#HARIDWARI VAISHYA SAMAJ
हरिद्वारी वैश्य समाज
उत्तर प्रदेश में हरिद्वार से गंगा की घाटी के मध्य हिमालय की तलहटी से चलकर अवध प्रान्त तक महाराजा हरी सेन ने अपना साम्राज्य बनाया जिसके अनेकों छोटे-छोटे तालुकेदार परिवार आज भी हरदोई के पिहानी, लखीमपुर के मैगलगंज तथा सीतापुर के क्षेत्र में अपने भग्न तालुकों के रूप में देले जा सकते हैं। यही हरिद्वारी वैश्य हैं। वैश्य वर्ण में प्रमुख मूल वैश्यों में हरिद्वारी वैश्य वर्ग भी है। संक्षेप में यह समाज आगरा, अवध के मध्य फैले विशाल क्षेत्र में लगभग ३० जनपदों में निवास करता है। इसके अधिकांश परिवार हरदोई, सीतापुर, लखीमपुर, शाहजहाँपुर, पीलीभीत, लखनऊ, कानपुर जनपदों में बसे हुये हैं। यह समाज महाराजा हरी सैन के तालुकेदारों का समाज है यही हरिद्वारी वैश्य समाज है।
इस समाज का फैलाव इलाहाबाद, हरिद्वार मेरठ, गाजियाबाद, गोरखपुर, बदायूँ, प्रतापगढ़, रायबरेली जनपदों में भी हैं। इस समाज के लगभग 2 लाख से ऊपर परिवार इन जनपदों में बसे हैं। इस समाज की एक अच्छी संख्या बम्बई, राजस्थान, खड़गपुर, मद्रास, देहली, हरियाणा, सिक्किम एवं गुजरात में भी जा बसी है। विदेशों में इंगलैण्ड एवं अमेरिका तथा कनाडा में प्रभूति विदेशों में भी लगभग 500 परिवार है।
हरिद्वारी वैश्य समाज अपने अपभ्रंश रूप में हरदीये, हरदीये लेर, हरदोड्या आदि नामों से लम्बी अवधि तक जाना जाता रहा है। किन्तु लगभग १५० वर्ष पूर्व समाज के सचेष्ठ महानुभावों ने सभी वर्गों के लोगों को एकत्र कर हरिद्वारी वैश्य के नाम से इस समाज को स्थापित किया।
अतः १९२४ में समान की अखिल भारतीय हरिद्वारी वैश्य सभा की स्थापना की गई जिसके प्रथम संस्थापक अध्यक्ष श्री चुन्नी लाल गुप्त शाहाबाद एवं श्री जानकी प्रसाद गुप्त, मूडा कला, सीतापुर महामंत्री ने अखिल भारतीय वैशम सभा, मेरठ से सम्पर्क कर हरिद्वारी वैश्य समाज को विशेष रूप से वैश्य हितकारी पत्रिका एवं वैश्य वर्ण में सम्मान जनक कप से वैश्य वर्णों में मूल उपवर्ग के रूप में स्थान दिलाया। इस समाज में १९२४ से १९५० तक लगातार एक ही कार्यकारिणी के अन्तर्गत कार्य कर समाज को संगठित किया और आदर्श कम प्रदान किया जो कि अभूतपूर्व बात है। १९५४ में श्री राम विलास खजांची सीतापुर को राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया और संस्थापक अध्यक्ष की मृत्यु से रिक्त स्थान की पूर्ति कर संगठन को पुनः सक्रिय किया और एक वैश्य हितैषी नाम की पत्रिका एवं स्मारिका का प्रकाशन प्रारम्भ कर समाज की गति प्रदान की। यह प्रकाशन अब भी चलते रहते हैं। १९८७ में पुनः श्री हरि शंकर गुप्त को राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं श्री श्रीराम गुप्त को मंत्री बनाकर संगठन बनामा और चलाया गया, १९९४ से श्री सुरेश गुप्त को राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं श्री राम औतार गुप्त, महामंत्री बनाकर संगठन कार्य चलाया जा रहा है।
उपलब्धियों के प्रमुख क्षेत्र निम्न हैं-
१. सामाजिक समानता पर आधारित समाज का निर्माण, दहेज का पूर्णरूपेण वर्जन, ठहराव, मांग, जेवर चढ़ाना आदि का कोई भी प्राविधान नहीं, समवर्गीय विवाहों का वर्जन। यह समाज कण्यप गोत्रीय है। इसके ८० के लगभग उपवर्ग या (अल्ल) हैं। एक उपवर्ग उसी उपवर्ग में वैवाहिक सम्बंध नहीं करता है।
२. राजनैतिक राजनैतिक क्षेत्र में स्वतंत्रता संग्राम में अन्यान्य बन्धुओं ने सक्रिय भागीदारी की है जिनमें प्रमुख निम्नलिखित है. स्व० श्री राम चरन शाह हरदोई, स्व० श्री लाल बिहारी गए, हरदोई, स्व० श्री तिलक शाह लखीमपुर, स्व० श्री युगुल विभोर लखीमपुर, स्व० श्री उजागर लाल गुप्त सीतापुर, श्री गुरु प्रसाद गुप्रा झंडेवाले हरदोई, श्री जगन्नाथ प्रसाद गुप्त औरंगाबाद सीतापुर।
३. संगठन के प्रमुख स्तम्भ :
अन्य प्रमुख पुरुष हैं स्व० श्री दौलत राम गुप्त पीलीभीत, स्व० राधेश्याम गुप्त शाहजहांपुर, स्व० ब्रह्मा प्रसाद गुप्त लखीमपुर, स्व० गोकरन प्रसाद गुप्त अवैः मवि० गौलागौकरन नाथ, स्व० सेठ प्रयाग बत्त भू० पू० तालुकेदार पिहानी, स्व० श्री वटेश्वर नाथ गुप्त अध्यापक सीतापुर, स्वः उजागर लाल गुप्त संस्थापक विद्यालय सीतापुर, श्री सोहन लाल गुप्त हरिद्वार, चन्द्रशेखर गुप्त लखनऊ, अध्यक्ष अखिल भारतीय वैश्य सभा उ०प्र०, लखनऊ, श्री सोहन लाल गुप्त ने गणित का इतिहास एवं अन्य पुस्तकों की रचना की है।
यह उपवर्ग हरद्वारी वैश्य में किसी समय सम्मिलित सा लग रहा था, पर बाद में आत हुआ कि वे अपना प्रथक अस्तित्व बनाये हुये हैं और १११.८९ को प्रथक रजिस्ट्री सोसाइटी ऐक्ट में कम से ५००७ पर कराई गई यद्यपि विधिवत स्थापना १९४७ में हुई थी। इनकी मुख्य आबादी सीतापुर एवं मिक्षिक ही में ही हैं। इससे पहिले १९२९ से बीस वर्ष तक वह सीतापुर की नगर इकाई के ही रूप में कार्य करती यी।
संस्था के ४ मंडल है और हर मंडल में २२ ग्राम सभायें संगठित हैं।
इनका मूल ऋषिपरक गोत्र कश्यप ही है। परन्तु इनमें २५ अल्लें प्रचलित है। १. चौधरी, २. हिमायूँ पुरी, ३ हरपरा, ४. लवरा, ५. सेठ, ६. गुरुदरी, ६. वागरहा, ८. ऊँच्हडिमा, १०.
समाज द्वारा संचालित शिक्षा संस्थायें उजागर
लाल इण्टर कालेज सीतापुर, नव दुर्गा विद्या मन्दिर सीतापुर, सती जय देवी जू० हा० स्कूल नहोली, श्री दुर्गा दत्त ब्रह्मचारी जू० हा० स्कूल वजीर नगर सीतापुर, श्री ज्वाला प्रसाद जू० हॉ० स्कूल लशीमपुर, युग निर्माण कन्या हा० से० स्कूल मौहम्मदी।
समाज के प्रमुख सन्तः
सन्त सहज राम जिन्होंने रघुवंश दीपक नामक ग्रन्थ अपने अयोध्या प्रवास काल में लिखी है और बहुत लोकप्रिय है, सन्त दुर्गा दास ब्रह्मचारी नैमिषारण्य, सन्त पल्टू वाप्स, भ्रमणकारी सन्त, लाल सगत, प्रयाग के सन्त. सत्ती जप देवी चमक्षर सीतापुर, सही जी ने १९४९ में दिना श्रग्नि को अपने तेज से अग्नि प्रज्वलित कर हजारों नागरिकों और अधिकारियों की उपस्थिति में चित्ता प्रज्वलित कर सतीत्व का पद प्राप्त किया। इनके निर्वाण स्थान पर सत्ती चमक्षर के नाम से प्रसिद्ध प्रति वर्ष मेला लगता है तथा हरिद्वार के भारत माता मन्दिर में सप्त्ती जी की प्रतिमा स्थापित है।
अतिउत्तम-सटीक जानकारी के लिए-बहुत आभार
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