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Thursday, March 14, 2024

ASIA'S FIRST ROLLER FLOOR MILL - KISHAN FLOOR MILLS

ASIA'S FIRST ROLLER FLOOR MILL - #KISHAN FLOOR MILLS

जैन वैश्य परिवार द्वारा स्थापित एशिया की पहली फ्लोर मिल, किशन फ्लौर मिल,रेलवे रोड़,मेरठ.

अपने मेरठ में भारत की पहली और एशिया की पहली सबसे बड़ी फ्लौर मिल

मेरठ एक ऐसा शहर है जिसको देखने के हज़ारों पहलु हैं। कोई इसके बे बाक तेवरों की वजह से जानता है, कोई इसे क्रांति धरा के रूप में जानता है, किसी के लिए यह साहित्यिक भूमि है और किसी के लिए यह ऐतिहासिक धरोहरों का गुलदस्ता।
 
मेरठ उन कुछ शहरों में से एक हैं जो जब से मौजूद है जबसे इतिहास लिखना शुरू किया गया है। रामायण महाभारत के दौर में भी मेरठ का उल्लेख मयराष्ट्र , हस्तिनापुर इत्यादि के रूप में किया गया जिसके आसार आज भी मौजूद है। आज हम मेरठ में मुजूद एक ऐसी ऐतिहासिक धरोहर के रु बा रु आपको ले चलेंगे जिसका वजूद यूँ तो आज मौजूद नहीं है लेकिन उसकी महत्वता का अंदाज़ा आप ऐसे लगा सकते हैं कि वह भारत की सबसे पहली फ्लौर मिल थी जिससे लगभग 300 टन आटा प्रतिदिन निकलता था।
 
हम बात कर रहे हैं उस दौर में एशिया की सबसे बड़ी फ्लौर मिल किशन फ्लौर मिल की।

लाला किशन लाल और उनकी पत्नी 




हालाँकि आज इस संरचना के कोई आसार मौजूद नहीं है लेकिन जो लोग इसके प्रत्यक्षदर्शी है वो इसकी भव्यता से बखूबी वाकिफ हैं। एक दौर था जब सुबह से शाम तक अनाज से भरी गाड़ियों का आना जाना यहाँ लगा रहता था। पश्चिमी उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड से लेकर दिल्ली तक किशन फ्लौर मिल का आटा पहुँचता था। आइये जानते हैं इस मिल की बुनियाद डालने वाले परिवार के इतिहास के बारे में
 
किशन फ्लौर मिल का नाम लाला किशन लाल जी के नाम पर पड़ा। लाला किशन लाल जी का परिवार फ़िरोज़पुर ,पंजाब से मेरठ में आन बसा। लाला किशन लाल जी के 5 पुत्र हुए

लाला जानकी प्रसाद जैन
लाला मित्तर सैन जैन
लाला कंवर सैन जैन
लाला पदम् प्रसाद जैन
लाला सुमुद सैन जैन
 
लाला जानकी प्रसाद जैन और लाला मित्तर सैन जी की परिवार के ज्येष्ठ पुत्र थे मिलकर एक फ्लौर मिल की बुनियाद सन 1914 में डाली हरेक संयुक्त परिवार की तरह बाकी तीनों भैयों ने भी अपने बड़े भैयों का खूब साथ दिया। उस समय भारत में इस प्रकार की कोई आटा मिल मौजूद नहीं थी। इसके साथ ही अपने परिवार की परंपरा पर चलते हुए उन्होंने मिल के प्रांगण में ही एक मंदिर का भी निर्माण कराया, जो आज तक अपनी भव्यता के साथ मौजूद है। 7 साल लगातार मिल का निर्माण कार्य चलता रहा और वर्ष 1921 में फ्लौर मिल ने उत्पादन शुरू कर दिया। श्री जानकी प्रसाद जैन और लाला मित्तर प्रसाद जैन जी ने इस मिल का नाम अपने पिताजी श्री किशन लाल जी के नाम पर ही किशन फ्लौर मिल रखा।
 
20 हज़ार गज़ से ज़्यादा क्षेत्रफल में फैली यह पांच मंज़िला ईमारत बेमिसाल थी। फर्श बर्मा टीक लकड़ी से बना था और इसकी मशीनरी स्टील और पीतल से। मिल को बनाने में उस दौर में 7 लाख रुपए की लागत आयी थी , जो एक अनुमान के अनुसार आज के 40 करोड़* रुपए बनते हैं।

यह फ्लौर मिल अपने दौर में सबसे आधुनिक तकनीक पर आधारित थी। इसमें लगभग हर काम ऑटोमैटिक था। एक बार गेंहू डालने के बाद वह सीधा कट्टे में पैक हो कर ही बाहर निकलता था। गेंहू को हौज़ में डालते ही पहले वह वॉशर रूम में जाते थे, फिर ड्रायर रूम में सूखने के बाद उन्हें सेपरेट करने के लिए मशीन पर डाल देते थे। पिसाई होने के बाद दोबारा से सेपरेट रूम में भेजा जाता जहाँ आटा, चोकर,सूजी मैदा को अलग किया जाता था और फिर आखिरकार यह पैकिंग के लिए जाता था। विशेष बात यह थी कि मिल में डस्ट चैम्बर और फ़िल्टर का निर्माण भी कराया गया था , गेंहू से निकलने वाली धूल सीधे हवा में न जा कर फिल्टर्स में जाती थी , जिससे केवल साफ़ हवा ही वातावरण में पहुँचती थी। मिल का पॉल्यूशन कण्ट्रोल सिस्टम इतना प्रभावी था कि इतनी बड़ी मिल होने के बावजूद आस पास रहने वालो को कभी हवा की शुद्धता में कमी नहीं हुई। साल 1921 से 1964 तक यह मिल स्टीम इंजन पर चली और 1965 के बाद से यह इलेक्ट्रिक इंजन पर चली । मिल में मिलने वाले आटे की गुणवत्ता बेमिसाल थी। आटे के पैकेट पर एक बुल का निशान मौजूद था इसी वजह से इसे ‘बुल ब्रांड’ के नाम से भी जाना जाता था।
 
किशन फ्लौर मिल न सिर्फ एक व्यापार का केंद्र थी बल्कि सामाजिक सद्भाव भी यहाँ जुड़ा था। लाला किशन लाल का परिवार धार्मिक विचारों वाला था। वह सामाजिक सद्भाव में विशवास रखने वाले लोग थे। सम्बन्धो की महत्वता को समझते थे। इसी वजह से मिल में 4 - 4 पीढ़ियों तक कर्मचारियों ने सकुशल काम किया।
मिल में एक नियम यह भी था कि किसी भी ज़रूरतमंद को एक किलो आटा मुफ्त दे दिया जाएगा। इस नियम में न तो किसी तरह का भेदभाव था और न ही कोई संख्या की पाबंदी। जो चाहे यहाँ से सहायता हासिल कर सकता था चाहे वह गिनती एक दो की हो या सैंकड़ों की। कभी दंगो जैसी विपदा भी आयी तो किशन फ्लौर मिल ने बिना किसी भेदभाव के लोगों की सहायता के लिए हाथ बढ़ाया। यही वजह था कि पहले श्री किशन लाल जी और बाद में उनके सुपुत्र मेरठ शहर के बेहद महत्वपूर्ण और सम्मानीय लोगों में से एक थे। कोई भी धार्मिक या सामाजिक आयोजन उनकी उपस्तिथि के बिना संभव नहीं हो पाता था। विशेष रूप से जैन धर्म से सम्बंधित धार्मिक आयोजन अधिकतर किशन फ्लौर मिल के प्रांगण में ही आयोजित किये जाते थे, जिसके आयोजन में श्री मित्र सैन जी ही महत्वपुर्ण भूमिका निभाते थे।

मिल के साथ साथ ही बने मंदिर के बारे में विदित है कि इस निर्माण कार्य 1931 में पुरा हुआ था। 31 दिसम्बर 1931 को इसकी प्राण प्रतिष्ठा करने के लिए 108 आचार्य श्री शान्ति सागर जी महाराज आये थे
 
श्री मित्तर सैन जी के 5 पुत्र और तीन पुत्री हुईं। आपकी एक पुत्री स्वर्ण लता जैन की शादी अमीचंद जैन जी से हुई। अमीचंद जैन जी राजा दीन दयाल साहब के पोते थे। यह वही राजा दीन दयाल हैं जिन्हे प्रिंस ऑफ़ फोटोग्राफी कहा जाता है। राजा दीन दयाल जी हैदराबाद के निज़ाम के फोटोग्राफर हुआ करते थे और फोटोग्राफी की दुनिया में अद्वित्य योगदान दिया था।
 
मित्तर सैन जी के बेटे श्री सुकुमार चंद जैन जी ब्रिटिश दौर में honorary मजिस्ट्रेट हुआ करते थे। पूरे मेरठ शहर में उन्हें काफी सम्मान हासिल था ।

धीरे धीरे परिवार बड़ा होने लगा और सभी ने अलग अलग क्षेत्रों में व्यापार को बढ़ाया। बर्ष 1988 में किशन फ्लौर मिल बंद हो गयी। उसके बाद से आने वाले 29 साल यह ईमारत ख़ामोशी के साथ अपना समय गुज़ारती रही। एक दौर में मेरठ की शान रही किशन फ्लौर मिल अब अपना कार्य संपन्न कर चुकी थी। अंततः 2017 में मिल की संरचना को ढाने का कार्य शुरू हुआ और उसके स्थान पर एक आवासीय कॉलोनी का निर्माण किया गया। आज किशन फ्लौर मिल के स्थान पर यह नए बने मकान मौजूद हैं। मिल की याद के बतौर आज यह मंदिर ही बाकी रह गया है जो काफी आकर्षक और भव्य है।

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