VAISHYA AMATYA LAVANPRASAD AND VEERDHAWAL
चालुक्य नरेश भीम द्वितीय (1178-1241 ई०) के लवण प्रसाद और वीरधवल मंत्री थे। ये वैश्य जाति के ऐसे मंत्री थे जो राज्य में बार-बार उठने वाले विद्रोहों को शान्त करने में सफल रहे। भीम द्वितीय को सत्ता का वास्तविक नियंत्रण इन्हीं दोनों मंत्रियों पिता-पुत्र लवण प्रसाद तथा वीर धवल के हाथों में था। गुजरात पर मुसलमानों के आक्रमण के समय भीम द्वितीय मालवा पर अपने अधिकार की रक्षा न कर सके। परमार शासक विन्ध्य वर्मा के पुत्र सुमटवर्मा (1194-1209 ई०) चे अण्हिलवाड पर आक्रमण किया लेकिन शक्तिशाली सामन्त लवणप्रसाद ने उसे पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। इसकी पुष्टि साहित्यिक तथा पुरातात्विक साक्ष्यों से भी होती है। 173अ देवगिरि के यादव शासक पंचम भिल्लम ने भी भीम की आन्तरिक कमजोरियों का लाभ उठाते हुये दक्षिण गुजरात और लाट क्षेत्रों पर चढ़ाई कर दी, उस समय भी भीम की ओर से लवण प्रसाद जैसे योग्य मंत्री तथा सेनापति ने गुप्तचरों के प्रयोग से उसे संधि के लिये विवश किया 174 कालान्तर में चालुक्य शासक भीम की निर्भरता इन पिता पुत्रों पर इतनी बढ़ गई कि प्रशासन और सैन्य की वास्तविक सत्ता धीरे-धीरे उनके हाथों में चली गई। महामण्डलेश्वर लवणप्रसाद की बढ़ती हुई शक्ति का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1231 ई० में सिंहण से जो संधि हुई, उसमें चालुक्य पक्ष की ओर से वास्तविक राजा भीम का नाम न होकर लवण प्रसाद का नाम अंकित किया गया है। 175 महामण्डलेश्वर लवण प्रसाद और राणक वीरधवल नाममात्र की चालुक्य अधिसत्ता स्वीकार करते हुये धवलक अथवा घोलक में प्रायः पूर्ण स्वतंत्र थे। भीम ने अनेक युद्धों में विजय का श्रेय लवण प्रसाद को ही दिया गया है। सम्भवतः जयन्तसिंह के विद्रोह को शान्त करके चालुक्य राज्याधिकार द्वितीय भीम के लिये पुनः प्राप्त करने में उन्होंने जो सहायता की थी उससे अभिभूत और विवश होकर भीम ने उन्हें प्रशासन में पूरी छूट दे दी थी।। 76 धीरे-धीरे उनका अधिकार 'राज्य के भीतर राज्य' जैसा हो गया और भीम की मृत्यु के बाद वीरधवल का पुत्र वीसलदेव अण्हिलवाड़ का पूर्ण स्वतंत्र शासक हो गया। 177 कतिपय अभिलेखों में लवणप्रसाद और वीरधवल को महाराजाधिराज की सम्प्रभुतासूचक उपाधियों से अलंकृत किया गया है। 178 वीरधवल के पुत्र वीसलदेव ने होयसल राजकुमारी का हाथ भी प्राप्त किया था। 179 अर्थात विवाह किया था।
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