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Saturday, March 9, 2024

BISHNOI VAISHYA

#BISHNOI VAISHYA

विश्नोई वैश्य जाति का इतिहास

इनका उद्गम विश्नोई धर्म के संस्थापक जम्भेश्वर महाराज का जन्म भादों की जन्माष्टमी को नागौर परगने में पीपासर गांव में सन् १५ ४१ ई० में हुआ था। विश्नोई धर्मानुयायी केवल वैश्य ही नहीं थे, अपितु जाट, राजपूत, ब्राह्मण आदि भी थे। जम्भेश्वर ने समाज के पिछड़े अंग को यज्ञ और संध्या का अधिकार दिया। जोधपुर से एक अकाल के समय भागकर कुछ विश्नोई कभी हिसार में तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और नेपाल में भी जा बसे थे।

उनके प्रभाव से कभी राज्यादेश से पशु-पक्षियों को मारने और हरी खेजड़ को काटने की मनाही कर दी गई थी। उनके प्रयास से बादशाह सिकन्दर लोदी ने तथा मलेरकोटला के नवाब ने भी गाय काटने पर रोक लगा दी थी। जम्मू जी ने सन् १५६९ में देह त्याग किया। तालव नामक गाँव में उनकी समाधि हैं। इस स्थान को अब 'मुकाम' कहते हैं। धिम्नोई धर्म हिन्दू धर्म का ही एक सम्प्रदाय वत है। अतः नित्य हवन करना, दोनों समय संध्या करना, नित्य सांयकाल विष्णु भगवान की आरती व कीर्तन करना, नाम जपना तथा पशु पक्षियों की रक्षा करना। विश्नोई धर्म के कुल २९ नियम हैं। नियमों को समुदाय के लिए प्रयुक्त होता है। इस॥लए जोधपुर जिले में विश्नोई लोगों का एक विशाल क्षेत्र है जहाँ २० हजार काले हिरण एक घेरे में पलते हैं। हरियाणा के सिरसा नगर में भी ऐसा काले हिरण पालने का एक विशाल क्षेत्र है। उनका विश्वास है कि मरणोपरान्त हर आत्मा काले हिरण के चोले में जन्म लेतीं हैं। वैसे उनके वे उन्तीस नियम निम्न प्रकार हैं:

तीस दिन सूतक, ५ ऋतुवन्ती न्यारीं। तेरो करो स्नान, शील संतोष शुचि प्यारी ।।
द्विकाल संध्या करो, सांझ आरती गुण गावो,
होम हित चित्त प्रीत सू होय, बास बैकुण्ठे पावो ।। 
पाणी वाणी ईन्धणी दूध, इतना लोजै छाण। 
क्षमा दया हृदय धरो, गुरु बतायो जाण ।
चोरी, निन्दा, झूठ बरजियों, बाद न करणो कोय । 
अमावस्या व्रत राखणों, भजन विष्णु बतायो जाय ।।
जीव दया पालणी, रुख लीला नहिं धावें। 
अजर जरै जीवत मरे, वै वास बैकुण्ठा पावै ।।
अमर करै रसोई हाथ से, आन सूपला न लावै ।
रखावै ठाट, बैल बधिया न करावै ।।
अमल तमाखू भांग मद्य सू, दूर ही भागे। 
लील न लावै अंग, देखते दूर हो त्यागै।

(पंचशती स्मारिका से उद्धृत)

भारत की सतत् संस्कृतिकरण की परम्परा के अनुसार विश्नोई शब्द वैष्णवी का भी अपभ्रंश माना जाने लगा है। क्योंकि विष्णु भगवान की उपासना प्रत्येक विश्नोई का धर्म है। उन्होंने गाया था।

 'ओं' विष्णु विष्णु तू भणरे प्राणी, साधे भक्ति उधरणों'।

इस धर्म के अनुयायी ही विश्नोई कहलाते हैं तथा वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं गंगा जमुना के दोआब में बसने वाले वैश्य लोग, जिनका मुख्य पेशा व्यापार था, जम्भो जी से प्रभादित हुए और उनकी उपजाति का नाम ही विश्नोई धर्म से अनुप्राणित होने के कारण विश्नोई वैश्य पड़ गया। चूंकि सभी वैश्य मात्र अपने को गुप्त उपनाम से इंगित करते थे, अंत: जो वैश्य पहले से गुप्त लिखते थे वे गुप्त या गुप्ता उपनाम लगाते रहे। विश्नोई मत के या सम्प्रदाय के अनुयायी वैश्य अपने को अब गुप्ता के स्थान पर विश्नोई उपनाम को अपनाने लगे हैं। विश्नोई वैश्य सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में विशेषत: बिजनौर, काँठ, कानपुर, कालपी, इटावा, औरैया, कमालगंज (फरुखाबाद), झांसी, लखनऊ, धामपुर, नगीना, मुरादाबाद, मेरठ, दिल्ली, गाडरवारा, पतलोन, बोदरी, आमगाँव, उदयपुर, जबलपुर आदि स्थानों पर बसे हुए हैं।

धर्म स्थान : इन्होंने तमाम विश्नोई मन्दिरों का निर्माण कराया, जहाँ पर यज्ञादि के माध्यम से विष्णु को उपासना होती है। उदाहरण के लिए गाडरगावा का श्री जम्भेश्वर महाराज का मन्दिर, कालपी (जनपद उरई) में निर्मित विश्नोई मन्दिर, औरैय्या का विश्नोई मन्दिर इसी विष्णु उपासना एवम् जम्भेश्वर महाराज की अनन्य श्रद्धा के प्रतीक हैं।

दिनांक ५ जून १९८८ को दिल्ली में तत्कालीन पोस्ट विभाग के केन्द्रीय मिनिस्टर ने एक नया स्टाम्प प्रस्तुत किया। जिस पर उस प्रसिद्ध खेजरी वृक्ष का चित्र अंकित है, जिसे विश्नोई बन्धुओं ने राजस्थान में स्वस्थान पर लगभग ९०० वर्ष पूर्व से सुरक्षित रखा हुआ है। विश्नोई बन्धु वृक्ष काटना पाप समझते हैं।

कुछ बन्धुओं ने आर्य समाज की भांति विश्नोई मन्दिरों की स्थापना और मूर्ति पूजा का खण्डन किया। विश्नोई लोग आज भी बीकानेर से ५५ किलोमीटर दूर तालबे मुकाम में निर्मित श्री जम्भेश्वर जी की समाधि पर शिवरात्रि के दिन श्रद्धा सुमन अर्पित करने जाते हैं। यह स्थान नोखा स्टेशन से ५ कि० मी० पर स्थित है। इस मुकाम में फाल्गुन में शिवरात्रि के दिन और क्वार के महीने में अमावस्या को मेला लगता है और विशाल यज्ञ का आयोजन होता है। जोधपुर में आज भी जम्भ सरोवर फलौदी स्टेशन से १० किलोमीटर पर स्थित है। वहाँ पर भी चैत्र की अमावस्या पर बड़ा भारी मेला लगता है।

वैश्य मात्र से विवाह सम्बंध : विश्नोई वैश्य प्राचीन काल से वैश्य समुदाय के अभिन्न अंग हैं। उनके सम्बंध न केवल विश्नोई तक ही सीमित हैं अपितु खान पान, विवाहादि सम्बंध अग्रवाल, पुरवार, गुलहरे, अयोध्यावासी, दोसर, ओमर, माहौर, केसरवानी, गहोई, बाथम, खण्डेलवाल, कलवार, यज्ञसेनी, बारहसेनी एवं वार्ष्णेय आदि सभी वैश्य उपजातियों में खुले रुप से सम्पन्न होते हैं।

उल्लेखनीय है कि उत्तरप्रदेश तथा बुन्देलखण्ड के विश्नोई वैश्यों ने विश्नोई सेवा समिति के रुप में निम्न विश्नोई सभाओं का

१. विश्नोई सेवा समिति रजिस्टर्ड, कानपुर। इस घटक का सम्बंधन अखिल भारतीय वैश्य सम्मेलन से विधिवत् हो चुका हैं

२. विश्नोई सेवा समिति रजिस्टर्ड, औरैया (इटावा)।

३. विश्नोई सेवा समिति, कालपी।

४. विश्नोई समिति, लखनऊ।

५ . विश्नोई सेवा समिति, कमालगंज, फरुखाबाद आदि।

विश्नोई वैश्यों के रीतिरिवाज एवं परम्परायें सभी अन्य वैश्य उपजातियों से मिलती जुलती हैं। सात्विक प्रवृत्ति वाले विष्णुभक्त विश्नोई वैश्य मांसाहारी नहीं होते, मदिरापान नहीं करते एवं पवित्रता में उनकी विशेष रुचि होती है। शिक्षा के क्षेत्र में स्कूलों की स्थापना मेधावी छात्रों की सहायता तथा विद्या रुचि का विकास हो रहा है। व्यापार के क्षेत्र में उन्होंने विशेष प्रगति की है। सेवा के क्षेत्र में आई.ए.एस., पी.सी.एस. आदि पदों पर, उद्योग इकाईयों के प्रमुख के रुप में शिक्षा विभाग में वरिष्ठ पदों पर तथा सरकारी सेवा अधिकारी के रूप में विश्नोई वैश्य किसी भी समाज के अन्य वर्ग की ही भाँति है।

विश्नोई समाज का अपना साहित्य है। श्री जम्भोल के आत्माराम जी के शिष्य श्री राम दास जी ने निम्न संत पुस्तकों का प्रकाशन किया। १. जनमाष्टक, २. जम्भदेव लधु चरित्र, ३. विश्नोई धर्म विवेक, ४. गोत्राचार विधि, ५. स्वामी बील्हाजी का जीवन चरित्र, ६. स्वामी बील्हा जी की कवित्त वाणी, ७. शिक्षा दर्पण, ८. विश्नोई समाज का इतिहास, ९. विष्णु धर्म प्रकाश, १०. सबद वाणी, ११. जम्भ सागर, १२. जम्भ गीता, १३. जम्भा देश मासिक पत्रिका (सम्पादक पी. आर. विश्नोई), १४. संगोष्ठी वाणी (सम्पादक महेश चन्द विश्नोई) रातानाड़ा, जोधपुर, १५. पंचशती स्मारिका (अखिल भारतीय विश्नोई सभा, नोका जिला, बीकानेर) द्वारा प्रकाशित ।

प्रमुख व्यक्ति : 

१. हरियाणा के लम्बे समय तक मुख्यमंत्री और फिर केन्द्र में मंत्री श्री भजन लाल जी विश्नोई हैं।
२. श्री पूर्णचन्द गुप्त अनुजगण गुरूदेव गुप्त आदि झांसी वाले जो दैनिक पत्रिका जागरण का विभिन्न स्थानों से प्रकाशन करते हैं। गुरुदेव गुप्त सांसद भी रहे है।
३. गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के वेद निकाय के डीन । 
४. सेवा राम गुप्त, सेवा निवृत्त प्रिसिंपल फरूखाबाद ।

इनके दो प्रमुख विभाग हैं। पूर्वी एवं पश्चिमी ।

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