MARICO MARIWALA GROUP
Marico Products Success Story; Parachute Coconut Oil | Saffola - Livon |
मेगा एंपायर-पैराशूट ऑयल बनाने वाली 9 हजार करोड़ की मैरिको: तेल-मसाला बेचकर खड़ा किया एंपायर, काली मिर्च के नाम पर रखा मारीवाला सरनेम
पैराशूट, सफोला, लिवोन और सेट वेट... ये सारे वह ब्रांड हैं, जिन्हें हम सब ने कभी न कभी जरूर इस्तेमाल किया होगा। इन सबको बनाने वाली कंपनी का नाम है- मैरिको। मैरिको फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स यानी FMCG सेक्टर की कंपनी है।
हाल ही में कंपनी ने वित्त वर्ष-2024 के मार्च तिमाही के नतीजे जारी किए। इसमें मैरिको का कंसोलिडेटेड नेट प्रॉफिट 4.9 प्रतिशत बढ़कर 320 करोड़ रुपए पर पहुंच गया।
बिजनेस के नफा-नुकसान से जुड़ी यह बातें टेक्निकल हैं। बहुत सारे लोगों के पल्ले नहीं पड़ी होंगी, लेकिन यह ख्याल तो आया ही होगा कि मैरिको कंपनी के फाउंडर कौन हैं? उन्होंने इसकी नींव कब रखी थी।
मैरिको कोकोनट ऑयल बनाने के साथ-साथ पर्सनल केयर और फूड प्रोडक्टस भी बनाती है।आज कोकोनट ऑयल में मैरिको का देश में लगभग 62% का मार्केट शेयर है।
आज मेगा एंपायर में 9,764 करोड़ रुपए रेवेन्यू वाली मैरिको की बात करते हैं-
मैरिको कंपनी के फांउडर है हर्ष मारीवाला। जब वह 38 साल के थे तब उन्हें कंपनी बनाने का आइडिया आया। इसके बाद 13 अक्टूबर 1988 में मैरिको कंपनी अस्तित्व में आई।
पूरी कहानी समझने के लिए इसकी स्थापना से 126 साल पीछे जाना होगा।
बात 1862 की है। गुजरात के कच्छ के रहने वाले कांजी मोरारजी तेल और मसालों का एक छोटा-सा बिजनेस शुरू करने मुंबई आते हैं। काम ठीक-ठाक चल पड़ता है, बिजनेस को विस्तार की जरूरत पड़ती है। इसलिए उन्होंने अपने भतीजे वल्लभदास को भी मसालों के बिजनेस में शामिल कर लिया।
मोरारजी और वल्लभदास ने सबसे पहले केरल में एंट्री ली। वह काली मिर्च, हल्दी, अदरक और सूखे नारियल इम्पोर्ट कर दिल्ली, अमृतसर और कोलकाता के बाजार में बेचने लगे।
चाचा-भतीजे की इस जोड़ी ने केरल के आलेप्पी में काली मिर्च की प्रोसेसिंग यूनिट शुरू की। इसके बाद से ही उन्हें ‘मारीवाला’ सरनेम रखने का आइडिया आया।
दरअसल गुजराती में काली मिर्च को ‘मारी’ कहा जाता है। वल्लभदास ने सोचा कि अगर बिजनेस को बढ़ाना है, गुजरात में कंपनी को पॉपुलर करना है तो इस शब्द को अपने नाम से जोड़ना सही होगा। इसके बाद उनके परिवार के सभी सदस्य मारीवाला सरनेम लगाने लगे।
बॉम्बे ऑयल इंडस्ट्री शुरू की
समय के साथ कंपनी और परिवार दोनों का विस्तार होता गया। 1948 में, हर्ष मारीवाला के पिता चरणदास और उनके तीन भाइयों ने बॉम्बे ऑयल इंडस्ट्रीज लिमिटेड की स्थापना की। कंपनी ने अगले 25 साल में मुंबई में तीन प्लांट्स शुरू किए। यहां मुख्य तौर पर नारियल का तेल और वेजिटेबल ऑयल बनता था।
बॉम्बे ऑयल इंडस्ट्री ने पैराशूट हेयर ऑयल बनाना शुरू किया, जो उस समय मार्केट में हिट रहा। 1975 आते-आते चरणदास ने सफोला रिफाइंड तेल जैसे कंपनी के उत्पादों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया।
अलग रास्ता चुनना चाहते थे हर्ष
मिडिल क्लास में पैदा हुए हर्ष मारीवाला का करियर फैमिली बिजनेस में ठीक-ठाक चल रहा था। इसके बावजूद उनके अंदर कुछ अलग करने की छटपटाहट थी। वह चाहते थे कि कोई ऐसा बिजनेस शुरू किया जाए, जो फैमिली बिजनेस से अलग हो। इस वजह से वह अपना रास्ता खुद बनाने के लिए निकल पड़े।
13 अक्टूबर 1988 को हर्ष मारीवाला ने मैरिको फूड्स लिमिटेड नाम से कंपनी की शुरुआत की। 31 अक्टूबर को कंपनी का नाम बदलकर मैरिको इंडस्ट्रीज लिमिटेड कर दिया गया।
ब्रांडेड नारियल तेल में उनके शुरुआती उद्यम को पहले से स्थापित कंपनियों से कड़ी टक्कर मिली, लेकिन हर्ष मारीवाला ने हार नहीं मानी।
मैरिको की मार्केटिंग स्ट्रैटजी काम कर गई
2 अप्रैल 1990 को बॉम्बे ऑयल लिमिटेड ने अखबार में एक विज्ञापन छपवाया। इसमें लिखा था- बॉम्बे ऑयल कंपनी ने 200 कर्मचारियों को निकाला। इस विज्ञापन को मास्टरस्ट्रोक की तरह देखा गया। दरअसल, कंपनी ने अपने 200 कर्मचारियों को बॉम्बे ऑयल से निकालकर मैरिको कंपनी में नौकरी दी थी।
इस विज्ञापन की वजह से बहुत से लोगों का ध्यान ‘मैरिको’ नाम पर पड़ा। दूसरा लोगों के बीच यह कॉन्सेप्ट क्लियर हो गया कि बॉम्बे ऑयल लिमिटेड के लोगों ने ही मैरिको कंपनी शुरू की है। इसके साथ मैरिको ने पैराशूट और सफोला जैसे प्रोडक्टस को बॉम्बे ऑयल इंडस्ट्रीज लिमिटेड से अलग कर खुद में शामिल कर लिया।
कंपनी ने इसके साथ दो ऐड और लॉन्च किए। एक में पैराशूट ऑयल को कोकोनट ऑयल का पर्याय बताया गया। दूसरे ऐड में सफोला के बदले दूसरे तेल को कोलेस्ट्रॉल की वजह से हो रही मौत का कारण बताया गया।
प्लास्टिक के डिब्बे में तेल बेचना शुरू किया
वल्लभ दास के पोते हर्ष मारीवाला ने जब बिजनेस में कदम रखा तब नारियल तेल टिन के डिब्बे में बिकता था। हर्ष को यह देखकर महसूस हुआ कि अगर नारियल का तेल प्लास्टिक के डिब्बे में बेचा जाएगा तो इससे कंपनी और कस्टमर दोनों को फायदा होगा। दरअसल प्लास्टिक टिन से सस्ता था और इसे घर पर रखना भी अधिक सुविधाजनक था। हालांकि इस काम में कंपनी को बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ी।
कंपनी ने नारियल तेल बनाने वाली कंपनियों पर रिसर्च शुरू किया। उन्हें पता चला कि 10 साल पहले भी एक कंपनी नारियल तेल को प्लास्टिक के डिब्बे में लेकर आई थी, लेकिन वह सफल नहीं हो पाई। दरअसल प्लास्टिक के डिब्बे को चूहे कुतर जाते थे, इस वजह से उन्हें नुकसान हो रहा था।
यह सारी बातें मैरिको कंपनी ने याद रखीं। उन्होंने पैराशूट नारियल तेल का प्लास्टिक का डिब्बा गोल आकार का कर दिया। आकार बदलने की वजह से चूहे कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाए। इस तरह की तरकीब से पैकेजिंग का खर्च आधा हो गया। बचाए गए पैसों को कंपनी ने विज्ञापन में लगाया।
पैराशूट को टिन के डिब्बे से प्लास्टिक के डिब्बे में शिफ्ट होने में लगभग 10 साल लग गए। इस दौरान कंपनी ने कई तरह के एक्सपेरिमेंट जारी रखे।
पैराशूट नाम के पीछे की कहानी
पैराशूट के नाम के पीछे की कहानी दूसरे वर्ल्ड वॉर से जुड़ी हुई है। हर्ष मारीवाला ने एक इंटरव्यू में बताया था कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान सेना के जवानों ने पैराशूट का इस्तेमाल किया था। भारतीयों ने पहली बार बड़े स्तर पर पैराशूट देखे थे। उन्हें एहसास हुआ कि यह सुरक्षा और विश्वसनीयता की चीज है। यहीं से कंपनी ने ‘पैराशूट’ को ब्रांड नाम बनाने का फैसला किया।
मारीवाला ने उस इंटरव्यू में यह भी कहा था कि मेरे अंकल और बहुत सारे दोस्तों ने कहा था कि ब्रांड का नाम बदल दो, लेकिन पता नहीं क्यों मैंने ब्रांड का नाम जारी रखने का फैसला किया और मुझे लगता है कि निर्णय सही था।
मैरिको और हिंदुस्तान यूनिलीवर की टक्कर
90 के दशक तक मैरिको ने बाजार में अपनी पकड़ बना ली थी। इसी समय हिंदुस्तान यूनिलीवर नाम की कंपनी भी अपना विस्तार कर रही थी। एचयूएल ने टाटा के प्रोडक्ट निहार को खरीदकर नारियल तेल बाजार में एंट्री की। इसके बाद कंपनी की नजर पैराशूट पर थी। एचयूएल के तत्कालीन चेयरमैन केकी दादिसेठ ने पैराशूट खरीदने के लिए हर्ष से संपर्क किया।
एक शाम हर्ष को टेलीफोन आया। सामने से आवाज आई 'मैं केकी दादिसेठ बोल रहा हूं।' केकी ने पैराशूट ऑयल खरीदने का प्रस्ताव रखा।
जवाब में हर्ष ने कहा 'आप जानते हैं कि हम नारियल तेल बाजार में हैं। हम इसके बारे में बहुत गंभीर है। इसलिए हम आपको अपनी कंपनी बेचने का अवसर देते हैं।'
केकी ने जवाब दिया 'मैरिको इतिहास बन जाएगा'
इसके बाद मैरिको ने अपनी मार्केटिंग और तेज कर दी। पैराशूट का मार्केट शेयर बढ़ता गया। नतीजा यह हुआ कि एचयूअल ने 2006 में 'निहार कोकोनट ऑयल' मैरिको को बेच दिया। इस तरह मैरिको ने इस बैटल को जीत लिया।
आज मैरिको 25 से भी ज्यादा देशों में उपलब्ध है। कंपनी का दावा है कि हर तीन में से एक व्यक्ति ने कभी न कभी मैरिको का प्रोडक्ट जरूर इस्तेमाल किया है। कंपनी का 25% रेवेन्यू विदेशों से आता है। आज भारत में इस कंपनी की 7 से ज्यादा फैक्ट्रीज हैं।
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