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Thursday, February 20, 2025

'मारवाड़ी वैश्यों के आंदोलन और संघर्ष

'मारवाड़ी वैश्यों के आंदोलन और संघर्ष का श्रेय वामपंथी और कांग्रेसी इतिहासकारों ने गांधी को दिया'

नोट - पोस्ट लंबी है लेकिन जरूरी है

महात्मा गांधी के चरित्र में चाहे उनके ब्रह्मचर्य के प्रयोग हों या नकली अहिंसा या मुस्लिम तुष्टिकरण किसी भी स्थिति में सभ्य समाज को स्वीकार्य हो ही नहीं सकता। उनका व्यक्तिगत जीवन और विशेषतौर पर उनका ये बयान हिन्दू महिलाओं के लिए की अगर मुस्लिम तुम्हारा बलात्कार कर रहे हैं तो इसमें गलत क्या है वो कुछ दे ही रहें है ले तो नहीं रहे... इस तरह की नीचता को कोई भी हिन्दू ही स्वीकार नहीं कर सकता फिर वैश्य समाज को तो छोड़ ही दीजिए कि हम स्वीकार करेंगे.... उनके मुस्लिम तुष्टिकरण का तो किसी तरह समर्थन हो ही नहीं सकता...

महात्मा गांधी को जिन चीजों का श्रेय देने की कोशिश आज के तथाकथित हिन्दू विचारक भी करते हैं ... मसलन गीता प्रेम, राम राज्य, नामक आंदोलन, दलित उद्धार, शाकाहार, असहयोग आंदोलन.. आदि वो उनसे पूर्व क्या हमारे मारवाड़ी वैश्यों ने नहीं किया था लेकिन एक ने भी मुस्लिम तुष्टिकरण नहीं किया बल्कि गांधी के जो अच्छे आंदोलन थे मारवाड़ी वैश्यों के वजह से ही सफल हुए -

तत्कालीन बंगाल सरकार के अधिकारी ए. एच. गज़नवी ने वायसराय के प्रतिनिधि कनिंघम को 27 अगस्त 1930 को पत्र लिखा –“ महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से मारवाड़ियों को अलग कर दिया जाये तो 90 फीसदी आंदोलन यूं ही खत्म हो जायेगा ” अंग्रेज सरकार ने बंगाल के मारवाडी व्यापारियों को आन्दोलन से अलग करने के लिए राजस्थान की रियासतों के शाषकों पर दबाव दिया लेकिन लगभग सभी रियासतों ने इसमें अपनी असमर्थता जता दी।

गांधी के असहयोग आंदोलन हो या नामक सत्याग्रह या दलित उद्धार सब मारवाड़ी अग्रवाल और माहेश्वरी वैश्यों की वजह से प्रतिष्ठित हुए। अग्रवाल नवरत्न जमनालाल बजाज जी ने नमक सत्याग्रह में सर्वप्रथम चुटकी भर नमक लाखों में खरीद कर नमक आंदोलन की फंडिंग करी... गांधी जी ने अग्रवाल नवरत्न लाला लाजपत राय के अछूतोद्धार आंदोलन और हिन्दू रिलीफ मूवमेंट से ही प्रेरणा लेकर हरिजन उद्धार का सोचा था और हरिजन सेवक संघ के सर्वप्रथम अध्यक्ष माहेश्वरी रत्न घनश्याम दास बिड़ला बने जिन्होंने इस कार्य को संभाला.....

क्या गीता जी के फैलाव का किसी भी तरह श्रेय गांधी को दिया जा सकता है? क्या लोग गांधी की वजह से गीता पढ़ते हैं? जिस गीता को पढ़कर अर्जुन ने युद्ध लड़ा उसी गीता से हमें वो कायरता सिखाते रहे। अग्रवाल नवरत्न हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ने तो गांधी की गीता को फटकारते हुए कहा -

"महात्मा गांधी के प्रति मेरी चिरकाल से श्रद्धा है पर इधर वे जो कुछ कर रहे हैं और गीता का हवाला देकर हिंसा-अहिंसा की मनमानी व्याख्या वे कर रहे हैं उससे हिंदुओं की निश्चित हानि हो रही है और गीता का भी दुरपयोग हो रहा है।"

गीता जी के प्रसार के श्रेय केवल और केवल गीताप्रेस को जाता है जिनकी गीता आज भी हर हिन्दू के घर-घर मे है।
अहिंसा या शाकाहार तो क्या ये गांधी का निजी विचार था? जातिभास्कर में पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र लिखते हैं कि वैश्य युगांतर से ही मांस भक्षण के विरोधी रहे हैं। महाराज अग्रसेन के पशुबलि के विरोध में वैश्य धर्म स्वीकारने की बात आज भारत का बच्चा जानता है। उन्हीं के गृह राज्य गुजरात मे पशुबलि बंद करवाने का श्रेय मोध वणिक कुल के आचार्य हेमचन्द्र को जाता है।


गांधी का राम राज्य और गौ प्रेम दिखावा था... राम प्रेम की बात करने वाला एकबार भी रामजन्मभूमि के दर्शन को नहीं गया और अपने किसी भी लेख में क्या रामचरित मानस का एक दोहा भी लिखा? उल्टा इसके अनुसार अगर मुसलमान गौमांस खाएं तो खाने दिया जाए जबकि सनातन धर्म मे गौभक्षक का वध करने का स्पष्ट आदेश है। ।
राम राज्य का क्रेडिट तो बाबरी विध्वंस अशोक सिंघल और गौहत्या रुकवाने का प्रयास करने का क्रेडिट तो लाला हरदेव सहाय और करपात्री जी के भामाशाह सेठ रामकृष्ण डालमिया सरीखे अग्रवालों को ही जायेगा.... और रामलला के लिये हुतात्मा कोठारी बंधु सरीखे मारवाड़ी बणियों को...
गौ, गीता, गंगा, गायत्री, गोविंद आदि पंच शक्तियों जिसपर सनातन टिका है उसके प्रचारक और संरक्षक वैश्यों को किसी गांधी नाम के ढोंगी की जरूरत नहीं है.. इनके लिए प्रयासरत लोगों को अग्रवालों ने अपने नवरत्नों में जगह दी है..

- प्रखर अग्रवाल

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