Pages

Sunday, May 5, 2024

ORIGIN & HISTORY OF TELI SAHU VAISHYA

ORIGIN & HISTORY OF #TELI SAHU VAISHYA 


महाभारत में तुलाधर नामक वैश्य तत्वादर्शी का उल्लेख लिता है जो तेल व्यवसायी थे किन्तु इन्हें तेली न कहकर वैश्य  कहा गया, अर्थात तब तक (ईसा पूर्व 3 री - 4 थी सदी) तेली जाति नहीं बनी थी इन्हें केवल वैश्य ही कहा जाता था. वाल्मिकी के रमकथा में भी तेली जाति का कोई उल्लेख नहीं है तथा अन्य वैदिक साहित्यों में भी तेल पेरने वाली तेली जाति का प्रय्तक्ष प्रसंग हीं मिलता है । पद्म पुराण के उत्तरखण्ड में विष्णु गुप्त नामक वैश्य  तेल व्यपारी की विद्धता का उल्लेख है ।

आर्य सभ्यता के चतुर्वर्णीय व्यवस्था में ब्राम्हण, और क्षत्रिय के बीच श्रेष्ठता के लिये स्पर्धा थी । वैश्य के उपर कृषि, पशुपालन एवं व्यपार अर्थात उत्पाद का वितरण का दायित्व था, इन पर यज्ञ एवं दान की अनिवार्यता भी दी गई । जिससे समाज मैं अशांति थी। तब भगवान महावीर आर्य, जो क्षत्रिय थे, जिन्होंने यज्ञों में होने वाले असंख्य पशुयों की हत्या का विरोध किया, साथ ही जबरदस्ती दान की व्यवस्था का विरोध कर अपरिगृह ि सिद्धांत प्रतिपादित किया । इसके बाद शक्य मुनि गौतम बुद्ध हुये, जिन्होंने भगवान महावीरके सिद्धांतो को आगे बढाते हुए, वर्णगत/जातिगत/लिंगगत भेदभाव का विरोध किया । गौतम बुद्ध भी क्षत्रिय थे और उन्हे, क्षकत्रय, वैश्य एवं शुद्र वर्ण का सहज समर्थन मिला । इसी दौरान सिंधु क्षेत्र में ग्रिक आक्रमण हुआ और अतं में चंद्रगुप्त मौर्य मगध के शासक बने। इनके वंशज आशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया , जिसमें एक लाख मनुष्य मारे गये तथा डेढ लाख मनुष्य घायल हुए । युद्ध के विभत्स दृश्य को देखकर सम्राट अशोक का ह्रदय परिवर्तन हुआ और वे बुद्ध धर्म के अनुयायी हो गये थे । महावीर एवं गौतम बुध के कारण प्रचलित चतुर्वर्णीय व्यवस्था की श्रेणी बद्धता में परिवर्तन हुआ । नवीन व्यवस्था में ब्राह्मण के स्थान पर क्षत्रिय श्रैष्ठतम हो गये और ब्राम्हण, वैश्य एवं शुद्र समान स्थरपर आ गये । फलस्वरूप वर्ण मे परिवर्तन तीव्र हो गया । ईसा के 175 वर्ष पूर्व मग के अंतिम सम्राट मौर्य राजा वृहदरथ को मारकर, उसी के सेनापति पुष्यमित्र शुंग राजा बने जो ब्राह्मण थै । माना जाता है पुष्पमित्र शुंग के काल में ही किसी पंउीत ने मनुस्मृति की रचना की थी । शुंग वंश का 150 वर्षै में ही पतन हो जाने से मनुस्मृति का प्रभाव मगध तक ही रहा ।

ईसा के प्रथम सदी के प्राप्त शिला लेखों में तेलि वैश्यों के श्रेणियों / संघों (गिल्ड्स) का उल्लेख मिलता है । ईसा पश्चात महान गुप्त वंश का उदय हुआ। जिसने लगभग 500 वर्ष तक संपुर्ण भारत को अधिपत्य में रखा । इतिहास कारों ने गुप्त वंश को वैश्य वर्ण का माना है । राजा समुद्रगुप्त एवं हर्षवर्धन के काल को साहित्य एवं कला के विकास के लिए स्वर्णिम युग कहा जाता है , गुप्त काल में पुराणों एवं स्मृतियों रचना हुई । गुप्त वंश के राजा बालादित्य गुप्त के काल में नालंदस विश्वविद्यालय के प्रवेश वार पर भव्य स्तूप का निर्माण हुआ, चीनी यात्री व्हेनसांग ने स्तूप के निर्माता बालादित्य को तेलाधक वैश्य  वंश का बताया है । इतिहासकार ओमेली एवं जेम्स ने गुप्त वंश को तेली वैश्य होने का संकेत किया है । इसी के आधार पर उत्तर भारत का तेली समाज गुप्त वंश मानते हुये अपने ध्ज में गुप्तों के राज चिन्ह गरूढ को स्थापित कर लिया । गुप्त काल में सनातन, बौद्ध एवं जैन धर्मालोंबियो समान दर्जा प्राप्त था । इसी काल में 05 वी सदी में अहिंसा पर अधिक जोर देते हुए, हल चलान तथा तेल पेरने को हिंसक कार्यवाही माना जाने लगा, गुजरात - महाराष्ट्र-राजस्थान का क्षेत्र जहां सर्वाधिक तेल उत्पादन होता था, घांची वैश्य  के नामसे जाना जाता था । जैन मुनियों के चतुर्मास काल में घानी उद्योग को बंद रखने का दबाव बनाय गया फलस्वरूप तेलियों एवं शासकों के मध्य संघर्ष हुआ । जिन तेलियों ने घानी उद्योग को बचाने शस्त्र उछाया वे घांची क्षत्रिय कहलाये गये । ये लोग राजस्थान में है. जिन्होंने केवल तेल व्यवसाय किया वे तेली वैश्य, तथा जिन्होंने सुगंधित तल का व्यापार किया वे मोढ बनिया कहलाये । राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और नरेन्द्र मोदी के पूर्वज मोढ बनिया थे । जिन्होंने हल चलाकर तिलहन उत्पादन किया । तेली जाती की उत्पत्ति का वर्णन विष्णुधर्म सूत्र, वैखानस स्मार्तसूत्र, शंख एवं सुमंतू मै है ।

No comments:

Post a Comment

हमारा वैश्य समाज के पाठक और टिप्पणीकार के रुप में आपका स्वागत है! आपके सुझावों से हमें प्रोत्साहन मिलता है कृपया ध्यान रखें: अपनी राय देते समय किसी प्रकार के अभद्र शब्द, भाषा का प्रयॊग न करें।