#PANSARI VAISHYA
प्राचीनकाल से ही भारत की दुनियाभर में शोहरत मसालों की वजह से रही। मिस्र,अरब, ग्रीस और रोमन साम्राज्यों में भारतीय मसालों की धूम थी। मूलतः वृहत्तर भारत में जो जड़ीबूटियां और वनौषधियां है
उन सबको विदेशी लोग मसालों में ही गिनते थे। इन्ही की वजह से पश्चिमी दुनिया के साथ भारत का व्यापार व्यवसाय खूब फलाफूला था। आज के पंसारी और मुंबई महानगरी के पनवेल उपनगर के नामकरण के पीछे ये तमाम कारण है। जानते हैं कैसे।
प्राचीनकाल में व्यापार व्यवसाय के लिए पण् शब्द का चलन था। पण् का मतलब था। लेन-देन, क्रय-विक्रय, मोल लेना, सौदा करना, आदि । शर्त लगाना जैसे भाव भी इसमें शामिल थे। इसी से बना एक अन्य शब्द पणः जिसका मतलब हुआ पांसों दांव लगाकर या शर्त लगाकर जुआ खेलना। चूंकि व्यापार व्यवसाय में शर्त, संविदा अथवा वादा बहुत आम बात है इसलिए इस शब्द में ये तमाम अर्थ भी शामिल हो गए। पण् से ही पणः नाम की एक मुद्रा भी चली जो अस्सी कौड़ियों के मूल्य का सिक्का था। इसी वजह से धनदौलत या संपत्ति के अर्थ में भी यह शब्द चल पड़ा। मकान, मंडी, दुकान या पेठ जैसे अर्थ भी इसमें शामिल हो गए। पण्य शब्द का एक अर्थ वस्तु, सौदा या शर्त के बदले दी जाने वाली वस्तु भी हुआ। इससे बना पण्य जिसका मतलब हुआ बिकाऊ या बेचने योग्य।
व्यापार व्यवसाय के स्थान के लिए इससे ही बना एक अन्य शब्द पण्यशाला अर्थात् जहां व्यापार किया जाए। जाहिर है यह स्थान दुकान का पर्याय ही हुआ। कालांतर में पण्यशाला बनी पण्यसार। इसका स्वामी कहलाया पण्यसारिन्। हिन्दी में इसका रूप बना पंसारी या पंसार। मूलतः चूंकि प्राचीनकाल से ही इन स्थानों पर , जड़ी-बूटियां आदिबेचे जाते रहे इसलिए पंसारी की दुकान को उस अर्थ में भी लिया जाता था जिस अर्थ में आज कैमिस्ट और ड्रगिस्ट को लिया जाता है।
पंसारी से ही बना पंसारहट्टा अर्थात् जहां ओषधियों मसालों का व्यापार होता है। गौरतलब है कि किसी जमाने में भारत के मुख्य कारोबार से संबंध रखने वाला यह शब्द पंसारी आज गली मुहल्ले के एक छोटे से दुकानदार या परचूनवाले से ज्यादा महत्व नहीं रखता है।
पनवेल - मुंबई के उपनगर पनवेल के पीछे भी यही पण्य छुपा है । पण्य अर्थात् बिक्री योग्य और वेल् का अर्थ हुआ किनारा यानी बेचने योग्य किनारा। जाहिर सी बात है यहां बंदरगाह से मतलब है । पश्चिमीतट के एक कस्बे का किनारा अगर व्यापार के काबिल है तो उसे पण्यवेला नाम दिया जा सकता है । यही घिसते घिसते अब पनवेल हो गया है।
अब बनिया की बात । उत्तर वैदिककाल के उल्लेखों में पण, पण्य, पणि जैसे शब्द आए हैं। पण या पण्य का अर्थ हुआ वस्तु, सामग्री, सम्पत्ति। बाद में पण का प्रयोग मुद्रा के रूप में भी हुआ । पणि से तात्पर्य व्यापारी समाज के लिए भी था। पणि उस दौर के महान व्यापारिक बुद्धिवाले लोग थे। पणियों की रिश्तेदारी आज के बनिया शब्द से है। पणि (फिनीशियन) आर्यावर्त में व्यापार करते थे। उनके बड़े-बड़े पोत चलते थे। वे ब्याजभोजी थे। आज का 'बनिया' शब्द वणिक का अपभ्रंश ज़रूर है मगर इसके जन्मसूत्र पणि में ही छुपे हुए हैं। दास बनाने वाले ब्याजभोजियों के प्रति आर्यों की घृणा स्वाभाविक थी। आर्य कृषि करते थे, और पणियों का प्रधान व्यवसाय व्यापार और लेन-देन था। पणिक या फणिक शब्द से ही वणिक भी जन्मा है । आर्यों ने पणियों का उल्लेख अलग अलग संदर्भों में किया है मगर हर बार उनके व्यापार पटु होने का संकेत ज़रूर मिलता है । हिन्दी में व्यापार के लिए वाणिज्य शब्द भी प्रचलित है । वाणिज्य की व्युत्पत्ति भी पण् से ही मानी जाती है। यह बना है वणिज् से जिसका अर्थ है सौदागर, व्यापारी अथवा तुलाराशि। गौरतलब है कि व्यापारी हर काम तौल कर ही करता है। वणिज शब्द की व्युत्पत्ति आप्टे कोश के मुताबिक पण+इजी से हुई है । इससे ही बना है “वाणिज्य” और “वणिक” जो कारोबारी, व्यापारी अथवा वैश्य समुदाय के लिए खूब इस्तेमाल होता है ।
पणिक की वणिक से साम्यता पर गौर करें। बोलचाल की हिन्दी में वणिक के लिए बनिया शब्द कहीं ज्यादा लोकप्रिय है जो वणिक का ही अपभ्रंश है इसका क्रम कुछ यूं रहा- वणिक > बणिक > बनिअ > बनिया ।
वियोगी हरि संपादित हमारी परंपरा पुस्तक में शौरिराजन द्रविड़ इतिहास के संदर्भ में पणिज समुदाय की दक्षिण भारत मे उपस्थिति का उल्लेख करते हैं और इस संबंध में क्रय-विक्रय, व्यापारिक वस्तु और एक मुद्रा के लिए पणि , पणम , फणम जैसे शब्दों का हवाला भी देते हैं। तमिल में बिक्री की वस्तु को पण्णियम् कहा जाता है। तमिल, मलयालम और मराठी में प्राचीनकाल में वैश्यों को वाणिकर, वणिकर या वाणि कहा जाता था। पणिकर भी इसी क्रम में आता है। इस उपनाम के लोग मराठी, तमिल और मलयालम भाषी भी होते हैं। पणिकर को पणिक्कर भी लिखा जाता है।
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