#AGRAWAL COMMUNITY RELATION TO NAGAS - नागों से अग्रवालों का संबंध
अपने स्वसुर नागराज महीधर को प्रणाम करते महाराजा अग्रसेन
अग्रभागवत में प्रसंग है -
महाराज अग्रसेन की अर्धांगिनी माधवी नागराज महीधर की पुत्री थीं। उनके विवाह के पूर्व जब अग्रसेन जी नागलोक गए थे और उन्होंने नागराज महीधर से राजकुमारी माधवी का हाथ मांगा। नागराज महीधर नाग होने के कारण वैष्णवों से काफी बैर रखते थे। नागराज महीधर ने अग्रसेन कहा - "हे अग्रसेन ! आप वैष्णव हैं और हम नाग हैं.. हमारा आपका मेल कैसे हो सकता है। क्योंकि आप विष्णु के उपासक हैं और विष्णु के वाहन गरुड़ से हमारा बैर है।"
अग्रसेन उवाच
हरस्याभूषणं #शेषं धरापर्वतधरिणम् |
नारायणः स्वासनं तं कुरुते श्रीकरं सुखं || (श्रीअग्रभागवत अध्याय 15 श्लोक 54)
"हे नागराज ! पर्वतों सहित धरा मंडल को धारण करने वाले नागेश्वर शेषनाग के भ्राता वासुकि, एक ओर भगवान शिवशंकर के आभूषण स्वरूप हैं, उसी प्रकार वही शेषनाग भगवान विष्णु के छत्र सहित आसान भी हैं, जिन पर श्री लक्ष्मी सहित नारायण सुख पूर्वक विराजमान हैं।"
यही शेष नाग राम के साथ लक्ष्मण और कृष्ण के साथ बलराम हो जाते हैं।
आप तो दोनों संस्कृतियों के सम्मलित स्वरूप के प्रतीक हो है नागेंद्र! अतः कृपया अपनी भेद दृष्टि का परित्याग कीजिये। तब उन्हें अपना महत्व समझ आया और उन्होंने प्रसन्नता पूर्वक अपनी पुत्री माधवी का विवाह महाराज अग्रसेन से कर दिया और उन्होंने उसी समय दोनों संस्कृति के मिलन स्वरूप अपने उत्तम तल का नाम महाराज अग्रसेन के नाम पर "अग्रतल" रख दिया जिसे वर्तमान में 'अगरतला' के नाम से जानते हैं तो त्रिपुरा राज्य की राजधानी है।
जनश्रुति है कि नाग अग्रवालों को नहीं काटते... हमारे घर मे कभी नाग निकल आये तो उनकी हत्या नहीं होती.... अग्रवालों की बारे में कहावत भी प्रचलित - "नागों में नाग काला, बनियों में अग्रवाला"
शेष शायी नारायण की जय
कुलदेवी महालक्ष्मी की जय
नागराज अनंत शेष की जय
सर्पराज वासुकी की जय
SABHAR : PRAKHAR AGRAWAL
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