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Friday, March 15, 2024

SURSAINI VAISHYA

#SURSAINI VAISHYA शूरसैन वैश्य

शुरसैन  वैश्य मूलतः शूरसेन प्रदेश (मधुरा क्षेत्र) के निवासी हैं, जिसके नाम पर वैश्यों की यह उपजाति शूरसेन कहलाई।

शूरसेन व्यक्ति और जनपद-कई वैश्य उपजातियों ने यह स्वीकार कर लिया है कि राजा बल्लभ ने यह स्वीकार कर लिया है कि राजा बल्लभ के दो पुत्र अग्रसेन तथा शूरसेन थे।  वे अग्रसेन को राज्य सौंपक ब्रह्मसर पर तपस्या करने चले गये। महाजन अग्रसेन के भाई शूरसेन जब मधुरा आये तब मथुरा के पास राजा उरु राज्य करते थे। उन्होंने शूरसेन को अपना मंत्री बनाया। शूरसेन ने राज्य को उन्नत किया और बाद में वंहा के राजा बने और उस देश का नाम शौरसेन रखा.  शूरसेन गण का उत्लेस पुराणों में भी पाया जाता है। (अग्रवाल वाले अध्या में वर्णित पुस्तक उरु चरित्र के आधार पर)।

शूरसेन  जनपद से स्थानान्तरण-

धर्मान्ध मुस्लिम शासकों को विशेषकर औरंगजेब के शासनकाल में हिन्दुओं पर अत्याचार किये गये, मन्दिर तोडे  गये तथा हिन्दुओं पर जजिया कर' लगाया जाता रहा। लोगों को बलपूर्वक मुसलमान मनाया जाता रहा। मुगल बादशाह औरंगजेब ने वृन्दावन व मधुरा आदि के सैकड़ों मन्दिर तुड़वाये। वह चित्रकूट क्षेत्र में कदम रक्षने के पूर्व ही भयानक मुसीबतों में पांस गया। सेना मरने लगी, वजीर, बेगमाते, राजपरिवार के व्यक्ति तथा यास दासी आदि असाध्य रोग से पीड़ित हो गये। अन्ततः बेबसी में बादशाह को अपनी बुरी नीयत का परित्याग करना पड़ा और उसने श्री कामता नाथ जी व श्री मारुति नन्दन जी महाराज के मन्दिर को श्रद्धा भाव से अपने आप को समर्पित कर दिया। बड़ी श्रमा माँगी और उनको मान्यता देते हुये सीतापुर में मन्दाकिनी के बायें तट पर श्री बाला जी सरकार का विशाल मन्दिर बनवाया व मूर्ति की स्थापना आदि करवायी। मन्दिर में सात गाँवों की माफी लगाई गयी तथा भोग बत्ती आदि की स्थापना की गई, इनसे सम्बन्धित ताम्रपत्र लिखा गया जो आज भी मन्दिर में मौजूद है। परकोटे के अन्दर निर्मित सुदृढ मन्दिर से सिद्ध कर रहा है कि चित्रकूट क्षेत्र में मुसलमान अत्याचार का दुस्साहस नहीं कर सकते थे। इसकी पुष्टि मन्दिर में रखे हुये ताम्रपत्र व अभिलेसों से होती है।  सो मथुरा जनपद के आस-पास के क्षेत्रों में उत्पीड़ित होने पर इस समाज के परिवार चित्रकूट क्षेत्र में आ गये।

कवि खानसाना ने यह दोहा ठीक ही बनाया थाः

'चित्रकूट में रम रहे रहिमन अवघ्र नरेश।
जा पर विपदा पड़त है, सो आवत यहि देश।।"

कुछ लोग अलीगढ़, आगरा मथुरा आदि के अंचलों में जाकर उनमें पुलमिल गये। कुछ शूरसेन वैश्य बारहसेनी हो

 शिरोमणि सभा शूरसेन वैश्य समाज क रामौतार गुप्त, पोस्ट-पीटका कलाँ, जिला बाँधा। तहान बद्री प्रसाद गुप्त, पोस्ट-अमलोर, जिला बाँया। इस संस्था ने सारी जाति की जनगणना कराई है। पत्रिका शूरसेन वैश्य समाजः । प्रकाशन स्थान-मन्बर १४, राम घाट, सीतापुर, वित्रकूट।


१३) शूरसेन वैश्यों की संख्या तथा निवास स्थल उनके संगठन द्वारा वर्ष १९८१-८२ में करायी जनगणना के अनुसार इन के कुल ५५१ परिवार व जनसंख्या ३३८५ थी। इनमें लगभग ७७ प्रतिशत जिला बांदा, फतेहपुर (के ४ ग्राम), तथा जिला जबलपुर (के ४ ग्राम) व देहाती क्षेत्रों में निवास करते हैं। ८५ प्रतिशत कस्बों में तथा १५ प्रतिशत शहरी क्षेत्रों में रहते हैं। शूरसेन वैश्य केवल दो प्रदेश उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश में रहते हैं।

उत्तर प्रदेश में बुन्देलखण्ड को पिछड़ा वर्ग माना जाता है और उसमें जिला बाँदा मुख्य है। क्योंकि शूरसेन वैश्यों का प्रमुख निवास स्थल बाँदा जनपद का देहाती क्षेत्र ही रहा, इसमें वैश्य जाति का यह उपवर्ग हीनता के जाल में दीर्घकाल से फंसा रहा।

शूरसेन बन्धु अ० भा० बारहसेमी वैश्य महासमा के स्वर्ण जयन्ती उत्सव पर अलीगढ़ आये और मिलन का प्रस्ताव रखा जिसे महासभा ने ४ अक्टूबर ८७ में स्वीकार किया। शूरसेन महासभा ने २७ जून ८९ को इसकी पुष्टि की और चित्रकूट में १४ अक्टू‌बर १९८९ को दोनों वर्गों का भरत मिलाप हुआ। वहाँ कविता पढ़ी गई- जब तक शस्य श्यामला सुजला सुफला भारत माता। शूरसेन-बारहसेनी का, अमर रहे यह नाता ।।

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