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Saturday, February 15, 2025

वैश्य समाज के गौरव संत शिरोमणि नरहरी दास जी

 वैश्य समाज के गौरव संत शिरोमणि नरहरी दास  जी

वैश्य समाज के गौरव संत शिरोमणि नरहरी दास जीगोस्वामी तुलसी को संत नरहरी दास से मिली थी रामचरितमानस लिखने की प्रेरणा


प्रख्यात धर्म-ग्रंथ रामचरित मानस तमाम सनातनियों के हृदय में रचा-बसा है। यह दूर्भाग्य है कि संत तुलसी को पूजा जाता है लेकिन उनको यह ग्रंथ लिखने का गुरुमंत्र देने वाले संत नरहरि को भुला दिया गया। संत तुलसी दास का जन्म संवत 1554 (सन-1611) में हुआ था। इनका यज्ञोपवित संस्कार संवत-1561 में संत नरहरिदास ने किया था। इन्हीं के गुरुमंत्र से इन्होंने रामभक्ति के शिखर पर पहुँच कर कालजेयी रचना “रामचरितमानस” लिखा था। मराठी साहित्य में इन संत नरहरी पर बहुत कुछ लिखा गया है। इनका जन्म देवगिरी, जिला-औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में दीनानाथ के घर हुआ था। पिता पारम्परिक तौर पर स्वर्णाभूषण निर्माण का कार्य करते थे। इसी व्यवसाय से वे अमीर हो गये और पंढरपुर रहने चले गये। संत जी कट्टर शिवोपासक थे पंढरपुर में रहने के बावजुद भी यहां के प्रसिद्ध पान्डुरंग (विष्णु) मन्दिर में कभी दर्शन करने नहीं जाते थे। एक दिन एक साहुकार ने उन्हें भगवान पांडुरंग जी के लिए कमरधनी बनाने को कहा। समस्या यह थी कि वे पांडुरंग जी के दर्शन नहीं लेना चाहते थे इसलिए अपनी आंख पर पट्टी बान्ध कर गये और नाप लेने लगे। इस क्रम में उनका भगवान के पिंड के साथ स्पर्श हुआ। कुछ अज्ञात सा, अनुभव हुआ, और फिर अपनी आंख की पट्टी खोल दी। साक्षात भगवान पांडुरंग जी का दर्शन हुआ, और यह विश्वास हुआ कि शिव जी एवं पांडुरंग जी एक ही हैं। दोनों में कोई फर्क नहीं है। यहीं से वे पांडुरंग जी के भी भक्त हो गये। संत नरहरि की पत्नी का नाम- गंगा, बेटा का नाम- नारायण और बेटी का नाम-मालु है। संत ने मराठी भाषा में दो किताबें लिखी हैं- संवगडे निवृत्ती सोपान मुक्ताई तथा शिव आणी विष्णु एकचि प्रतिमा। इन्होंने कहा है---जो काम हमने लिया हुआ है उसे ठीक न बताने से पहले हम अपना सर्वस्व न्योछावर कर पूरा करें।

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