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Friday, February 28, 2025

THE GREAT AGRAWALS - बेमिसाल अग्रवाल

THE GREAT AGRAWALS - बेमिसाल अग्रवाल

अग्रवाल वणिक वर्ग और भारत के समृद्धतम और सबसे शांतिप्रिय, दानशील एवं राष्ट्रवादी समुदायों में से हैं। व्यापार बुद्धि कारोबार और उच्च प्रोफेशंस से जुड़ी इस जाति के लोगों के खून में है। आबादी का महज एक प्रतिशत होने के बावजूद अग्रवालों ने अपनी कामयाबियों से सिद्ध कर दिया है कि आगे बढ़ने के लिए मेहनत, सूझ और जोखिम सहने का जिगरा चाहिए, न कि आरक्षण।

दो सौ वर्ष मुंबई के

अग्रवाल समुदाय के लोग दो-ढाई सौ वर्ष पहले हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे स्थानों से आए और मुंबई, ठाणे व आस-पास बसते गए। आगरा, मथुरा, जैसे स्थानों से आने वाले अग्रवालों ने रेलवे की कैंटीनों के कॉन्ट्रेक्ट लिए, मिठाइयों व जनरल स्टोर्स की दुकानें खोलीं और अलसी, कॉटन व वायदा, जैसे कारोबारों में हाथ आजमाया। कइयों ने कालबादेवी जैसी जगहों में कपड़े की गद्दियां खोल लीं। व्यवसाय बुद्धि विरासत में मिली थी। कामयाबी मिलनी ही थी।

आज महानगर में अग्रवालों की तादाद सात आठ लाख से कम नहीं। 20 प्रतिशत पंजाबियों को छोड़ दें, तो मुंबई आने वाले तकरीबन सभी अग्रवाल हिंदीभाषी हैं। कुछ मारवाड़ी, हरियाणवी व पंजाबीभाषी और कुछ जैन धर्मावलंबी भी। अग्रवालों के स्कूल, कॉलेज, धर्मशालाएं और सामुदायिक स्थान मुंबई, ठाणे और नवी मुंबई में हर जगह मिलेंगे। ठाकुरद्वार व घाटकोपर स्थित अग्रसेन भवन और कोपरखैरणे का महालक्ष्मी मंदिर उनके सामुदायिक स्थान हैं। अग्रोहा विकास ट्रस्ट, अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन, अग्रबंधु सेवा समिति, अग्रवाल सेवा समाज, अग्रवाल सेवा समिति, मुंबई अग्रवाल सामूहिक विवाह सम्मेलन और महाराजा अग्रसेन सेवा संस्थान, महालक्ष्मी मंदिर भवन संस्थान जैसे उनके 35 के करीब संगठन मंदिर दर्शन, पिकनिक, खेलकूद, परिचर्चा, चिकित्सा, रक्त व सहायता शिविरों, आनंद व अग्रवाल मेलों, हरियाली तीज, सहभोज और स्नेह सम्मेलनों से लेकर विमानों और स्टार क्रूज से सामूहिक विदेश यात्राओं तक का आयोजन करते हैं। सोशल मीडिया पर यह समुदाय बेहतर ढंग से 'कनेक्टेड' है।

एकजुट होकर दिखाएंगे दम

'अब न पैसा, न वोट', अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन के राष्ट्रीय उप महामंत्री डॉ. राजेंद्र अग्रवाल संगठन के आंतरिक मंचों पर चल रहे विचार-मंथनों की चर्चा करते संजीदा हो गए, 'राजनीतिक दलों को चुनाव लड़ने के लिए जब चंदा और चुनाव जीतने के लिए वोट चाहिए होता है, तभी उन्हें हमारी याद आती है। आने वाले चुनावों में यह उपेक्षा हमें बर्दाश्त नहीं।' उन्होंने दो-टूक कहा, 'हमें टिकट देने वाला दल ही अब हमसे समर्थन की उम्मीद करे।' सो आने वाले चुनावों में कोशिश यह होने वाली है कि अग्रवाल प्रत्याशी चुनाव लड़े और जीते, चाहे वह किसी भी दल से संबंध रखता हो और समाज का एकमुश्त वोट उसे मिले।

चुनाव लड़ना और जीतना समाज की भावी रणनीति का अंग हो सकता है पर, राजनीति में पैर रखे बिना यह कैसे संभव है! व्यापार-उद्योग में अपनी कारोबारी बुद्धि और राष्ट्र निर्माण में अपने योगदान से प्रतिमान रचने वाले इस समाज में राजनीति के लिए जरूरी सक्रियता और इच्छा शक्ति का अभाव दिखता है। अग्रवाल सेवा समाज के अध्यक्ष सुरेशचंद्र अग्रवाल ने कबूल किया, 'लो प्रोफाइल और लॉबिइंग न करने की वजह से समाज राजनीतिक रूप से उपेक्षित रह गया।'

'समाज इसीलिए उपेक्षित है, क्योंकि वह एकजुट होकर अपनी मांगें रखने में कामयाब नहीं रहा है।', अग्रबंधु सेवा समिति के ट्रस्टी कानबिहारी अग्रवाल ने याद किया कि 3 वर्ष पहले जब 35 संस्थाओं ने एक मंच पर एकत्र होकर महाराजा अग्रसेन जयंती का सम्मिलित आयोजन किया था, तब वह कितना सफल रहा था। अग्रवाल सेवा समाज के सचिव आनंद प्रकाश गुप्ता का तर्क है, 'उच्च शिक्षित, बुद्धिजीवी और धनवान होने के कारण समाज के लोग हर मुद्दे को तर्क की कसौटी पर परखते हैं। इस कारण भी मतैक्य नहीं हो पाता है।' पिछले 28 वर्षो से विवाह योग्य युवाओं के सामूहिक परिचय सम्मेलन और विवाह करवा रहे अग्रवाल सामूहिक विवाह सम्मेलन के प्रमुख डालचंद गुप्ता ने दहेज और महंगी शादियों की कुप्रथाओं को दूर करने के लिए सामूहिक विवाह सम्मेलनों के रूप में की गई पहल के बारे में बताया, इस खेद के साथ कि इन आयोजनों में खाते-पीते और संपन्न तबकों के युवक-युवतियों ने भाग लेना अब बहुत कम कर दिया है।

नोटबंदी, जीएसटी और मंदी से सबसे ज्यादा प्रभावित

समुदाय के ज्यादातर लोगों की निष्ठा एक प्रमुख राजनीतिक दल की ओर झुकी हुई है, पर शिकायतों के साथ। कपड़ा व्यापार के-जहां इस वर्ग के लोग बड़ी तादाद में हैं-एक व्यापारी ने शिकायत की, 'सबसे ज्यादा टैक्स और चुनाव के लिए सबसे ज्यादा चंदा हम ही देते हैं, पर हमें चोर समझा जाता है।' एक अन्य व्यापारी ने बताया, 'सरकार हमसे केवल आर्थिक अपेक्षाएं ही रखती है।' धंधे की मंदी ने इस मलाल को बढ़ा दिया है। ई-कॉमर्स व अन्य विदेशी कंपनियों के बाजार में पैठ बनाने से यही समुदाय सबसे ज्यादा परेशान है। नोटबंदी और जीएसटी ने भी इसी समुदाय को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। खासकर, महाराष्ट्र में तो हालत यह है कि 'इंस्पेक्टर राज' की ज्यादतियों से त्रस्त होकर समाज के बिजनेसमैन अपने धंधे मुंबई से हटाकर पुणे और नासिक जैसी जगहों पर ले जाने लगे और उद्योगपति विदेशों में बैकअप ऑफिस कायम करने लगे हैं।

बदलने लगी है सूरत

- दहेज मांगने का चलन कम और शादी अपनी हैसियत वालों में ही की जाने लगी है।

- महिलाएं घर की दहलीज से बाहर दूसरे क्षेत्रों के साथ अब राजनीति में भी अलग पहचान बनाने लगी हैं।

- दुकानों की परंपरागत गद्दियों की जगह आधुनिक कार्यालय लेने लगे हैं।

- न्यायपालिका और प्रशासनिक सेवाओं में तादाद बढ़ी है।

- नई पीढ़ी का रुझान नौकरी से बदलकर फिर से व्यवसाय की ओर होने लगा है।

चुनौतियां

- एकजुटता न होने से वोट बैंक के रूप में अलग पहचान बनाने और सामूहिक ताकत से अपनी मांगें मना पाने में नाकामी।

- दहेज प्रथा, शादियों में आडंबर और फिजूलखर्ची।

- संयुक्त परिवार प्रथा से दूर होना। युवा पीढ़ी द्वारा पारंपरिकता को तिलांजलि।

- बड़े-छोटे का भेदभाव और परस्पर सहायता की भावना में कमी।

अग्रणी अग्रवाल

- अग्रवाल भारत के समृद्धतम समुदायों में ही नहीं, विश्व के सफलतम उद्यमी समुदायों में से है। कर के भुगतान के साथ देश की अर्थव्यवस्था में हाथ बंटाने में यह समाज सबसे आगे है।

- उद्योग-व्यापार से लेकर प्रशासन, रणक्षेत्र से लेकर स्वाधीनता संग्राम और राजनीति व साहित्य से लेकर कला तक, जीवन के हर महत्वपूर्ण क्षेत्र में अग्रवालों ने अलग पहचान बनाई है। गोशालाएं व धर्मशालाएं बनवाने से लेकर देश को जब भी आर्थिक मदद की जरूरत पड़ी है 'भामाशाह' का काम किया है।

- देश के 46 प्रतिशत शेयर ब्रोकर अग्रवाल समाज के हैं। 35 फीसदी चार्टर्ड अकाउंटेंट, 21-21 फीसदी कॉस्ट अकाउंटेंट और कंपनी सेक्रेटरी इसी समुदाय से आते हैं।

- जिंदल स्टील, मित्तल आर्सेलर स्टील, भारती एयरटेल, जेट एयरवेज, वेदांता स्टरलाइट, जी ग्रुप, फ्लिपकार्ट, इंडियामार्ट, जोमैटो, स्नैपडील अग्रवालों की मिल्कियत वाली बड़ी कंपनियों में से हैं।

- देश की सबसे अधिक प्रसार संख्या वाले अखबारों की मिल्कियत अग्रवालों के हाथ में है।

- भारत सरकार ने महाराजा अग्रसेन और नई दिल्ली स्थित अग्रसेन की बावली पर डाक टिकट जारी किया है। 1995 में दक्षिण कोरिया से खरीदे एक तेल वाहक पोत का नाम 'महाराजा अग्रसेन' रखा गया। राष्ट्रीय राजमार्ग-10 का आधिकारिक नाम भी महाराजा अग्रसेन पर है।

- भगवान अग्रसेन द्वारा प्रतिपादित समानता और समाजवाद के विचारों को भारत के संविधान में भी दर्ज किया गया है।

जय अग्रसेन... जय अग्रोहा...

क्षत्रिय सूर्यवंशी महाराज अग्रसेन-जो वैश्य कुल के संस्थापक हैं-करीब 5191 वर्ष पहले द्वापर युग में पैदा प्रजा वत्सल, हिंसा विरोधी और बलि प्रथा को बंद करवाने वाले सम्राट थे। उन्होंने देश में समानता और समाजवाद की नींव रखी और परिश्रम व उद्योग से धनोपार्जन के साथ-साथ उसके समान वितरण और आय से कम खर्च करने पर बल दिया। वैश्य जाति को व्यवसाय का प्रतीक तराजू प्रदान करने के साथ उन्होंने आत्म-रक्षा के लिए शस्त्र-प्रयोग की सीख भी दी।

महाभारत युद्ध के पहले लगभग 51 वर्ष पूर्व स्थापित महाराज अग्रसेन के गणराज्य अग्रेय (अग्रोहा) में जब भी कोई सजातीय परिवार बाहर से बसने आता था, हर परिवार उसे एक स्वर्णमुद्रा और एक ईंट देकर कारोबार और घर बनाने में मदद करता था। आर्थिक विपदा का बोझ सभी मिलकर शेयर करते थे। 108 वर्ष के अपने शासनकाल में महाभारत के यु्द्ध में पांडव पक्ष में लड़े महाराज अग्रसेन की राजधानी 18 प्रांतों में बंटी हुई थी, जो आगे चलकर 18 गोत्रों-गर्ग, गोयन, गोयल, कंसल, बंस , सिंहल, मित्तल, जिंदल, बिंदल, नाग, कुच्छल, भंदल, धारण, तायल, तिंगल, ऐरण, मधुकल और, मंगल जैसे गोत्रनामों और जायसवाल, बरनवाल, साहू, केसरवानी, लोहिया, अजमेरा, धारवाल, जैसे उपनामों से मशहूर हुए। अग्रवंशों की गद्दी हिसार (हरियाणा) के पास स्थित अग्रोहा, प्रवर : पंचप्रवर और कुलदेवी महालक्ष्मी हैं।

सिकंदर के आक्रमण के कारण अग्रोहा का पतन हो गया और अधिकांश अग्रेयवीर वीरगति को प्राप्त हो गए। एक सिद्ध की भविष्यवाणी के अनुरूप यह वैभवशाली नगर निरंतर आक्रमणों और आग में जलकर जब नष्ट हो गया, तब यहां के लोग पहले राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश और वहां से बाकी भूभागों और विदेशों में जा बसे। अग्रोहा से संबद्ध होने को कारण वे 'अग्रवाल' कहलाए। आजीविका के लिए तलवार छोड़ उन्हें तराजू पकड़नी पड़ा।

(कोट)

अग्रवाल समाज को वोट बैंक न होने का खामियाजा भुगतना पड़ा। समाज नेताओं को अपनी राजनीतिक पहचान बनाने की ओर भी ध्यान देना चाहिए।

- सुरेशचंद्र अग्रवाल, अध्यक्ष, अग्रवाल सेवा समाज

नोटबंदी, जीएसटी और खासकर कपड़ा व्यापार जैसे मामलों में टैक्स की मार से प्रभावित होने वाले वर्गों में अग्रवाल समाज भी है। पर, अपनी कर्मशीलता से उसने अपने मनोबल और राष्ट्रनिर्माण की भावना पर असर नहीं पड़ने दिया है।

- महेश अग्रवाल, बिल्डर-समाजसेवी

अग्रवाल पहले देश को देने के बारे में सोचते हैं, फिर समाज को। पर, हमारे समाज को मांगलिक आयोजनों में फिजूलखर्ची पर काबू पाने, दहेज प्रथा दूर करने और साधनों के अपव्यय की बुराई पर काबू पाने के लिए प्रयास और बढ़ाने चाहिए।

- डॉ. श्याम अग्रवाल, नेत्र चिकित्सक

अग्रवाल समाज में शादी-विवाह अब विजातीय और दूसरे कुलों में भी होने लगे हैं। दानशीलता बढ़ी है। व्यवसाय से अलग दूसरे पेशों, खासकर नौकरियों की ओर रुझान बढ़ा है।

- राजेंद्र अग्रवाल, अध्यक्ष, अग्रोहा विकास ट्रस्ट

बेटा-बेटी में भेदभाव होना बंद हो गया है। घर की चौखट से निकलकर महिलाएं शिक्षा के साथ व्यवसाय-उद्योग और जीवन के हर क्षेत्र में धूम मचा रही हैं।

- सुमन अग्रवाल, राष्ट्रीय सचिव, अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन)

विमल मिश्र

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