#NAGAR VAISHYA OF GUJARAT - गुजरात के नागर वैश्य
नागर वैश्य :
बड़नगर तीर्थ के ब्राह्मण ही नागर वैश्य बन गए। अकबर बादशाह के समय तानसेन गवैया ने एक समय दीपक राग गाया। किसी गलती होने के कारण उसके शरीर में गर्मी पैदा हो गई। बहुत से उपचार किए परन्तु शान्ति नहीं हुई। तब वह मल्लार राग गाने वाले किसी निपुण गवैया की खोज में फिरता-फिरता बड़नगर में आया। वहाँ नागर ब्राह्मणों की स्त्रियों ने उसके दुःख को विचार करके मल्लार राग गा कर उसकी व्यथा को शांत किया। तानसेन ने बादशाह के आगे उन स्त्रियों के गुण व रूप की चर्चा की। बादशाह ने सुनकर उन स्त्रियों को अपनी सभा में बुलाया। मगर वह नहीं आई। बादशाह ने अपनी सेना भेजी। सेना ने बड़नगर का विध्वंश कर दिया। जिसके गले में जनेऊ देखा उसे मार दिया । ७४५० ब्राह्मण शूद्रों का भेष बनाकर किसी प्रकार निकल गए और वैश्य बन गए और व्यापार करने लगे । तब से वे लोग चिट्ठी लिखते समय ७४/१/२ का अंक डालते हैं। इन ७४ सौ में से दो हजार सिद्धपुर पाटन में गए। वह पटनी नागर कहलाये । ३४०० सौ प्रभाष पठान में गए और बारह गांव में जाकर रहे । उनके बारह गोत्र बने । शेष २००० चित्तौड़ नागर कहलाए। इसी प्रकार जो जहां भी गए, वहां के वह नागर कहलाए।
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