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Saturday, March 8, 2025

KHANDELWAL VAISHYA HISTORY - खण्डेलवाल समाज – उत्पति एंव संक्षिप्त इतिहास

KHANDELWAL VAISHYA HISTORY - खण्डेलवाल समाज – उत्पति एंव संक्षिप्त इतिहास

वर्तमान सदी के प्रारंभ में देश में जन जागृति के साथ समाज सुधार और धार्मिक भावनाओ की लहर प्रारंभ हुई| इसी क्रम में खण्डेलवाल वैश्य समाज में संगठन एंव समाज सुधार की भावनाएँ उभरी | खण्डेलवाल समाज के परस्पर मेल मिलाप एंव संगठित होने से यह जिज्ञासा उत्पन्न हुई की खण्डेलवाल समाज का प्रादुर्भाव कहाँ व कैसे हुआ | खण्डेलवाल वैश्य जाति के प्रमुख इतिहासकार के अनुसार इस जाति की,उत्पति खाण्डल वंश,खाण्डल ऋषि,खण्डेलवाल पद व स्वर्णखंडों के क्रय-विक्रय के कार्य विशेष से सम्बंधित है यधपि उत्पति से सम्बंध में कोई ठोस प्रमाण नही मिलते तथापि विभिन्न ताध्यों के आधार पर जो बातें प्रकाश में आयी हैं उनका विवरण इस प्रकार है | द्वापर युग के अंत में हस्तिपुर में राजा पांडु ने एक यज्ञ किया | जिसमे भारतवर्ष के अनेक राजा महाराजाओ व ऋषि , मुनियो ने भाग लिया | वहाँ से लौटते समय 20 ऋषि व 4 राजा  सेठ खठ्मल के यज्ञ में शामिल हुए | वहाँ ये लोग शिकार करने के लिए जंगल गयें और हिरन को मारा | वह हिरन दुर्वाश ऋषि का था | दुर्वाश ऋषि ने तपस्या समाप्त होने पर मरा हिरन देखकर इन सभी 24 जनों को श्राप दिया और वे पत्थर के हो गये | सेठ खटमल ने दुर्वासा ऋषि के पास जाकर इन 24 मेहमानों की श्राप मुक्ति की प्रार्थना की | दुर्वासा ऋषि ने उसकी प्रार्थना मानते हुए कहा की ये 24 जाने वैश्य हो जाये | तब सेठ खटमल ने सभी वैश्यों को एकत्र कर कहा की ये सभी खण्डेलवाल वैश्य कहलायेंगे | यही खण्डेलवाल वैश्य जाति की उत्पति हुई| एक अन्य मान्यता के अनुसार खंडेला के सेठ धनपत के 4 पुत्र थे | (1) खंडू (2)महेश (3)सुंडा (4) बीजा इनमे खंडू से खण्डेलवाल हुए ,महेश से माहेश्वरी हुए सुंडा से सरावगी व बीजा से विजयवर्गी | एक मान्यता के अनुसार ऋषि परशुरामजी ने यह यज्ञ किया तथा दान में स्वर्ण की वेदी को खंड –खंड करके बाँट दिया | इस स्वर्ण को पीने वाले खण्डेलवाल वैश्य कहलाएं | खण्डेलवाल वैश्य के 72 गोत्र है | गोत्र की उत्पति के सम्बंध में यही धारणा है की जैसे जैसे समाज में बढ़ोतरी हुई स्थान व्यवसाय,गुणविशेष के आधार पर गोत्र होते गये |अलग अलग गोत्र की कुल माताएं अलग अलग होती है | हमारे 72 गोत्र की 32 भिन्न भिन्न माताएं है जिनके पूजन का बच्चे के जन्म विवाह तक बहुत महत्व है | प्रतिवर्ष चैत्र एंव आशिवन मास की नवरात्री में प्रत्येक घर में इन देवियो की पूजा का विधान है

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