#JAIN SAMRAT SAMPRATI
वो महान जैन राजा जिन्होंने सवा लाख जैन मंदिरों का निर्माण करवाया था एवं सवा करोड़ जैन प्रतिमाएं भरवाई थी !
जैन राजा जिसने बचने के लिए बनाई - The Great Wall Of China
सम्राट अशोक के पौत्र सम्राट संप्रति विश्व के सर्वकालीन महान राजाओं में गौरवपूर्ण स्थान रखते हैं । सम्राट अशोक एवं उनके पौत्र संप्रति ने भारतीय संस्कृति को विश्वसंस्कृति बनाने का भगीरथ प्रयत्न किया ।
एक समय संप्रति राजा अपने राजमहल के झरोखे में बैठे थे । राजमार्ग से जाते हुए आचार्य सुहस्तिसूरि को देखकर संप्रति महाराज को ऐसा अनुभव हुआ कि मानों वे इस साधुपुरुष के साथ वर्षो से परिचित हैं ।धीरे -धीरे पूर्वजन्म के स्मरण संप्रति महाराज के मन में उमड़ने लगे । उन्होंने गुरु महाराज को महल में पधारने की बिनती की । तत्पश्चात् महाराज संप्रति ने प्रश्न किया कि आप को देखकर मुझे ऐसा क्यों लगा कि मानो आपके साथ मेरा वर्षो से गहरा परिचय न हो ! ऐसा क्यों होता होगा ?
आचार्य सुहस्तिसूरि ने उसका रहस्य बताते हुए कहा कि तुम पूर्व जन्म में मेरे शिष्य थे । एक समय कौशाम्बी नगरी में भीषण दुर्भिक्ष या अकाल पड़ा था , फिर भी श्रावक उत्साह से साधुओं की वैयावृत्ति करते थे । इस समय में गरीब भिखारी की दशा में रहते संप्रति को रोटी का एक टुकड़ा भी प्राप्त न होता था । उसने साधुओं से भिक्षा माँगी , तब ख्याल आया कि यदि वह दीक्षा ले तभी ये साधु इसे अपना भोजन दे सकें । संप्रति ने दीक्षा ली । खूब भोजन किया । उसके बाद अंतिम समय में साधु संप्रति का समाधिमरण हुआ , तब गुरुदेव ने उन्हें णमोकार मंत्र सुनाया था ।
यह सुनकर महाराजा संप्रति ने अपना राज्य आचार्य सुहस्तिसूरि के चरणों में रख दिया , परंतू अकिंचन वैरागी मुनि भला राज्य का क्या करें ? आचार्यश्री ने उसे जैन धर्म का उपदेश दिया । राजा संप्रति धर्म के सच्चे आराधक एवं महान प्रभावक बनें । सरहदों के पार धर्म का प्रसार किया । गुरुदेव के पूर्वजन्म के और इस जन्म के उपकारों को संप्रति ने शिरोधार्य किया ।उन्होंने अनार्य देशों में जैन साधुओं को धर्मप्रचार के लिए भेजा । गरीबों को मुफ्त भोजन देती हुई दानशालाएँ खुलवाई । जैन विहारों का निर्माण किया ।
महाराजा संप्रति युद्ध में विजयी होकर वापस लौटे । चारों ओर विजय का उल्लास लहरा रहा था , परंतु महाराज संप्रति की माता के चेहरें पर घोर विषाद एवं निराशा छाई हुई थी । महाराज संप्रति ने माता से ऐसी व्यथा का कारण पूछा तब माता ने कहा कि साम्राज्य विस्तार के लोभ में तूनें कितना सारा मानवसंहार किया ! ऐसे घोर संहार की अपेक्षा चित्त को पावन करते हुए जिनमंदिरों का निर्माण किया होता या उनका जीर्णोद्धार करवाया होता तो मेरा हृदय असीम प्रसन्नता का अनुभव करता । इसलिए सम्राट संप्रति ने अपने जीवनकाल में सवा लाख जिनमंदिर बनवाये और सवा करोड़ जिनबिंब प्रतिष्टित कर माता की भावना को यथार्थ या सार्थक किया ।
महाराजा संप्रति ने दूर के ईरान और अरब देशों में जैन संस्कृति के केन्द्रों की स्थापना की थी ।
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