गए हैं. उनसे वैश्य समाज की उन्नति का पता चलता हैं. उस समय इस शक्ति ने क्षत्रिय शक्ति का गर्व समाप्त करने की इच्छा की थी.जिस अमे बोध, जैन क्षत्रिय राजाओं ने वेद धर्म त्याग की इच्छा की थी उस समय ब्राह्मण शक्ति ने वैश्य शक्ति में सम्मिलित होकर एक वैश्य गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त से अश्वमेध यज्ञ कराया था. और वह अश्वमेध यज्ञ बोद्ध राजधानी पाटलिपुत्र में हुआ था. यद्यपि अश्वमेध यज्ञ क्षत्रियो का अधिकार था. परन्तु उस समय घोषणा की गयी थी की प्रथ्वी क्षत्रिय विहीन हैं. इस कारण यह यज्ञ एक वैश्य सम्राट द्वारा अनुष्ठित होता हैं. यह गुप्त वंश के सम्राटो का वैश्य होना सबसे बड़ा प्रमाण हैं. गुप्तेती वैश्यस्य. यह पारस्कर सूत्र का पिछला भाग हैं. वैश्य जाति के नाम के बाद गुप्त लगा होता हैं. यदि वह क्षत्रिय होते तो गुप्त नाम किसी भी रूप में धारण नहीं करता. गुप्त वैश्य सम्राटो ने उस समय पृथ्वी क समस्त क्षत्रिय सम्राटो को पराजित करके अपने अधीन किया था. उनके दरबार में सनातन, जैन और बोध तीनो ही प्रतिष्ठित थे.


विक्रम संवत सातवी शतब्दी में पूर्व भारत के अधीश्वर वैश्य सम्राट चन्द्रगुप्त( शशांक नरेन्द्र गुप्त) ने सनातन की पराकाष्टा ज्वलंत उदाहरण प्रश्तुत किया था. उसे कन्नौज अधिपति वैश्य सम्राट हर्षवर्धन ने पराजित किया था.

यह वर्धन वंश भी वैश्य वंश था. वर्धन उपाधि भी वैश्यों की ही रही हैं. यह शक्ति वैश्यों ने थोड़े ही काल में संचय नहीं की हैं. अवश्य ही इसमें बहुत समय लगा होगा. जैसे अंग्रेज वैश्य जाति ने जिस उपाय से पृथ्वी के कोने कोने में जाकर शक्ति संपन्न हुए. इसी तरह से वैश्य वनिक समुदाय ने शक्ति का संचय किया.

वैश्य सम्राट हर्षवर्धन के यत्न से आर्यव्रत में बोद्ध सम्प्रदाय का कई उत्थान हुआ. हर्षवर्धन की मृत्यु के उपरान्त भी वैश्य समुदाय अत्यंत प्रबल था. इनमे बोद्धो की संख्या अधिक थी. पाटलिपुत्र की वैश्य जाति की चेष्टा से महाराजा गोपाल अधीश्वर हुए . यह उनके पुत्र धर्मपाल के शिला लेख से विदित होता हैं. उनकी मृत्यु के उपरान्त उनके पुत्र धर्मपाल राजा बने और उन्होंने उस समय के गौड़ देश पर अधिकार कर लिया. पाल वंश की जाति भी वैश्य ही थी. और ये महाराजा अग्रसेन के वंश से थे. इसका प्रमाण गौडीय सुवर्ण वनिक कुल के इतिहास का लेख हैं. प्रायः चार सौ वर्ष तक पाल वंश ने गौड़ मंडल पर अपना आधिपत्य बनाए रखा. गौड़ मंडल उस समय आज के बंगाल को कहा जाता था.

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