VAISHYA CHIRAGDUTT - चिराग दत्त
पुराणों में तथा पारस्पकर गृहसूत्र में जहां हमें वैश्यों के लिये गुप्त नामान्त उपाधि जोड़ने का उल्लेख प्राप्त होता है, 155 वहीं गुप्तकाल में हम वैश्यों की 'दत्त' नामान्त उपाधि भी पाते हैं। पउमचरिउ में वैश्यों के नाम के अन्त में 'दत्त' नाम जोड़ने को मान्यता दी गई है। 156 गुप्तकालीन अभिलेखों में हम अनेक दत्त तामान्त व्यापारियों को नगर शासन की समिति में पाते हैं। 543 ई० के दामोदर पुर लेख में सार्थवाह स्थाणुदत्त का उल्लेख प्राप्त होता है, जो सार्थवाह था तथा नगर शासन की समिति में था। दामोदर पुर के लेखों में बालादित्य के काल में कोटिवर्ष के विषयपति की सहायता के लिये जो समिति थी उसमें प्रथम कुलिक के नाम के लिये वरदत्त एवं मतिदत्त का नाम प्राप्त होता है। इन साक्ष्यों से भी यही निष्कर्ष निकलता है कि वैश्य लोग दत्त नामान्त उपाधि का भी प्रयोग करते थे। इस ओर पहले ही संकेत किया जा चुका है कि गुप्त साम्राज्य प्रान्तों अथवा भुक्तियों में विभक्त था। बंगाल से प्राप्त कुमारगुप्त के लेखों में पुण्डवर्द्धनभुक्ति (उत्तरी बंगाल) का उल्लेख बहुधा मिलता है। 443 ई० से 447 ई० तक इस प्रान्त का राज्यपाल चिराग दत्त था। इसकी उपाधि उपरिक महाराज थी। (पुण्ड्रवर्द्धन-भुक्तातुपरिक चिरातदत्तस्य)। दामोदरपुर से दो अन्य अभिलेख भी प्राप्त हुये हैं उसमें भी दत्त नामधारी दो राज्यपाल ब्रह्मदत्त तथा जयदत्त का नाम प्राप्त होता है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि बंगाल में कोई दत्त नामान्त वैश्य परिवार था, जिसके सदस्य परम्परागत आधार पर उत्तरीबंगाल (पुण्डवर्द्धन) के राज्यपाल क्रमशः नियुक्त किये गये थे।
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