VAISHYA VARRIOR CHAKRAPALIT - चक्रपालित
यह वैश्य पर्णदत्त का पुत्र था। पर्णदत्त को हम जहां दत्त नामान्तक वैश्य उपाधि का प्रयोग करते हुये पाते हैं वहीं उसके पुत्र के नाम के अन्त में हम 'पालित' शब्द पाते हैं। पंतजलि के महाभाष्य से पता चलता है कि कुछ वैश्य अपने नाम के अन्त में 'पालित' उपाधि जोड़ते थे। 158 इससे प्रतीत होता है कि पिता-पुत्र दोनों वैश्यों की भिन्न-भिन्न उपाधियों का प्रयोग करते थे। गुप्त शासन व्यवस्था में क्योंकि प्रान्तपति को प्रान्तीय कर्मचारियों को नियुक्ति का पूर्ण अधिकार था। अतः पर्णदत्त ने अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुये अपने पुत्र चक्रपालित को सौराष्ट्रपुर गिरिनगर (आधुनिक गिरिनार) का प्रमुख अधिकारी नियुक्त किया। नगर प्रमुख की नियुक्ति की परम्परा हमारे देश में मौर्य काल से ही चली आ रही थी। नगर-प्रमुख को कौटिल्य ने 'नागरक' कहा है। इसकी पहचान अशोक कालीन कलिंग लेख के 'नगलक' से की जा सकती है। मनुस्मृति में नगर के प्रमुख अधिकारी को 'नगरसर्वार्थ चिन्तक' अर्थात पुर में होने वाली प्रत्येक घटना की देख-रेख करने वाला कहा गया है। 1.59 जूनागंढ़ अभिलेख के अनुसार उसके दो प्रधान कर्त्तव्य थे- (1) नगर की रक्षा 160 (2) दुष्टों का दमन । 161 इस पदाधिकारी से आशा की जाती थी कि उसका व्यवहार पुरवासियों के साथ सहानुभूति एवं आत्मीयता से परिपूर्ण हो। गिरिनगर का प्रधान अधिकारी चक्रपालित यहां के नागरिकों को पुत्र के समान मानता था तथा उनके दोषों को दूर करने की चेष्टा करता था। 162 इस अधिकारी से सार्वजनिक कार्यों की आशा की जाती थी। इस पद पर प्रायः बहुत सुयोग्य व्यक्तियों की नियुक्ति की जाती थी। जूनागढ़ लेख के अनुसार चक्रपालित सब प्रकार से श्रेष्ठ था तथा उसमें सम्पूर्ण वांछनीय गुण विद्यमान थे। वह क्षमा, प्रभुत्व, विनय, नय, शौर्य, दान तथा दाक्षिण्य आदि सद्गुणों का केन्द्र बिन्दु था। 16.3 अभिलेख में कहा गया है कि इस सम्पूर्ण विश्व में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है, जो कि गुणों के द्वारा उसकी तुलना में आ सके। वह गुणवान व्यक्तियों के लिये सम्पूर्ण रूप से उपमा का विषय हो गया था। चक्रपालित ने पुरवासियों के हित के लिये सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार कराया था। 164
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