Pages

Sunday, February 4, 2024

RAJA PATNIMAL AGRAWAL - MATHURA JANM BHUMI

#RAJA PATNIMAL AGRAWAL - MATHURA JANM BHUMI 

राजा पटनीमल, जिनके वंशजों ने 112 साल लड़ा श्रीकृष्ण जन्मभूमि का केस: कर्जदार हो गए लेकिन नहीं मानी हार
 

मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि से शाही ईदगाह मस्जिद हटाने को लेकर कोर्ट में सुनवाई चल रही है। इस मामले की सुनवाई के लिए कोर्ट ने मई 2022 में याचिका स्वीकार की थी। हालाँकि, श्रीकृष्ण जन्मभूमि को लेकर केस की शुरुआत साल 1832 में यानी 190 साल पहले ही हो गई थी। वाराणसी के राजा पटनीमल ने पहला केस लड़ा था। इसके बाद, उनके वारिसों ने 112 साल केस लड़ा। केस लड़ते-लड़ते राजा पटनीमल के वारिसों के सिर पर कर्ज हो गया था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

दरअसल, साल 1803 में अंग्रेजों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के नेतृत्व में मराठा शासक दौलत राव सिंधिया को हराकर मथुरा में कब्जा कर लिया था। इसके बाद, साल 1815 में अंग्रेजों ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि की जमीन को नीलाम कर दिया। नीलामी में वाराणसी के राजा पटनीमल ने इसे खरीद लिया।

श्रीकृष्ण जन्मभूमि को लेकर पहला केस साल 1832 ईदगाह मस्जिद के मुअज्जिन अताउल्लाह खातिब ने किया था। खातिब ने कलेक्टर के सामने बिक्री रद्द करने और मस्जिद को रिपेयर कराने की अर्जी लगाई। हालाँकि, कलेक्टर ने यह कहते हुए केस खारिज कर दिया कि मराठा शासन के दौरान मुअज्जिन मस्जिद छोड़कर भाग गया था।

इसके बाद, अगला केस साल 1897 में अहमद शाह नामक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पास की रोड को रिपेयर कर रहे गोपीनाथ पर केस कर दिया। उसने आरोप लगाया था कि यह जमीन मुस्लिमों की है। लेकिन मजिस्ट्रेट ने उसकी अपील खारिज कर दी और कहा कि ये साबित नहीं होता कि जमीन मुस्लिमों की है।

श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर अगला केस साल 1920 में अंजुमन इस्लामिया के सेकेट्री काजी मुहम्मद अमीर ने दायर किया। अमीर ने कोर्ट में कहा था कि मस्जिद के आसपास प्रह्लाद नामक व्यक्ति मंदिर बनवा रहा है। यह जमीन मुस्लिमों की है। इस अपील को भी कोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा था कि यह जमीन राजा पटनीमल ने खरीदी थी। साथ ही, यहाँ कोई नया मंदिर नहीं बन रहा है। क्योंकि यहाँ सालों से पुराना मंदिर था।

इसके बाद, इस मामले में मुस्लिम पक्ष की ओर से साल 1928 में मोहम्मद अब्दुल खाँ नामक व्यक्ति ने एक और केस दायर किया गया। लेकिन, साल 1935 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस विवाद का निपटारा किया और राजा राय कृष्णदास के पक्ष में फैसला सुनाया। तमाम केस लड़ते हुए राजा राय कृष्णदास पर कर्ज हो गया था। हालाँकि, उन्होंने कर्ज के बोझ तले दबने के बाद भी लड़ाई लड़ने का ही फैसला किया। दरअसल, वह नहीं चाहते थे कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुस्लिमों के पास जाए।

हालाँकि, विवादों और उलझनों के बीच 8 फरवरी, 1944 को राजा राय कृष्णदास और उनके पुत्र आनंदकृष्ण ने पंडित मदन मोहन मालवीय, गणेश दत्त और भीखनलाल आत्रेय को इस संकल्प के साथ यह भूमि बेच दी कि वे यहाँ मंदिर निर्माण कराएँगे।

‘श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान’ के सचिव कपिल शर्मा राजा पटनीमल के वारिसों को लेकर कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण की जमीन के लिए लड़ते-लड़ते पैरोकारों पर 13,400 रुपए का कर्ज हो गया था। उन्होंने जब बेची तब केवल कर्ज उतारने के लिए 13,400 रुपए ही लिया। उनके इस कर्ज पर ब्याज करीब दस हजार रुपए हो गया था। लेकिन, राजा पटनीमल के वारिसों ने ब्याज धीरे-धीरे अपने पैसों से चुकाने की बात कही थी।

काशी में राजा पटनीमल बहादुर अग्रवाल कुल के भूषण हो गए हैं। इन के उद्योग, अध्यबसाय, साहस धर्मनिष्टा, गभीर गवेपणा, वद्धि और अपूर्व- औदार्य सभी गुणप्रशंसा के योग्य हैं । कई वेर राज विप्ल्व में ऐसे लुट गए कि कुछ भी पास न रहा किन्तु अपने उद्योग से फिर करोड़ों की सम्पत्ति पैदा किया। गया काशी मथुरा वैतरणी किस तीर्थ में इन दो बनाए मंदिर घाट तलाव आदि नहीं हैं । कर्मनाशा का पक्का पुल अद्यापि इन की अतुल कीर्ति का चिन्ह बर्तमान है । फारसी विद्या के ये पारङ्गत थे । काशीखण्ड का सम्पूर्ण फारसी में इन्हों ने स्वयं अनुवाद किया है । और भी कई ग्रन्थों को हिनी और फारसी में इन्हों ने अनुबाद कराया था। वेद स्मृति पुराण काव्य कोष आदि विपय मात्र की पुस्तकै इन्हों ने संग्रह की थीं। फारसी पुस्तकों के संग्रह की तो कोई वात ही नही । अंगरेजी यद्यपि स्वयं नही जानते थे किन्तु दस पंदरह हजार की पुस्तकें अंगरेजा भापा की संग्रह की थी और सब के ऊपर फारमी मे उस का नाम विषय कवि मूल्य आदि का वृत्तांत उन के हाथ का लिखा हुआ था। उन का सरस्वती भंडार और औषधालय तीन लाख रुपये का समझा जाता था । किन्तु हाय ! वह अमूल्य भंडार नष्ट हो गया। कीट दीमक छुईमुई चूहे आदि उन अमुल्य ग्रंथो को खा गए । उनके स्वकार्य पुण छ पौत्र और अनेक प्रपौत्रों के होते भी यह अमूल्य संग्रह भस्मावशेष हो गया । मैने दो बेर इस भंडार का दर्शन किया था। रुपये का चार आना तो पहली ही बेर देखा था दूसरी वेर एक आना मात्र वचा पाया । सो भी खंडित छिन्न भिन्न ।

1 comment:

  1. उत्तम जात रचि विधि ने, नाथ कृपा करि कीन्हा लखेरा।

    भोजन पान करे न काहु के, मांगत दाम उधार ने केरा।।

    जो त्रिया पति संग न जावत, आवत हाथ कहा मन मेरा।

    सूर्य चंद्र और अग्नितवंश, इन तीनों वंश से भया लखेरा .
    Sir, इसका भावार्थ क्या होगा ,कृपया e-mail के जरिये बताये rohitpatwa9935@gmail.com
    धन्यवाद!

    ReplyDelete

हमारा वैश्य समाज के पाठक और टिप्पणीकार के रुप में आपका स्वागत है! आपके सुझावों से हमें प्रोत्साहन मिलता है कृपया ध्यान रखें: अपनी राय देते समय किसी प्रकार के अभद्र शब्द, भाषा का प्रयॊग न करें।