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Tuesday, March 4, 2025

GOPINATH MOHAN SAHA - महान क्रांतिकारी बलिदानी

GOPINATH MOHAN SAHA - महान क्रांतिकारी बलिदानी 

गोपी मोहन साहा
भूखा भेड़िया और घायल शेर


सन् 1922, 'टेगार्ट' कोलकाता का पुलिस कमिश्नर, ईस्ट इंडिया कंपनी के चरित्र का असली वारिस। भारत के साथ व्यापार करने वालों के लिए महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने सन् 1600 ईस्वी में 'ईस्ट इंडिया कंपनी' की स्थापना की थी। उसी समय एलिजाबेथ ने एक फरमान जारी किया था जिसका भाव इस प्रकार है। "ईस्ट इंडिया कंपनी' ऐसे दुःसाहसी लोगों की एक मंडली (Society of Adventurers) है जो लूट, सट्टा अथवा सच-झूठ, न्याय-अन्याय एवं ईमानदारी या बेईमानी का ख्याल न रखते हुए धन कमाने के लिये निकले हैं।" इस कंपनी के निदेशकों को प्रारंभ से ही निर्देश था कि वह इसमें किसी भी जिम्मेदारी के पद पर शरीफ आदमी को नियुक्त न करें।  ब्रिटिश शासन तंत्र कंपनी की पीठ पर था। अतः व्यापारिक कंपनी अपने चरित्र के बल पर भारत की शासक बन बैठी। यद्यपि 1858 में अत्याचारों की सीमाएं लांघने के कारण कंपनी का शासन समाप्त हुआ और भारत ब्रिटिश उपनिवेश बन गया। लेकिन अपनी स्थापना के तीन सौ वर्ष बीतने के बाद भी भारत को अपने कब्जे में बनाये रखने के लिये चुन- चुन कर उसी चरित्र के अधिकारी भेजे जाते रहे। ऐसे ही चरित्र का प्रतीक था 'टेगार्ट'।

वर्ष 1921-22 में इसी टेगार्ट ने बंगाल में क्रांतिकारी गतिविधियों पर लगाम लगा दी थी। 'बंगाल आर्डिनेंस एक्ट 1918' के अंतर्गत गिरफ्तारी के लिए कोई कारण बताने की आवश्यकता नहीं थी। बिना कोर्ट में पेश किये अनिश्चितकाल तक किसी को भी जेल में सड़ने के लिए बाध्य किया जा सकता था। टेगार्ट ने इसी आर्डिनेंस का सहारा लेकर बंगाल में क्रांतिकारी आंदोलन को कुचला प्रमुख क्रांतिकारियों को या तो फांसी पर लटका दिया गया या उन्हें लंबी अवधि के लिए अलीपुर और अंडमान की जेलों में कठोर यातनाएं सहने के लिए डाल दिया गया। लोग टेगार्ट के नाम से घबराने लगे ।

आई.सी.एस. की नौकरी से त्यागपत्र देकर जिस दिन नेताजी सुभाष चन्द्र बोस हावड़ा स्टेशन पर उतरे, उसी दिन से टेगार्ट ने उनके पीछे जासूसों का जाल बिछा दिया था। दिनांक 24 दिसम्बर 1921 को प्रिंस ऑफ वेल्स के कोलकाता पहुंचने पर वहां पूर्ण हड़ताल रही। विरोध में जगह-जगह प्रदर्शन हुए। विरोध प्रदर्शन हेतु चितरंजन दास और सुभाष चन्द्र बोस ने पूरी ताकत लगा दी।

प्रिंस आफ वेल्स के साथ उसका चचेरा भाई डिकी माउंटबेटन उसका ए.डी.सी. बनकर आया था। डिकी माउंटबेटन सुभाष के साथ अपनी छोटी सी मुलाकात में ही भांप गया कि सुभाष के अंदर अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध ज्वालामुखी धधक रहा है। अतः उसने टेंगार्ट को निर्देश दिया - "बोस नाम का यह व्यक्ति एक खतरनाक क्रांतिकारी है। इसके पर काटने आवश्यक हैं। इस पर कड़ी नजर रखी जाय।" इस पर टेंगार्ट ने उत्तर दिया था

"यस, योर मेजेस्टी, इसके लिए लोहे का पिंजरा तैयार है, बस मौके की तलाश है।" गोपी मोहन प्रिंस आफ वेल्स के विरोध और असहयोग आंदोलन के सभी प्रदर्शनों में भागीदार था। उसने चितरंजन दास की पत्नी बासंती देवी को जब आंदोलन का नेतृत्व करते देखा तो उसका रोम-रोम रोमांचित हो उठा। गोपी मोहन अभी मात्र 18-19 वर्ष का युवक ही था, लेकिन वह आंदोलन की योजना हेतु सभाओं में प्रायः भाग लेता रहता था। बासंती देवी की गिरफ्तारी से उसका मन टेगार्ट की यातनाओं से कांप गया।

गांधी जी द्वारा संचालित असहयोग आंदोलन अपने चरम पर था। तुर्की के खलीफा के कारण भारत के मुसलमानों द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध छेड़े गये खिलाफत आंदोलन के असहयोग आंदोलन में विलय से पूरे भारत के हिंदू और मुसलमान एक मंच से अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिये आतुर हो उठे। गांधी जी की 'एक वर्ष में स्वराज्य' की घोषणा सफल होती प्रतीत होने लगी।

इस सबके ठीक-ठाक चलते हुए भी गोपी मोहन चिंतित था । उसे लग रहा था कि टेगार्ट सुभाष को छोड़ने वाला नहीं है। अतः अपने साथियों के साथ वह भविष्य की योजना बनाने में व्यस्त था। तभी दौड़ा हुआ जतिन दास आया और उसने हांफते हुए सूचना दी- 'अरे गोपी! कुछ सुना तुमने ? मैं तुम्हें एक राज की बात बताना चाहता हूं। टेगार्ट 44 सुभाष को अपने चंगुल में फंसाने वाला है। गुप्त सूचना से पता चला है कि वह हमेशा के लिए सुभाष को बंगाल से अलग करने वाला है। “जतिन, तुमने तो मेरी शंका को और भी पक्का कर दिया। टेगार्ट सुभाष पर अपना पंजा कसे, उससे पूर्व ही हमें उसे ठिकाने लगा देना चाहिये ।"

इसके बाद गोपी मोहन के जीवन का उद्देश्य ही 'टेगार्ट का खात्मा' बन गया। वह हर समय टेगार्ट के बारे में ही सोचता रहता। असहयोग आंदोलन वापस लिए जाने से उसके मस्तिष्क को गहरा आघात लगा था। रात्रि में कई बार सोते-सोते वह 'टेगार्ट'-'टेगार्ट' चिल्लाने लगता था। उसने क्रांतिकारी संगठनों से सम्पर्क कर पिस्टल का प्रबंध किया। निशाना साधने का अभ्यास किया। टैगार्ट की शक्ल, पोशाक आदि की खूब पहचान कर ली। हर समय पिस्टल कांख में दबाये गार्ट की तलाश में घूमता रहता।

दिनांक 12 जनवरी 1924, प्रात: लगभग 7 बजे का समय। कोलकाता की चौरंगी रोड के निकट पार्क स्ट्रीट का चौराहा धुंध के कारण दस फुट की दूरी का आदमी भी साफ दिखाई नहीं दे रहा था। गोपी मोहन ने देखा कि गोरी चमड़ी का एक व्यक्ति ओवरकोट और सिर पर हैट पहने था। उसे लगा कि वह निश्चित ही टेंगार्ट है। उसने तुरंत अपना रिवाल्वर निकाला और उसके निकट जाकर गोली दाग दी। वह व्यक्ति कुछ संभलता, उससे पूर्व ही तीन गोलियां और दागीं। वह व्यक्ति वहीं गिर पड़ा और उसने दम तोड़ दिया। गोपी मोहन थोड़ी दूर चला होगा कि उसे टैक्सी दिखाई पड़ी। उसने ड्राईवर को चलने के लिये कहा। ड्राईवर के मना करने पर एक गोली उस पर भी चलाई लेकिन ड्राईवर बच गया क्योंकि उसकी कमर में एक चौड़ा पट्टा बंधा था। गोली उसी से टकरा कर निकल गई। अब लोगों ने उसको पकड़ने हेतु उसका पीछा किया। एक व्यक्ति उसके निकट पहुँच गया। गोपी मोहन ने उसे भी गोली मार कर गिरा दिया। वह भाग कर पास से गुजर रही एक बग्घी के पायदान पर चढ़ गया। तभी एक साहसी युवक ने बग्घी पर चढ़कर उसे पकड़ कर नीचे गिरा लिया। फिर तो अनेक लोगों ने मिलकर गोपी मोहन को काबू कर लिया। उसके पास एक पिस्टल, एक रिवाल्वर और पैंतालीस जीवित कारतूस निकले, गोपी मोहन को पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया।

पकड़े जाने के बाद जब गोपी मोहन को पता चला कि उसकी गोलियों से मरने वाला गार्ट नहीं अपितु किलवर्न व्यापारी कंपनी का अंग्रेज कर्मचारी ई. डे. था, तो उसे बेहद अफसोस हुआ। अभी तक यह किसी को भी मालूम नहीं था कि आखिर उसने डे. को क्यों मारा? उसे हथकड़ी और बेड़ियों में जकड़ कर टेगार्ट के सम्मुख लाया गया। टेंगार्ट ने अपनी खूंखार आंखें तरेरीं, कमर से अपनी लोहे के बकल वाली बैल्ट खोली और गुर्राता हुआ बोला

"बता तूने डे को क्यों मारा? उससे तेरी क्या दुश्मनी थी ?"

"मैं तो साहब, तेरा खून करना चाहता था। बेचारा डे. तो गलती से मारा गया। उसकी दाढ़ी-मूंछें बिलकुल तेरी ही जैसी थी न।"

इतना सुनकर टेगार्ट वहां खड़े पुलिसकर्मियों को गालियां बकने लगा-

'सुन लिया वे! तुम क्लबों में जवान छोकरियों के पीछे दुम हिलाते फिरते हो और 44 यहां मेरी, 'टेगार्ट' की हत्या की साजिश चल रही है, जिसकी तुम्हें कोई खबर ही नहीं। डूब मरो सब चुल्लू भर पानी में।"

"साहब इन बेचारों को क्यों डांटता है तू मेरे हाथों से तो बच गया पर मेरे साथी तुझे छोड़ेंगे क्या ?"

'जिस टेगार्ट के नाम से सारा बंगाल थर्राता हो, आज उसी टेगार्ट के जीवन को चुनौती दी जा रही थी। रेगार्ट भूखे भेड़िये की तरह गोपी मोहन पर टूट पड़ा। पांच-छः सिपाहियों ने उसे जकड़कर मुंह के बल औधा लिटा दिया और उसके गर्दन और पैरों पर इस तरह बैठ गये कि वह हिल भी न सके। उसकी नंगी पीठ पर धड़ाधड़ बैल्ट बरसने लगी। लोहे के बकल से गोपी की कमर लहू-लुहान हो गयी। लेकिन वाह रे क्रांतिवीर ! उस मार को तू ऐसे सहता चला गया कि न चीखा, न कराहा और न ही मुंह से आह तक निकाली।

रेगार्ट दहाड़ा "बोल तू किसका आदमी है ?"

"मैं किसी का आदमी नहीं, मैं तो भारत मां का वीर पुत्र हूं।" "मेरी हत्या क्यों करना चाहता था ?"

"साहब, तूने मेरे कितने ही भाईयों को जेलों की काल कोठरियों में सड़ा रखा है, अनेक को फांसी पर लटकाया है, उन सबका तुझसे हिसाब चुकाना था।" गार्ट भूखे भेड़िये की तरह गोपी मोहन की तरफ गुर्राता रहा। और घायल शेर को पिंजरे में बंद कर दिया गया।

दिनांक 21 जनवरी 1924 को गोपी मोहन को अदालत में पेश किया गया। गोपी मोहन ने अपने बयान में स्वीकार किया- "मैं पुलिस कमिश्नर टेगार्ट के अत्याचारों से जनता को मुक्ति दिलाने के लिए उसकी हत्या करना चाहता था, लेकिन मेरी गलती से वह बच गया।"

दिनांक पहली मार्च 1924,

सूर्योदय से पूर्व ही जेल के बाहर लोगों की भीड़ इकट्ठा होने लगी। स्वराज्य दल के अन्य लोगों और परिजनों के साथ सुभाष चन्द्र बोस भी प्रेसीडेंसी जेल के बाहर मौजूद थे। सुभाष चन्द्र बोस ने प्रयत्न किया कि फांसी के बाद गोपी का शव उसके घर वालों को सौंपा जाए। लेकिन ऊपर से आदेश था कि गोपी का अंतिम संस्कार जेल में ही किया जाय। अतः मुखाग्नि देने हेतु केवल गोपी मोहन के भाई मदन मोहन को ही अन्दर जाने की आज्ञा प्रदान की गई।

दोपहर तक जेल के बाहर 'गोपी मोहन...... जिंदाबाद' और 'वन्देमातरम्' के नारे लगते रहे। अंतिम संस्कार के बाद जब मदन मोहन अपने भाई के कपड़ों को लेकर जेल के दरवाजे से बाहर निकले तो सारा वातावरण सिसकियों में डूब गया। सुभाष चन्द्र बोस ने उन कपड़ों को अपने हाथों में लेकर चूमा और भावुक हो उठे। गोपी मोहन के कपड़ों पर जब सुभाष के अश्रु गिरे तो सारा वातावरण गमगीन हो गया। पश्चिम बंगाल के सिरामपुर (हुगली) में विजय कृष्ण साहा के घर में 1904 में जन्मा गोपी केवल अठारह वर्ष की आयु में ही मातृवेदी पर अपने प्राण न्यौछावर कर सदैव के लिये अमरत्व प्राप्त कर गया।

CA TOPPER 2025 DEEPANSHI AGRAWAL, SARTHAK AGRAWAL, ANUSHKA SINGHAL & APURVA SINGHAL

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फिर से जलवा वैश्य बनिया बच्चो का 

'अपने पिता के सपने को जीना': दीपांशी अग्रवाल ने AIR 1 के साथ CA इंटर में टॉप किया


'अपने पिता के सपने को जीना': दीपांशी अग्रवाल ने AIR 1 के साथ CA इंटर में टॉप किया

दीपांशी अग्रवाल, वह लड़की जिसने CA में ऑल इंडिया रैंक 1 हासिल कीमध्यवर्ती परीक्षा, हैदराबाद से आती है। उसकी लगन और निरंतरता ने उसे भारत की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक में 600 में से 521 अंक दिलाए। दीपांशी ने अपनी सफलता अपने माता-पिता, गुरुओं और अपने आस-पास के सभी लोगों को समर्पित की, जिन्होंने उतार-चढ़ाव के दौरान उसका साथ दिया। टाइम्स नाउ डिजिटल के साथ एक विशेष बातचीत में , उसने अपनी यात्रा साझा की, कड़ी मेहनत, तनाव दूर करने वाले उपाय, सहायता प्रणाली, परीक्षा रणनीति और वह सब कुछ जो आप एक उम्मीदवार के रूप में तलाश रहे होंगे।

सीए बनना उसके पिता का सपना था, लेकिन वे इसे इंटरमीडिएट स्तर से आगे नहीं बढ़ा पाए। पारिवारिक कारणों से उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी और अब वे टेक्सटाइल का व्यवसाय करते हैं। दीपांशी एक सीए बनने का अपना और अपने पिता का सपना पूरा कर रही हैं।

'मेरे माता-पिता, मेरी ताकत'

अपनी यात्रा के बारे में बात करते हुए, दीपांशी ने बताया कि कैसे वह अपनी परीक्षाओं से पहले बहुत चिंतित रहती थी। उस दौरान, आसपास के सभी लोगों ने उसका साथ दिया। दीपांशी ने कहा, "कठिनाइयों के दौरान, मेरे पिता, माँ और दोस्त मुझे प्रोत्साहित करने और मुझे आगे बढ़ाने के लिए मौजूद थे," वह भाग्यशाली थी कि उसे अपने माता-पिता, दोस्तों और गुरुओं से अटूट समर्थन मिला।

दीपांशी के पिता ने कहा, "तुम्हें बस 300 नंबर लाने हैं," वे नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी परीक्षा के बोझ से दब जाए। वे हमेशा उसके समर्थन में खड़े रहे और उसे कभी हार नहीं मानने दी। जब भी उसे नतीजों का डर लगता, तो वे उससे कहते, "तुम बस वही लिखो जो तुमने पिछले साल सीखा है।"

इसी तरह, एक गृहिणी होने के नाते, उसकी माँ ने खुद ही सब कुछ संभाला। उसने दीपांशी को घर का कोई काम नहीं करने दिया। सीए ने कहा, "मेरे माता-पिता दोनों ने मेरा बहुत साथ दिया। मैंने पूरे दिन पढ़ाई के अलावा कोई काम नहीं किया। मेरे पिता मेरे कमरे में खाना लाते थे क्योंकि मैं तनाव के कारण परीक्षा के दिनों में भूखा रहता था।"टोपर, जो 7-10 घंटे और यहां तक ​​कि दिन में 12 घंटे तक पढ़ाई करती थी। उसके माता-पिता ने सुनिश्चित किया कि वह खाली पेट न सोए।

मॉक टेस्ट, स्टडी ब्रेक: दीपांशी की सफलता का राज

19 वर्षीय दीपांशी ने सीए इंटर परीक्षा में दोनों ग्रुप के लिए लिखने का दृढ़ निश्चय किया था। इसे हासिल करने के लिए, उसने ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से कई कोचिंग क्लास लीं। बातचीत के दौरान, उसने अपनी सफलता का श्रेय काफी हद तक अपने गुरुओं को दिया; मॉक टेस्ट ने उसकी तैयारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सीए इंटरमीडिएट परीक्षा में 86.3% अंक प्राप्त करने वाली दीपांशी ने कहा, "मैंने मॉक टेस्ट दिए- यह मेरी दूसरी मुख्य चीज थी। मैंने तीन मॉक टेस्ट दिए क्योंकि मैं उन पर कोई समझौता नहीं करना चाहती थी।"

पढ़ाई के दौरान ब्रेक लेना दिमाग के लिए बहुत ज़रूरी है, ताकि अब तक जो सीखा है, उसे प्रोसेस किया जा सके और शरीर को आराम मिले। दीपांशी ने सोने और पढ़ाई के ब्रेक के मामले में अपना पूरा ध्यान रखा। उसने परीक्षा के दिन से पहले आठ घंटे की नींद लेना सुनिश्चित किया, क्योंकि बिना उचित आराम के काम करना मुश्किल होता है।

इसी तरह, शनिवार की रात और रविवार उसके आराम के दिन थे। AIR 1 अचीवर दीपांशी ने कहा, "चाहे कुछ भी हो जाए, मैं आज कोई किताब नहीं खोलने वाली हूँ", वह अपने दोस्तों के साथ बाहर जाने, अपने माता-पिता के साथ बैठने और मूड को हल्का करने के लिए नियमित रूप से ब्रेक लेती थी।

उन्होंने कई गुरुओं से कोचिंग ली, जिनमें राहुल सीए अकादमी पैराडाइज, लॉ के लिए शुभम सिंघल, ऑडिट के लिए शुभम केशवानी, डीटी के लिए बीबी सर और अंत में जीएसटी के लिए विशाल भट्टड़ सर शामिल थे।

एक समय ऐसा भी आया जब दीपांशी को लगा कि वह सिर्फ एक ही ग्रुप में भाग लेना चाहती है। फिर उसने CA बडी शुभम सिंघल का एक वीडियो देखा, जिसमें उसने छात्रों को दोनों ग्रुप में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया, चाहे कुछ भी हो। उनकी सलाह मानकर दीपांशी ने यह कदम उठाया और बड़ी सफलता हासिल की।

अपने हालात से निपटने के तरीकों के बारे में बात करते हुए दीपांशी ने कहा, "जब भी मैं निराश महसूस करती थी, तो मैं यूट्यूब खोलकर सीए फैकल्टी के सदस्यों और टेड टॉक्स के प्रेरक वीडियो देखती थी। आज मैं जो कुछ भी कर सकती हूँ, उसमें इनसे मुझे बहुत मदद मिली है।"

जब दीपांशी से उनके तनाव दूर करने के तरीकों के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कई बातें बताईं। वह अपने माता-पिता के साथ बैठकर बातचीत करती थीं, अपना पसंदीदा संगीत सुनती थीं, शारीरिक रूप से फिट रहने के लिए ज़ुम्बा करती थीं, खुद को अभिव्यक्त करने के लिए कविताएँ लिखती थीं और फ़ूड ब्लॉग देखती थीं। वह सोशल मीडिया के ज़रिए भी अपना मूड ठीक रखती थीं, क्योंकि उन्हें अपने खाली समय में रील देखने में मज़ा आता था।

भविष्य की योजनाएं

जब उनसे उनकी भविष्य की योजनाओं के बारे में पूछा गया, तो दीपांशी ने कहा कि वह फिलहाल अपने आर्टिकलशिप प्रशिक्षण के बारे में सोच रही हैं, जिसे वह बिग 4 फर्मों में से किसी एक में करना चाहती हैं। उन्होंने कहा, "मेरा प्राथमिक लक्ष्य परीक्षा पास करना था, लेकिन परिणाम काफी अच्छा रहा। फिलहाल, मैं अपने आर्टिकलशिप पर ध्यान केंद्रित कर रही हूं।"