Pages

Wednesday, March 19, 2025

KALYAN SINGH AGRAWAL - दानवीर दीवान बहादुर दाऊ कल्याणसिंह अग्रवाल जी*

KALYAN SINGH AGRAWAL - दानवीर दीवान बहादुर दाऊ कल्याणसिंह अग्रवाल जी


अगर ये ना होते तो, राजधानी रायपुर का नक्शा कुछ बदला सा होता। कथा उनकी जिनके सामने आज के उद्योगपति कुछ भी नही।

सन 1828 जिला बिलासपुर के ग्राम तरेंगा में उदय हुआ तहुतदारी का, और तहुतदारी के इस जन्म के 48 वर्ष बाद,
4 अप्रैल 1876 को जन्म हुआ दाऊ कल्याण सिंह का। पिता बिसेसरनाथ व माता पार्वती देवी थी। पिता एक छोटे तहुतदार थे। ताहुतदारी को बढ़ाने व राजस्व आय को दृष्टिगत रखते हुए निर्जन स्थानों पर नए गांव बसाकर अपने ताहुतदारी गांवों में वृद्धि की, पर साथ मे कर्ज का बोझ भी बढ़ा लिया। कारोबार ठीक चल ही रहा था कि बिसेसरनाथ की मृत्यु हो गई, सन 1903 जब पिता की मृत्यु हुई दाऊ तब 27 वर्ष के थे।

अब कथा शुरू होती है हमारे नायक “दाऊ कल्याण सिंह” की। 27 वर्ष की आयु में सारे कारोबार का भार दाऊ के कंधे पर आया और साथ मे आया 2 लाख 12 हज़ार का कर्ज भी। इस कर्ज के एवज में तरेंगा की उनकी संपत्ति जबलपुर के सेठ गोकुलदास के पास गिरवी थी। दाउ की पढाई तरेंगा ग्राम में ही हुई पर प्रबन्ध कौशल किसी शहर वाले से भी तेज था। कारोबार हाथ मे लेते ही अपने सूझ बूझ और प्रबंध कौशल से सारा कर्ज जल्द ही उतार फेका और अपने क्षेत्र में ऐसा विकास किया कि ताहुतदारी की वार्षिक आय तीन लाख तक पहुच गई। कारोबार में बढ़ोतरी अब ऐसी थी कि सन 1937 में “दाऊ कल्याण सिंह” ने 70 हज़ार रुपय से अधिक का राजस्व पटाया। इन आकड़ो से उनका परिश्रम और प्रबंधन कौशल दोनो झलकता है। दाऊ के मुकाबले आज के उद्योगपति कुछ भी नही।

दाऊ केवल कमाने के लिए मशहूर नही थे, दाऊ प्रेमभाव से अपनी संपत्ति लोगो मे बाटने के लिए भी मशहूर थे। छत्तीसगढ़ के इतिहास में इनसे बड़ा दानी शायद ही आपको कोई और मिलेगा। राज्य का पुराना मंत्रालय भवन याद होगा ना आपको ? घड़ी चौक के समीप जहाँ पहले पूरा प्रशानिक अमला उस भवन की छाव में रहा करता था। छत्‍तीसगढ शासन का मंत्रालय जिस भवन में स्‍थापित था, वह पहले चिकित्‍सा सुविधाओं से परिपूर्ण भव्‍य डीके अस्पताल (दाऊ कल्‍याण सिंह चिकित्सालय) हुआ करता था। अस्पताल के निर्माण के लिए दाउ कल्‍याण सिंह नें सन् 1944 में एक लाख पच्‍चीस हजार रूपये दान में दिया था। उस समय की उस राशि का वर्तमान समय में यदि आकलन किया जाए तो लगभग सत्‍तर करोड रूपये होते है। वह छत्‍तीसगढ में एकमात्र आधुनिक चिकित्‍सा का केन्‍द्र था। प्रदेश के दूर दूर गांव व शहर से लोग निःशुल्क चिकित्सा के लिए इस अस्पताल में आया करते थे।
दान के रूप में दाऊ के कल्याणकारी कार्यो की लंबी सूची है, रायपुर के लाभांडी में कृषि महाविद्यालय हेतु कृषि प्रायोगिक फार्म के लिये 1729 एकड़ भूमि तथा 1 लाख 12 हज़ार रुपए नगद उन्होंनो दान किया था। रायपुर में ही 323 एकड़ भूमि क्षयग्रस्त रोगियों के आयोग्य धाम निर्माण हेतु दान। रायपुर स्थित एक प्रसूत चिकित्सालय में कई कमरो का निर्माण। रायपुर के पुरानी बस्ती स्थित टुरी हटरी में जग्गनाथ के प्राचीन मंदिर को खैरा नामक पूरा गांव दान में चढ़ा दिया था। ये सारे कुछ ही उदाहरण थे उनकी दानवीरता के। इसलिए दाऊ नही होते तो रायपुर का नक्शा ही कुछ और होता।

उन्होंने केवल रायपुर ही नही बल्कि प्रदेश व देश के अनेक स्थानों पर अपनी महानता की छाप छोड़ी है, सन 1921 के भयंकर अकाल के समय, पीड़ितों की सहायता के लिए भाटापारा में लाखों रुपय खर्च कर एक बड़े जलाशय का निर्माण करवाया, जिसे आज लोग कल्याण सागर जलाशय के नाम से पहचानते है। भाटापारा में ही उनके द्वारा मवेशी अस्पताल, धर्मशाला तथा पुस्तकालय का निर्माण भी करवाया गया था। दाऊ की उदारता प्रदेश की सीमा में कैद नही रही, नागपुर स्थित लेडी डफरिन अस्पताल तथा सेंट्रल महिला महाविद्यालय का निर्माण नही हो पाता अगर दाऊ कल्याण सिंह प्रचुर मात्रा में दान राशि उपलब्ध ना कराते। बिहार के भूकंप का समय हो या वर्धा में बाढ़ का, या उनके पहुँच वाले क्षेत्र में कोई अकाल इन सभी प्राकृतिक आपदाओं के समय मे दाऊ अपने कोष का मुँह खोल दिया करते थे।

दाऊ को लोग कट्टर हिन्दू माना करते थे, लेकिन जब दाऊ दान करते, तब दानधर्म ही उनके लिए सबसे बड़ा धर्म बन जाता था, उन्होंने धर्म, जाति, या वर्ण से कभी कोई भेदभाव नही किया। उन्होंने मंदिर, मस्जिद, चर्च सभी के लिए भूमि उपलब्ध कराई। बाजार, कांजीहाउस, शासकीय कार्यालय भवन, स्कूल, गौशाला, शमशान, सड़क, पुस्तकालय, तालाब आदि अनेक कार्यो के लिये न केवल भूमि मुहैया कराई वरन नगद राशि भी दान की। दाऊ के दान के कई किस्से है, सारे किस्से पिरोने बैठे तो ना जाने कितने शब्द ढूढने पड़े।

दाऊ का छत्तीसगढ़ के लिये जितना प्यार था, हम उन्हें उसका आधा भी नही दे पाए, आज दाऊ को लोग भूल चुके है। ना किसी मंच से उनका नाम सुनाई देता है, ना कोई उनकी कहानिया सुनता है। बाहरी किस्सों की भीड़ में अपने नायक के किस्से लोगो को पता ही नही।

No comments:

Post a Comment

हमारा वैश्य समाज के पाठक और टिप्पणीकार के रुप में आपका स्वागत है! आपके सुझावों से हमें प्रोत्साहन मिलता है कृपया ध्यान रखें: अपनी राय देते समय किसी प्रकार के अभद्र शब्द, भाषा का प्रयॊग न करें।